लोकसभा उपचुनाव में भाजपा ने इन चेहरों पर लगाया है दांव, यहां समझिए क्या है रणनीति?

'सपाई' किले को नेस्तनाबूत करने की हो गई है तैयारी!

लोकसभा उपचुनाव

Source- TFI

भाजपा ने बीते शनिवार को भोजपुरी अभिनेता से नेता बने दिनेश लाल यादव “निरहुआ” को उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा उपचुनाव के लिए आजमगढ़ से अपना उम्मीदवार घोषित किया। वहीं, रामपुर लोकसभा सीट के लिए पार्टी ने समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व एमएलसी घनश्याम लोधी को मैदान में उतारा है। निरहुआ और लोधी दोनों ओबीसी उम्मीदवार हैं। निरहुआ ने वर्ष 2019 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से हार गए थे। रामपुर में सपा के आजम खान ने बसपा और रालोद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी।

रामपुर और आजमगढ़ सीटों के लिए लोकसभा उपचुनाव क्रमश: आजम खान और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद जरूरी हो गए हैं। दोनों ने विधानसभा चुनाव जीतकर अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। बसपा ने आजमगढ़ के लिए ही अपने उम्मीदवार की घोषणा की है और उसने रामपुर में उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। लोकसभा उपचुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 6 जून है और मतदान 23 जून को होना है, जबकि मतगणना 26 जून को होगी।

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आजमगढ़ के लिए भाजपा की रणनीति

जहां तक आजमगढ़ से निरहुआ को टिकट देने का प्रश्न है तो यह भाजपा की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा ने पुनः निरहुआ के रूप में एक लोकप्रिय भोजपुरी अभिनेता पर दांव लगाया है। आज़मगढ़ में  मुस्लिम और ओबीसी मतदाताओं की प्रभावशाली भूमिका है। निरहुआ को टिकट क्यों मिला है, इसका एक बड़ा कारण है। निरहुआ का दावा इसलिए भी मजबूत था क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन पर दांव लगाया था। हालांकि, उन्हें समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अखिलेश यादव ने करीब 2 लाख 60 हजार वोटों के अंतर से हरा दिया था।

लेकिन, यादवों के बीच अपना जनाधार मजबूत करने के लिए भाजपा ने यह सियासी चाल चला है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने यादव बहुल करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीतकर राज्य की राजनीति करने का फैसला किया है। इसलिए उन्होंने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी, जिसके चलते वहां उपचुनाव कराना पड़ रहा है। वैसे सपा ने पिछले विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ की सभी 10 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, भाजपा ने उन्हें हर सीट पर कड़ी टक्कर दी। इस बार लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने इस सीट से दलित चेहरे सुशील आनंद पर दांव लगाया है यानी इस बार समीकरण पूरी तरह से बदलते नजर आ रहे हैं। निरहुआ ने लोकसभा चुनाव 2019 में अखिलेश यादव को कड़ी टक्कर दी थी। राजनीतिक जानकारों का तो यही कहना था कि अगर अखिलेश की जगह कोई और प्रत्याशी होता तो निरहुआ 2019 में ही उन्हें मात दे दिए होते।

रामपुर के लिए भाजपा की रणनीति

भारतीय जनता पार्टी ने रामपुर लोकसभा उपचुनाव में जिस घनश्याम लोधी को टिकट देकर उम्मीदवार बनाया है, वही घनश्याम लोधी एक समय सपा नेता आजम खां के बेहद करीबी थे। उनका आजम खां के साथ रिश्ता इस कदर गहरा था कि जब वह प्रधानी का चुनाव हार गए थे तो आजम ने उन्हें एमएलसी बनवाया था। इसके लिए समाजवादी पार्टी का उनका टिकट हेलीकॉप्टर से लाया गया था। घनश्याम सिंह लोधी विधानसभा चुनाव के दौरान ही भाजपा में शामिल हुए। हालांकि, वर्ष 1998 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष भी रहे हैं। वर्ष 1999 में वह बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए थे। इसके बाद वह कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी में शामिल हो गए। वर्ष 2006 में वह इसी पार्टी के टिकट पर एमएसली का चुनाव लड़े और जीत गए। प्रदेश में तब सपा की सरकार थी और राष्ट्रीय क्रांति पार्टी भी उसमें शामिल थी।

भाजपा ने चली ये ‘चाल’

भाजपा के रणनीतिकार इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि रामपुर में आजम खान को हराना बेहद मुश्किल है। ऐसे में पार्टी ने उनके कभी भरोसेमंद रहे घनश्याम लोधी को चुना है। पार्टी जानती है कि वो आजम खान की हर रणनीति से अच्छी तरह वाकिफ हैं और रामपुर में वो पूरे जोश के साथ चुनाव लड़ सकते हैं। दलित चेहरा होना भी पार्टी के लिए अच्छा माना जाता है। भाजपा को उम्मीद है कि यहां सपा से जुड़े लोधी वोटर भी उसके पाले में आएंगे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में रामपुर में 10,54,344 मतदाता थे। उस चुनाव में 63.17 प्रतिशत मतदान हुआ था। आजम खान को 5,59,177 वोट मिले। भाजपा प्रत्याशी को 4,49,180 मत मिले। भाजपा को उम्मीद है कि इस बार पार्टी आजमगढ़ से अच्छा प्रदर्शन कर सकती है और दलित उम्मीदवार होने से पार्टी को काफी फायदा हो सकता है।

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