भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। मोदी सरकार ने निर्णय किया है कि भारत दुनिया को फिलहाल गेहूं निर्यात नहीं करने वाला है। एक ऐसे समय में जब यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया में पहले ही गेहूं की कमी है, भारत का निर्णय वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमत को और ऊपर पहुंचाने वाला है। भारत जैसे जिम्मेदार शक्ति के लिए यह निर्णय कठिन है किंतु यह आवश्यक भी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गेहूं के निर्यात पर रोक के पीछे का मुख्य कारण पिछले साल से कम उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है। असल में फरवरी तक पिछले साल से अधिक उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा था, लेकिन मई में सरकार ने संशोधित अनुमान जारी किए हैं, जिसमें कम उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया है।
कृषि व किसान कल्याण विभाग और अर्थ व सांंख्यिकी निदेशालय ने सभी फसलों के कुल उत्पादन को लेकर फरवरी 2022 में अग्रिम अनुमान रिपोर्ट जारी की थी, जिसके तहत वर्ष 2021-22 में रबी सीजन के दौरान गेहूं का उत्पादन 2020-21 की तुलना में तकरीबन 2 मिलियन टन अधिक होने का अनुमान लगाया था। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020-21 में रबी सीजन के दौरान गेहूं का उत्पादन 109.59 मिलियन टन हुआ था और वर्ष 2021-22 में रबी सीजन के दौरान गेहूं के उत्पादन का अग्रिम अनुमान 111.32 मिलियन टन का लगाया गया था, लेकिन मई के पहले सप्ताह में कृषि मंत्रालय ने गेहूं उत्पादन का संशोधित अनुमान जारी किया था। जिसके तहत इस रबी सीजन में 105 मिलियन टन का उत्पादन होने का अनुमान है।
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निर्यात पर रोक के पीछे की असली वजह
इस वर्ष गेहूं के फसल के घटने के पीछे अप्रैल महीने में पड़ी बेतहाशा गर्मी बड़ा कारण है। दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाजार में यूक्रेन युद्ध के कारण भारतीय गेहूं की मांग बढ़ने की वजह से घरेलू बाजार में गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य के स्तर से ऊपर बिक रहा है। इस कारण सरकार द्वारा की जाने वाली खरीद इस वर्ष अब तक कम ही रही है। गेहूं निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध को लेकर अधिकारियों ने कहा कि गेहू के अनियमित निर्यात के कारण कीमतों में वृद्धि हुई जिसे कंट्रोल करने के लिए ऐसा कदम उठाया गया।
घरेलू बाजार में गेहूं के दाम में वृद्धि के साथ ही वार्षिक खरीद की कमी के कारण इस वर्ष सरकार को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध हो यह भी सुनिश्चित करना था। साथ ही अब जबकि भारतीय गेहूं की मांग बहुत बढ़ गई है, ऐसे में अमीर देश पहले ही गेहूं खरीदकर स्टॉक न कर लें और आवश्यक होने पर भी भारत गरीब और जरूरतमंद देशों की सहायता न कर सके, ऐसी स्थिति से बचाव भी आवश्यक था। सरकार ने इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक कदम उठाया है। सरकार ने बताया है कि गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध का कारण हमारे नागरिकों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पर्याप्त खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करना है और यह भी सुनिश्चित करना है कि हम खाद्यान्न के मामले में कमजोर देशों को खाद्य आपूर्ति करने में सक्षम हों।
जर्मनी बिलबिला रहा है
हालांकि, जर्मनी जैसे देशों ने भारत के इस कदम की आलोचना की है, जबकि देखा जाए तो भारत अंधाधुंध निर्यात करता तो पश्चिमी देशों द्वारा पहले ही गेहूं स्टॉक कर लेने की बात अवश्य सामने आती। रूस-यूक्रेन युद्ध के समय जब पश्चिमी देश दुनिया को, विशेष रूप से भारत को रूस से व्यापारिक संबंध तोड़ने की सीख दे रहे थे, उसी समय यूरोपीय देश ही रूस से पहले से अधिक तेल और गैस खरीद रहे थे।
आज जो जर्मनी भारत को ज्ञान दे रहा है वही भारत के वैक्सीन पेटेंट के स्थगन प्रस्ताव के विरुद्ध था। भारत ने गरीब देशों की मदद के लिए यह प्रस्ताव दिया था कि वैक्सीन निर्माता देश वैक्सीन पर से अपनी बौद्धिक संपदा के पेटेंट को त्याग दें, जिससे गरीब देश आसानी से उनकी नकल कर सकें, अन्यथा उन देशों को या तो वैक्सीन खरीदनी होगी या उसकी तकनीक सीखने के लिए पैसे देने होंगे। किन्तु भारत के इस प्रस्ताव का जर्मनी ने विरोध किया था।
गेहूं के निर्यात पर रोक के पीछे अन्न की कमी कारण नहीं है। बल्कि सरकार विपरीत से विपरीत परिस्थितियों के लिए भी तैयार रहना चाहती है, क्योंकि अब अकेले भारत पर विश्व का पेट भरने की जिम्मेदारी आ गई है। सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि पहले के ऑर्डर स्थगित नहीं किए जाएंगे, अर्थात् तुर्की जैसे जिन देशों ने पहले जितना गेहूं आयात करने का ऑर्डर दिया है, उन्हें आपूर्ति की जाएगी। केवल नए ऑर्डर पर कुछ समय के लिए रोक रहेगी।
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