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पश्चिमी देश अभी तक प्लास्टिक नीति पर विचार ही कर रहे हैं, भारत ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैन कर दी

पश्चिमी देश बस नाम के आगे हैं, होता उनसे कुछ नहीं!

Ruchi Mehra द्वारा Ruchi Mehra
30 June 2022
in चर्चित
plastic

Source- TFIPOST.in

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दुनियाभर के लिए प्लास्टिक का कचरा मौजूदा वक्त में एक बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है। आज आप जहां कभी देख लें प्लास्टिक हर जगह देखने को मिल जाएगी। रोजमर्रा की जिंदगी में हम प्लास्टिक से बनी चीजों का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं।  यह जानते हुए भी कि प्लास्टिक हमारी सेहत के साथ-साथ पर्यायवरण को भी कितना बड़ा नुकसान पहुंचाती है। अब समय आ गया है कि प्लास्टिक से पीछा छुड़ाने का।

इसी संबंध में भारत एक बड़ा कदम उठाते हुए एक जुलाई से पूरे देश में एकल उपयोग यानी सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 4 वर्ष पहले देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की शपथ ली थीं। इसके बाद अब एक जुलाई 2022 से प्लास्टिक के खिलाफ युद्ध में भारत पहला कदम बढ़ाने जा रहा है। सभी राज्यों में कम उपयोगिता और अधिक कूड़ा पैदा करने वाली 19 वस्तुओं के निर्माण, भंडारण, आयात, वितरण, बिक्री और उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगने वाला है।

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और पढ़ें: US vs India: एक प्लास्टिक चबाता है तो दूसरा बायोजेट फ्यूल इनोवेशन में विश्वास करता है

19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लगने जा रहा है

ये है वो वस्तुए प्लास्टिक स्टिक वाले ईयर बड्स, गुब्बारों की प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइस्क्रीम स्टिक, प्लास्टिक प्लेट, कप, प्लास्टिक पैंकिंग आइटम, सिगरेट के पैकेट समेत अन्य चीजें शामिल रहेगीं।  सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रतिबंध से जुड़े नियमों का सख्ती से पालन करना होगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा पारित आदेश के अनुसार- “मॉल से लेकर किसी दुकान में प्लास्टिक का उपयोग होते पाया गया, तो दुकान का ट्रेड लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। दुकानदार को फिर दोबारा नए सिरे से ट्रेड लाइसेंस लेना पड़ेगा। साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा।“

सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध बेहद ही जरूरी है। यह भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग केवल एक ही बार होता है। यह आसानी से नष्ट नहीं होती। तो इन्हें रिसाइकल किया जा सकता और ना ही जलाया जा सकता है। इससे प्रदूषण काफी बढ़ता है। यह पर्यायवरण के साथ इंसानों और पशुओं को भी काफी नुकसान पहुंचाती हैं।

परंतु ऐसा नहीं है कि हमेशा से हम प्लास्टिक को यूं अंधाधुंध इस्तेमाल करते आ रहे है। आज से कुछ दशक पहले के समय को देखें तो प्लास्टिक का इतने बड़े स्तर पर उपयोग नहीं होता था, जितना आज हो रहा है। 50 साल पहले अधिकतर पेय पदार्थ कांच की बोतलों में बिका करते थे। हालांकि फिर धीरे-धीरे प्लास्टिक का इस्तेमाल बढ़ने लगा। प्लास्टिक की बोतले, कांच की बोतलों की तुलना में सस्ती हुआ करती थीं। इसके साथ ही कांच की बोतलों को लाने और ले जाने में भी चुनौती का सामना करना पड़ता था। ऐसे में धीरे-धीरे प्लास्टिक की बोतलों ने अपनी जगह बनाई। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत आज प्लास्टिक के खतरे को देखते हुए सख्त कदम उठा रहा है। परंतु स्वयं को विकसित बताने वाले अमेरिका जैसे देश ने प्लास्टिक को नष्ट करने के लिए अब तक कोई ठोंस प्रयास नहीं किए। इसके विपरीत यह देश विश्वभर में प्लास्टिक की समस्या को बढ़ा ही रहे है।

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पश्चिमी देशों को भी लगाना चाहिए प्लास्टिक पर बैन

2021 में अमेरिकी सरकार को सौंपी गई एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे अधिक कचरा फैलाने वाला देश कोई और नहीं अमेरिका है। एक अमेरिकी औसतन सालभर में 130 किलोग्राम प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करता है। रिपोर्ट में बताया गया कि वर्ष 2016 में अमेरिका ने 42 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन किया, जो चीन के प्लास्टिक कचरे का दोगुना से भी अधिक था। साथ ही प्लास्टिक के इस बढ़ते हुए संकट से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति बनाने का भी आह्मन किया गया था। यह आंकड़ें को केवल वर्ष 2016 के थे। तब तक कई देशों ने अमेरिका से कचरे के आयात पर रोक तक नहीं लगाई थी। ऐसे में अब स्थिति कितनी गंभीर हो गई, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

इसके अलावा अमीर देशों द्वारा गरीब देशों को डंपिंग स्थल की तरह भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे पश्चिमी देश अफ्रीकी देशों के अलावा चीन, इंडोनेशिया समेत कई देशों को अवैध तरीके से कचरा भेजते आ रहे हैं, जो इन देशों के लिए चुनौती बन गया। इससे समस्या इतनी बढ़ गई कि इसके कारण चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतमान, थाईलैंड और फिलीपींस जैसे देशों को विदेशी कचरा लेने से इनकार करना पड़ा।

यानी पश्चिमी देश प्लास्टिक के कचरे का सही तरह के प्रबंध न करके अपने साथ-साथ पूरी दुनिया के भविष्य को गहरे संकट में डाल रहे है। ऐसे में अब यह वक्त की आवश्यकता हो गई है कि भारत की तरह पश्चिमी देश भी समस्या बढ़ाने की बजाए विश्व पर से प्लास्टिक के इस संकट को कम करने के लिए कठोर कदम उठाए।

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आत्मनिर्भर भारत की वैज्ञानिक विजय: ‘नैफिथ्रोमाइसिन’, कैंसर और डायबिटीज के मरीजों के उम्मीदों को मिली नई रोशनी, जानें क्यों महत्वपूर्ण है ये दवा

21 October 2025

भारत ने वह कर दिखाया है जो कभी केवल विकसित देशों की प्रयोगशालाओं की सीमाओं में संभव माना जाता था। देश ने अपना पहला स्वदेशी...

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