वर्तमान समय में मानसिक रूप से सबसे अधिक तनाव झेल रहे मुख्यमंत्रियों की सूची बनेगी तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का नाम उस सूची में सबसे ऊपर होगा। पहले तो कोरोना काल के दौरान महाराष्ट्र की हालत सबसे बुरी हुई और उद्धव ठाकरे की बहुत किरकिरी हुई। उसके बाद महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था धराशाई हो रही है। साथ ही राज ठाकरे और नवनीत राणा जैसे नेता महाराष्ट्र सरकार की नाक में दम किए हुए हैं। इन सबके बीच महा विकास आघाडी गठबंधन में खींचतान शुरू हो गई है।
गठबंधन अलग-अलग दिशा में भाग रहा है
पहले ही महा विकास आघाडी गठबंधन अलग-अलग दिशा में भागते हुए घोड़ों के रथ की तरह आगे बढ़ रहा था पर अब तो गठबंधन के साथियों के बीच का मतभेद खुलकर सामने आ गया है और भाजपा ने इसका लाभ उठाना भी शुरू कर दिया है। दो जिलों में जिला परिषदों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिए भाजपा ने NCP का साथ दिया है। भंडारा जिला परिषद चुनाव में कांग्रेस NCP के भरोसे चल रही थी। यह शहर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले का गढ़ है। जिला परिषद चुनाव में कांग्रेस के पास 21 सदस्य थे किंतु अध्यक्ष बनने हेतु 27 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता थी। NCP के पास 13 सदस्य थे किंतु 12 सदस्यों वाली भाजपा ने NCP को अपने पाले में कर लिया। दोनों दलों का गठबंधन 25 सदस्य संख्या तक पहुंचा और निर्दलीय सदस्यों के समर्थन से जिला परिषद की सीट पर भाजपा NCP गठबंधन का कब्जा सम्भव दिखने लगा।
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हालांकि भाजपा के एक गुट ने कांग्रेस को भंडारा जिला परिषद में समर्थन दिया है जिसके बाद अध्यक्ष पद कांग्रेस के गंगाधर जिभकाटे को और उपाध्यक्ष पद भाजपा गुट के संदीप तले को मिला है। भाजपा का गुट विद्रोही हुआ है या इसके पीछे अंदरूनी राजनीति है, यह स्पष्ट नहीं है किंतु इतना तय है कि इस उठापटक ने NCP कांग्रेस के बीच टकराव पैदा कर दिया है।
महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने एनसीपी पर प्रहार करते हुए यहां तक कह दिया कि उनके गठबंधन के साथ ही उसने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है। भंडारा जिला परिषद के अतिरिक्त गोंदिया जिला परिषद चुनाव में भी भाजपा को एनसीपी का साथ मिला है। 53 सदस्य जिला परिषद में भाजपा के पास 26 सदस्य थे। भाजपा अपने बल पर भी जिला परिषद चुनाव जीत सकती थी किंतु पार्टी नेतृत्व ने एनसीपी के साथ गठबंधन कर आगे बढ़ने का निर्णय किया। गोंदिया जिला परिषद का अध्यक्ष पद भाजपा को और उपाध्यक्ष पद एनसीपी को मिला है। हालांकि एनसीपी के इस व्यवहार से कांग्रेस बौखला गयी है।
जिला परिषद चुनाव को लेकर हो रही खींचतान का सबसे अधिक नुकसान इस पूरी लड़ाई से बाहर बैठी शिवसेना को होगा। यदि शिवसेना के दो सहयोगी आपस में लड़ेंगे तो शिवसेना के लिए आगे की यात्रा और अधिक कठिन हो जाएगा। शिवसेना ने भाजपा के विरुद्ध जाकर पहले ही अपने परंपरागत वोट बैंक को काफी नुकसान पहुंचाया है। शिवसेना ने यह दांव एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन पर विश्वास करके खेला था।
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सरकार बनाने की है भाजपा की तैयारी
भाजपा की तैयारी अगले विधानसभा चुनाव में अपने बल पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने की है। किंतु यदि भाजपा अपने बल पर सरकार बनाने में सक्षम नहीं हुई तो भाजपा एनसीपी का यह सहयोग भविष्य में भाजपा को एक महत्वपूर्ण सहयोगी प्रदान कर सकता है। यदि एनसीपी भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करती तो भी भाजपा अकेले बल पर चुनाव जीतने का प्रयास करेगी और अपनी राजनीतिक जमीन बढ़ाएगी। हर स्थिति में भाजपा को लाभ होना निश्चित है।
कांग्रेस महाराष्ट्र की राजनीति में धीरे-धीरे समाप्त हो रही। बड़ा सवाल है कि इन सब के बीच शिवसेना कहां खड़ी है। एक ओर शिवसेना ने अपनी राजनीतिक परिपाटी के विरुद्ध अपने राजनीतिक शत्रुओं से हाथ मिलाया, उसके बाद प्रशासनिक कार्यों में कोई अनुभव ना होने के कारण उद्धव ठाकरे एक असफल मुख्यमंत्री बनकर रह गए, तत्पश्चात शिवसेना द्वारा रिक्त किए गए राजनीतिक परिदृश्य को भरने के लिए राज ठाकरे और नवनीत राणा जैसे नेता आगे आ रहे हैं। ऐसे में महाराष्ट्र की राजनीति किसी ओर भी करवट ले कांग्रेस के साथ शिवसेना का बर्बाद होना निश्चित दिख रहा है।
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