‘सस्ता, सुंदर, टिकाऊ’, ISRO बना रहा है भारत का अपना स्पेस शटल

जल्द ही कर्नाटक के आसमान में स्पेस शटल उड़ता दिखाई देगा।

Source: News9live

अपनी उड़ान और ऊँची करने के उद्देश्य से अब भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अपनी उड़ान में नए पंख जोड़ने की तैयारी कर रही है. जल्द ही इसरो स्वदेशी स्पेस शटल का परीक्षण करने वाली है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो इसे जल्द ही कर्नाटक के चल्लकेरे की साइंस सिटी के ऊपर उड़ते हुए देखा जा सकता है, यहीं इसकी पहली लैंडिंग टेस्ट करने की योजना बनाई जा रही है.

इसरो के चेयरमैन, एस. सोमनाथ का कहना है कि ”हम एक ऐसे reusable  रॉकेट टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं जो काफी कम बजट, कम लागत और कम निवेश में बनकर तैयार होगा.”

2030 तक हो सकता है पूर्ण परीक्षण

इससे पहले अमेरिका और रूस ने भी ऐसे अंतरिक्ष यान उड़ाए हैं. रूस ने अपना यान ‘बुरान’ केवल एक बार 1988 में उड़ाया था लेकिन इसके बाद कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था. अमेरिका ने स्पेस शटल की 135 उड़ानें भरीं और 2011 में यह समाप्त हो गई.

तब से लेकर आज तक अमेरिका, चीन और भारत ही ऐसे देश हैं जो Reusable Rocket development पर अभी भी काम कर रहे हैं. यदि सब कुछ ठीक रहा तो भारत अपने Reusable launch vehicle का पूर्ण परीक्षण 2030 तक कर सकता है. स्पेस एक्स की Rocket stage recovery experiments की तुलना में इसरो का Reusability Project कहीं अधिक जटिल हैं, यही कारण है कि इसमें पूरी तरह से महारत हासिल करने में समय लगेगा.

एस. सोमनाथ ने जानकारी देते हुए कहा, “उड़ान भरने के बाद यह रॉकेट खुद नेविगेट और ग्लाइड करता हुआ बिना किसी पाइलट के सफलतापूर्वक चल्लाकरे  के रनवे पर उतरेगा.” इस प्रयोग का नाम Reusable Launch Vehicle – Landing Experiment [RLV-LEX] है.

स्पेस एक्स के अलावा, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, जापान की JAXA स्पेस एजेंसी और जेफ्फ बेज़ोस की प्राइवेट कंपनी Blue Origin भी ऐसे ही Reusable Space Launch Vehicles बनाने की रेस में शामिल हैं.

क्या है खासियत?

इसकी खासियत बताते हुए इसरो के चेयरमैन एस. सोमनाथ कहते हैं, “इसे एक ‘Reusable launch vehicle’ या ‘RLV’ भी कहा जा सकता है. इसका परीक्षण सफल रहा तो यह स्पेस launches के खर्चे को काफी हद तक कम कर सकता है. हमें ऐसे लॉन्च Vehicle की आवश्यकता है जिसे कम से कम 15 बार इस्तेमाल किया जा सके. अगर लॉन्च के खर्चे कम होंगे तो उन पैसों को और अधिक लॉन्चेस में इस्तेमाल किया जा सकता है.”

यह RLV अमेरिका के स्पेस शटल जैसा होगा और ऑर्बिट में सैटेलाइट पहुंचाने के बाद यह वापस पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करेगा. यह रनवे पर किसी एयरप्लेन की तरह लैंड करेगा और अगले मिशन के लिए तैयार होगा. इस तरह इसे 15 बार लॉन्च के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा. जिससे सैटेलाइन लॉन्च करने का खर्च काफी हद तक कम हो जाएगा. इस टेक्नोलॉजी में एक रॉकेट और एयरप्लेन दोनों का सामंजस्य होगा.

23 मई साल 2016 में इसरो ने Reusable Launch Vehicle – Technology Demonstrator ( RLV – TD] जोकि भारत का पहला मानवरहित विमान है उस का अवरोहण परीक्षण किया जोकि सफल रहा. यह एक तरह से RLV का प्रोटोटाइप था जिसे hypersonic flight, autonomous landing और powered cruise flight का परीक्षण करने के लिए बनाया गया था. इसमें RLV को 65 किलोमीटर की ऊंचाई से बे ऑफ़ बंगाल में एक निर्धारित स्थान पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से 450 किमी दूर उतरना था. इस दौरान थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम की सहायता से उच्च तापमान को सही से झेलते हुए RLV सुरक्षित लैंड हो सका. उड़ान भरने से लेकर लैंड करने तक यह मिशन 770  सेकंड यानी 12 से 13 मिनट तक चला.

अब भारत उसी तकनीक पर आगे बढ़ते हुए अपने पहले Reusable Launch Vehicle पर काम कर रहा है. चल्लकेरे में होने वाली यह लैंडिंग और इसरो के इससे पहले के सभी स्पेस मिशन यह साबित करते हैं कि जब बात अंतरिक्ष की हो तो भारत और इसरो भी किसी से कम नहीं हैं.

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