राजनीति में कब परिस्थिति बदल जाए यह कहा नहीं जा सकता। एक जमाना था जब देश की सबसे पुरानी पार्टी कही जानी वाली कांग्रेस का देश में एकक्षत्र राज चलता था, लेकिन 2014 के बाद से कांग्रेस की हालत बद से बदतर होती चली गई।
2014 के बाद कुछ राज्यों में कांग्रेस को जीत जरूर मिली है लेकिन बाकी करीब-करीब सभी चुनावों में उसे मुंह की खानी पड़ी है। कांग्रेस के दिग्गज नेता धीरे-धीरे बीजेपी में शामिल होते चले गए। पार्टी से बड़े नेताओं के मोहभंग के साथ ही बचे-खुचे कार्यकर्ता भी कांग्रेस से दूर हो गए। संगठन ऊपर से नीचे तक चरमरा गया। राज्यों में कांग्रेस का जो नेतृत्व बचा उसमें आपस में ही कलह छिड़ गई। इस सबकी वज़ह था कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व का निष्क्रिय होना।
‘क्षेत्रीय दलों की कोई विचारधारा नहीं’
शीर्ष नेतृत्व के नाम पर कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार ही है। गांधी परिवार को छोड़कर कभी भी कोई दूसरा नेता अध्यक्ष बनने के बारे में सोच ही नहीं सकता। कभी राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बन जाते हैं, कभी सोनिया गांधी बन जाती हैं। फिर दोबारा से राहुल गांधी बन जाते हैं। अब फिर से ख़बरें हैं कि राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा। ऐसे में राहुल गांधी दोबारा से एक्टिव हो गए हैं।
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राहुल गांधी को कितना भी उनकी पार्टी समझा ले- कितना भी उन्हें ज्ञान दिया जाए लेकिन वो बदलते नहीं। वो राहुल गांधी ही रहते हैं। अब जब दोबारा से राहुल गांधी अटैकिंग मोड में आए तो दोबारा से कुछ ऐसा बोल गए जो तथ्यात्मक तौर पर तो ग़लत है ही साथ ही उनके इस बयान से उन्हीं की सहयोगी पार्टियां और नाराज दिख रही हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “क्षेत्रीय दल बीजेपी और आरएसएस से नहीं लड़ सकते क्योंकि उनके पास विचारधारा का अभाव है। कांगेस यह लड़ाई लड़ सकती है।”
राहुल गांधी के इस बयान के बाद तो मानो क्षेत्रीय पार्टियां उन पर टूट पड़ी। दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों ने ही नहीं बल्कि उन क्षेत्रीय पार्टियों ने भी राहुल गांधी के बयान पर आपत्ति जताई जोकि कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रही हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार चला रही एनसीपी और शिवसेना दोनों ने राहुल गांधी के बयान पर आपत्ति जताई है। इन दोनों पार्टियों की तरफ से कहा गया कि राहुल गांधी को क्षेत्रीय पार्टियों के बजाय अपनी पार्टी के पुनर्रद्धार के बारे में चिंता करनी चाहिए।
‘सहयात्री बने कांग्रेस’
राहुल गांधी को जवाब देते हुए आरजेडी नेता और राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने कहा कि क्षेत्रीय दल लोकसभा सीटों के बहुमत में मजबूत थे और कांग्रेस को “सहयोगियों” और क्षेत्रीय पार्टियों को अहमियत देनी चाहिए। कांग्रेस को लोकसभा की 543 सीटों में से 320 से अधिक पर क्षेत्रीय दलों के सदस्यों को देखते हुए उन्हें ‘ड्राइविंग सीट’ पर रहने देना चाहिए और खुद ‘सहयात्री’ बन जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा की बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद थी और कांग्रेस सहयोगी थी।
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वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जो झारखंड में कांग्रेस के साथ गठबंधन में सरकार चला रहा है, उसने भी अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस पर सवाल उठाया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कहा, “यह राहुल गांधी का आत्म-मूल्यांकन है और वह अपनी राय के हकदार हैं, लेकिन उन्हें विचारधारा पर टिप्पणी करने का अधिकार किसने दिया? हम बिना किसी विचारधारा के पार्टी कैसे चला रहे हैं?”
राहुल गांधी की टिप्पणी के बाद सभी सहयोगी पार्टियों से लताड़ पड़ने के बाद कांग्रेस बैकफुट पर नज़र आ रही है। कांग्रेस को भी पता है कि राहुल गांधी जब भी अपनी मुंह खोलते हैं वो पार्टी की मिट्टी पलित करा बैठते है।
राहुल को इतना भी नहीं पता !
राहुल गांधी इतने वर्षों से राजनीति कर रहे हैं, यह दूसरी बात है कि उन्हें निरंतर चुनावों में हार मिली है। इसके बाद भी उन्हें कम से कम इतनी तो समझ होनी चाहिए कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां विचाराधारा के आधार पर ही चल रही हैं। विचारधारा के आधार पर ही पार्टियों को वोट मिलते है। कुछ उदाहरण देखिए- उत्तर-प्रदेश में समाजवादी पार्टी ‘समाजवाद’ की विचारधारा पर चलने का दावा करती है। बिहार में आरजेडी ‘सामाजिक न्याय’ की विचारधारा पर चलने का दावा करती है। शिवसेना अबतक हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की विचारधारा पर चलने का दावा करती थी।
ऐसे ही करीब-करीब सभी क्षेत्रीय पार्टियां किसी ना किसी तरह की विचारधारा के आधार पर ही पार्टी चलाती हैं। इतनी छोटी से बात राहुल गांधी को समझ नहीं आई, इतने वर्षों में इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी कांग्रेस को भविष्य में कहां लेकर जाएंगे।
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