आज कल देश में बवाल मचा हुआ है. सोता हिन्दू जाग गया है. हम और आप अपनी सांस्कृतिक विरासत और सम्पदा को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं. राम मंदिर का आन्दोलन आपके संघर्षों के कारण पूर्ण हुआ. ज्ञानवापी ‘मंदिर’ के लिए भी शासन के स्तर पर कारसेवा आरम्भ हो चुकी है और कृष्ण भी कलयुगी कंसों के कारागार से निकलने वाले हैं. पर, इन सब के बीच आप ‘विष्णु स्तम्भ’ को भूल तो नहीं गए. जी नहीं, अगर ‘विष्णु स्तम्भ’ कहने से ही आप समझ जाते हैं कि हम किस स्मारक को संदर्भित कर रहें हैं तो आप निश्चित रूप से नहीं भूले. आपके इसी जागरुकता और संघर्षों का ही परिणाम है कि सदियों से दबी आवाज़ चीख-चीख कर सच बताने लगी है.
अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा ने बड़ा दावा करते हुए कहा है कि कुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ऐबक ने नहीं, बल्कि राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. उनका कहना है कि राजा विक्रमादित्य ने कुतुब मीनार को सूर्य का अध्ययन करने के लिए बनवाया था. इतना ही नहीं पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा ने तो यहां तक कहा कि कुतुब मीनार असल में सन टावर या सूर्य स्तंभ है और उनके इस दावे को साबित करने के लिए इसके सबूत भी हैं. पाठकों की जानकारी के लिए बता दें कि पुरातत्व विभाग के पूर्व रीजनल डायरेक्टर भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से कुतुब मीनार का कई बार सर्वे भी कर चुके हैं.
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इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण और तथ्य निहित है!
अब हम अपने पाठकों को बताते हैं कि आखिर उनके इस दावे के पीछे कौन से वैज्ञानिक कारण और तथ्य निहित हैं. धर्मवीर शर्मा का कहना है कि कुतुब मीनार में 25 इंच का झुकाव है और ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां से सूर्य का अध्ययन किया जाता था. शायद इसीलिए, 21 जून को जब सूर्य आकाश में जगह बदल रहा था तब कुतुबमीनार की उस जगह पर परछाई तक नहीं पड़ी. यह भारत के विज्ञान और वैदिक उत्कृष्टता का प्रत्यक्ष प्रमाण है. कुछ लोग कुतुब मीनार के पास बने मस्जिद से उसका संबंध जोड़ते हुए इसे इस्लामिक वास्तुकला बता रहे हैं. पर, हम आपको स्पष्ट कर दें कि उदारवादियों और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा यह फैलाया गया एक भ्रम है. दरअसल, इस्लामिक और मुगल वास्तुकला जैसी कोई चीज ही नहीं है. वैसे भी बंजर और रेत में जन्में बर्बर आक्रान्ता इतने भव्य ईमारत की निर्माण करना तो दूर नींव रखना भी कैसे सीख सकते हैं? अतः कुतुब मीनार का उसके पास स्थित मस्जिद से कोई सम्बन्ध ही नहीं है. ऊपर से कुतुब मीनार के दरवाज़े उत्तर दिशा की ओर हैं ताकि रात के समय ध्रुव तारा देखा जा सके.
महरौली से है खगोल विज्ञानी मिहिर का संबंध
इस बात के अत्यधिक प्रमाण हैं कि कुतुब मीनार वास्तव में विष्णु स्तंभ था, जो कुतुबुद्दीन से भी सैकड़ों वर्ष पहले मौजूद था. कुतुब मीनार के पास एक बस्ती है जिसे महरौली कहा जाता है. यह मिहिर और आवेली से बना शब्द है. दरअसल, महरौली एक संस्कृत शब्द का अपभ्रंश है. इस कस्बे के बारे में कहा जाता है कि यहां पर विख्यात खगोल विज्ञानी मिहिर रहा करते थे जो विक्रमादित्य के दरबार के रत्न थे. उनके साथ उनके सहायक गणितज्ञ और तकनीक भी रहते थे. वे लोग इस कथित कुतुब टावर का उपयोग खगोलीय गणना और अध्ययन के लिए करते थे. और इस टावर के चारों और हिंदू राशि चक्र को समर्पित 27 नक्षत्रों या तारा मंडलों के लिए मंडप द्वार थे, जो कि कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा नष्ट कर दिए गए. जिस मंदिर को भी उसके द्वारा नष्ट किया गया उसे ही कुवत उल इस्लाम का नाम दिया गया अर्थात् इस्लाम के ताकत की जोर पर तोड़े गए मंदिर. अब जब आप जानने, जगने और जगाने लगे है तो उम्मीद है कि विष्णु स्तम्भ पर लगा कलंक भी जल्द ही धुल जायेगा.