कोई भाव दे न दे, परंतु कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कभी भी लाईमलाइट में आने का एक अवसर नहीं छोड़ती। चर्चा में रहने की भूख में ये अब स्वरा भास्कर जैसों को टक्कर देने लगी हैं। हाल ही में काशी विश्वनाथ के मूल स्थल पर हो रहे सर्वे एवं कश्मीर में मार्तंड सूर्य मंदिर में हुई पूजा पर तंज कसते हुए इन्होंने कहा कि यदि इनमें सामर्थ्य हो, तो तनिक ताजमहल एवं लाल किला जैसे मुगल इमारतों को भी मंदिर बनाकर दिखाएँ।
महबूबा मुफ्ती के अनुसार,
“देश और प्रदेश जम्मू कश्मीर में सैकड़ों सालों से विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ रह रहे हैं। यहां अलग-अलग धर्मों के स्थल एक साथ बने हैं और ये हमारी विरासत है। उपराज्यपाल कोई महंत नहीं हैं और ना ही मंदिर के पुजारी हैं। दम है तो ताजमहल और लाल किला को ये (भाजपा) मंदिर बना कर दिखा दें। फिर देखते हैं कितने लोग विदेशों यहां घूमने आते हैं”। अब मंदिर बनाने का तो पता नहीं, परंतु जब विषय पर चर्चा प्रारंभ ही हुई है, तो इसके अंत: करण तक जाना भी अति आवश्यक है, और ऐसे में हमें कहीं न कहीं महबूब मुफ्ती का अभिनंदन करना पड़ेगा, क्योंकि जाने अनजाने उन्होंने उस विषय पर प्रकाश डाला है, जिस पर चर्चा तो खूब होती है, परंतु अनुसंधान कम ही हुआ है, और समाधान नगण्य – मुगल दुर्गों का रहस्य।
जो छाती ठोंक के कहते हैं कि मुगल न होते, तो भारत का क्या होता, वो आजकल ताजमहल के कुछ कमरों के खोले जाने पर त्राहिमाम कर उठते हैं। जो बात-बात पर ताजमहल, जोधा अकबर और बिरयानी की बढ़ाई करते नहीं थकते, वे ज्ञानवापी के विवादित ढांचे के सर्वे मात्र पर ऐसे तिलमिला उठते हैं, जैसे कोर्ट ने सर्वे का नहीं, उनके घरों के विध्वंस का फरमान जारी किया हो। आज हम चर्चा करते हैं एक ऐसे ही क्षेत्र की, जिसपर दावा कई ने किया, परंतु जिसकी वास्तविकता से सभी अपरिचित है – लाल किला।
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भारत के सबसे अप्रतिम रचनाओं में से एक और भारत के गौरव का प्रतीक है लाल किला। स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण भाग है लाल किला। इसका निर्माण आधिकारिक तौर पर मुगल इतिहासकारों के अनुसार उस्ताद अहमद लाहौरी ने करवाया था, जिन्होंने ताजमहल की नींव भी रखी थी। 1638 में इसका निर्माण प्रारंभ हुआ था, जब मुगल बादशाह शाहजहाँ ने मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा से स्थानांतरित कर पुनः दिल्ली की।
यह किला कहने को मुगल वास्तुकला का प्रतीक है। इसे यूनेस्को में विश्व हेरिटेज साइट रेटेड है। परंतु कुछ प्रश्न ऐसे भी है, जो हमें ये सोचने पर विवश कर देते हैं कि क्या दिल्ली का विश्वप्रसिद्ध लाल किला वास्तव में मुगलों का ही है, ये इसकी विरासत पर वास्तव में किसी और का अधिकार है? हम में से कई लोगों को इतना तो स्मरण ही होगा कि दिल्ली के सात नगर हैं, जिनमें से सबसे प्राचीनतम ढिल्लिका है, जिसे कुछ लोग किला राय पिथौड़ा भी कहते हैं। इसकी स्थापना तोमर वंश के राजपूतों ने की थी, जिनके सबसे वीर योद्धा थे राजा अनंगपाल तोमर। राष्ट्रीय संग्रहालय में एक शिलालेख में ढिल्लिका के गुणगान में ये भी कहा गया है –
देशोऽस्ति हरियानाख्यो पॄथिव्यां स्वर्गसन्निभः
— ढिल्लिकाख्या पुरी तत्र तोमरैरस्ति निर्मिता
अर्थात जिस हरी के योग्य, स्वर्ग समान भूमि पर तोमर वंश ने ढिल्लिका नगर की स्थापना की है। कहते हैं इन्ही अनंगपाल तोमर ने लाल कोट की स्थापना की, जिसके भग्नावशेष आज भी पाए जाते हैं।
तो फिर समस्या किस बात की है? आखिर हमें सिद्ध क्या करना है? कभी आपने सोचने का प्रयास किया है कि जो दुर्ग मुगलों की शान मानी जाती है, उसमें मुगलों के गौरव का उल्लेख करता हुआ एक भी प्रशस्ति पत्र क्यों नहीं है? कभी सोचा है कि लाल किले इतना विशाल, इतना हवादार और इतना भव्य कैसे हो सकता है? ये एक इस्लामिक भवन का परिचय तो नहीं हो सकता!
