श्रीजगन्नाथ पुरी की पवित्रता सियासी खींचतान की शिकार नहीं होनी चाहिए

मंदिर के महत्व से समझौता नहीं!

Jagnaath puri

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श्रीजगन्नाथ पुरी के पास कॉरिडोर बनाने के नाम पर ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण मंदिरों को तोड़ने का मामला सामने आया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उच्च न्यायालय को बताया कि ओडिशा ब्रिज कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन ने विश्व धरोहर स्थल के आसपास मूत्रालय और क्लोक रूम जैसी सामान्य सुविधाओं के निर्माण के लिए गहरी खुदाई करके 12वीं शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर के आसपास के पुरातात्विक अवशेषों को नष्ट कर दिया। श्रीमंदिर परिक्रमा योजना के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, जो ओडिशा के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थल के रखरखाव की देखभाल करता है, ने पुरी के एक निवासी द्वारा अदालत में याचिका दायर करने के बाद एक साइट निरीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में बताया गया है मंदिर के चारों ओर नए निर्माण से मंदिर की संरचनात्मक सुरक्षा को खतरा है।

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जानें क्या है पूरा मामला?

दरअसल, पिछले साल नवंबर में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने ₹800 करोड़ की श्रीमंदिर परिक्रमा योजना (या जगन्नाथ मंदिर गलियारा परियोजना) की आधारशिला रखी थी, जिसमें दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करने के लिए जगन्नाथ मंदिर के 75 मीटर परिधि के क्षेत्र को एक हेरिटेज कॉरिडोर में बदलना था। यह प्रोजेक्ट वाराणसी की काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना पर आधारित है, जिस प्रकार तीर्थयात्रियों और भक्तों की आसान आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए प्रतिष्ठित काशी विश्वनाथ मंदिर और गंगा नदी के घाटों के चारों ओर एक गलियारा/कॉरिडोर बनाया जा रहा है, उसी प्रकार श्री जगन्नाथ मंदिर के चारों ओर कॉरिडोर बनाया जाएगा।

इस परियोजना को मई 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं जैसे क्लोक रूम, टॉयलेट, पीने के पानी के फव्वारे, 6,000 लोगों के लिए कतार प्रबंधन सुविधा के साथ मंदिर स्वागत केंद्र, सूचना-सह-दान पोर्टल, छाया के लिए आश्रय मंडप आदि शामिल है। इसके अतिरिक्त बहु-स्तरीय कार पार्किंग, पुलिस के लिए समर्पित शटल आपातकालीन लेन, अग्निशमन और आपातकालीन वाहन, एक एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्र बनाया जा रहा है।

ध्यान देने वाली बात है कि निर्माण कार्य हेतु ASI से अनुमति नहीं ली गई है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1 मई को संयुक्त निरीक्षण करने के बाद, एएसआई ने उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया और कहा कि चल रहे निर्माण कार्य की कोई वैध अनुमति या उसके द्वारा जारी एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) नहीं लिया गया है। ASI ने अदालत को बताया कि “ओबीसीसी और एसजेटीए अधिकारियों के साथ ऑनसाइट चर्चा के बाद संयुक्त निरीक्षण के दौरान, यह पाया गया कि श्री मंदिर परिक्रमा परियोजना के चल रहे निर्माण कार्य में सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी कोई वैध अनुमति/एनओसी नहीं है।

ASI ने कोर्ट को बताया कि कार्य की अनुमति के लिए जो नक्शा दिखाया गया था, उत्खनन उसके अनुसार नहीं हो रहा हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, “संशोधित डीपीआर में शामिल चित्र और संरचनात्मक डिजाइन वर्तमान से एनएमए से भिन्न हैं। बार-बार बदलाव देखने को मिला है। इस बात की पूरी संभावना है कि एजेंसी (ओबीसीसी) ने उत्खनन/मिट्टी हटाने के दौरान विरासत स्थल के पुरातात्विक अवशेषों को नष्ट कर दिया हो।”

मंदिर के महत्व से समझौता नहीं

हालांकि, मंदिर को आधुनिक सुविधाओं के साथ तैयार करना एक अच्छा प्रयास है लेकिन इसके नामपर उसके धार्मिक महत्व को नकारना सही नहीं है। वास्तविक समस्या यह है कि हिंदुत्व की बयार में सभी राजनीतिक दल स्वयं को अधिक हिन्दू दिखाने के लिए मंदिरों के जीर्णोद्धार का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इसके लिए योजना तैयार करने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को मंदिरों के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की जानकारी नहीं है। जब श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण शुरू हुआ था तब भी ऐसी समस्या सामने आई थी। याचिकाकर्ता का अदालत से अनुरोध है कि अदालत राज्य प्रशासन द्वारा मंदिर के पास विकास परियोजना के लिए शुरू की गई निर्माण गतिविधियों को रोकने का आदेश दे। यह आवश्यक है कि न्यायालय सुनिश्चित करे कि कार्रवाई मंदिर के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही सम्पन्न की जाएगी।

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