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चलिए, हम मान लेते हैं कि मुगलों ने इस दुर्ग का निर्माण कराया, लेकिन ये क्या है –
इस चित्र के अनुसार मुगल बादशाह शाहजहाँ ईरान के राजदूत का आवाभगत करते हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसकी प्रति ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में भी रखी है। इसमें इस वार्तालाप का वर्ष 1628 बताया गया है, जब शाहजहाँ मुगल साम्राज्य की गद्दी को बस संभाले ही थे। परंतु लाल किला तो 1638 में बना था न? तो जनाब दिल्ली में दीवान-ए-आम में कैसे?–
But one can see the photo (painting), of Shahjahan’s time preserved in the Bodleian Library, Oxford. It depicts Shajahan receiving the Persian ambassador inside the fort in 1628, the very year of Shahjahan’s accession. Obviously the fort existed much before Shahjahan. pic.twitter.com/92rgaRSzxR
— Avinash Srivastava 🇮🇳 (@go4avinash) February 24, 2020
इसके अतिरिक्त मुगलशाही तो तोपखाने और आयुध निर्माण में निपुण थे, परंतु लालकिले की संरचना को अगर ध्यान से देखा जाए तो इससे एक मध्यकालीन दुर्ग की कम, और एक प्राचीन दुर्ग की भावना अधिक आती है, जिसमें आयुध और तोप के लिए कोई स्थान नहीं। कल्पना कीजिए, अगर यही दुर्ग किसी राजपूताने प्रांत में होता, जैसे अजमेर, मेवाड़, या मारवाड़, तो क्या इसकी तार्किकता और महत्व कम होती? –
There are statues of Hindu Mahavants riding the elephants of the doors of each interior room of “Khas Mahal” in the Red Fort. pic.twitter.com/9axb4fCym5
— Avinash Srivastava 🇮🇳 (@go4avinash) February 24, 2020
इसी की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए एक ट्विटर यूजर अविनाश श्रीवास्तव ने कुछ फोटो के साथ दावा करते हुए ट्वीट किया, “लाल किले के दीवान ए खास, यानि बादशाह के मुख्य महल में आपको शाही प्रतीक चिन्ह मिलेंगे, जो मुगलकालीन तो कतई न थे। इसमें एक जोड़ी खड़ग [तलवार] के साथ पवित्र कलश और न्याय के प्रतीक चिन्ह तराजू भी सम्मिलित हैं। क्या ये मुगल राज के प्रतीक हैं?” –
In Red Fort’s Khas Mahal, alias the King’s main apartment, one can find the royal emblem of its builder King Anangpal. It has of a pair of swords laid hilt to hilt curving upwards, the sacred Hindu pot (kalash) above the hilts, a lotus bud and a pair of scales of justice over it. pic.twitter.com/iPzasMH4it
— Avinash Srivastava 🇮🇳 (@go4avinash) February 24, 2020
यदि ये बात शत प्रतिशत सत्य हैं, और आप भी लाल किले को ध्यान से देखें तो किसी भी दृष्टिकोण से ये एक मुगलकालीन रचना तो कदापि नहीं लगती। कोई भी दुर्ग इतना भव्य, और लाल बलुआ पत्थर यानि sandstone को इतना बढ़ावा नहीं देगा। फतेहपुर सीकरी और आगरा दुर्ग भी इतने भव्य और विशाल नहीं, जितना लाल किला है। तो इसका क्या निष्कर्ष है? क्या लाल किला एक सूर्यवंशी वंश का निर्माण है? हो सकता है। क्या लाल किले पर राजपूतों का अधिकार है? अवश्य हो सकता है।
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यदि ऐसा नहीं होता, तो ऐसे दुर्ग पर दशकों बाद भी मुगल के कथित वंशज दावा क्यों ठोंकते? आखिर एक खंडहर में ऐसा क्या है, जिसे वे छुपाना चाह रहे हैं? ऐसे में लाल किला / लाल कोट से एक ऐसी रीति प्रारंभ होनी चाहिए, जो तब तक नहीं खत्म हो सकती, जब तक मुगल दुर्गों एवं अन्य इमारतों की वास्तविकता के बारे में सारी सच्चाई नहीं ज्ञात होती।