चीन भारत को अपने स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति के सहारे घेरने की साजिश रच रहा है। चीन ने हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में डेट ट्रैप पॉलिसी का प्रयोग करके, अपना प्रभाव बढ़ाया है। हालांकि भारत द्वारा चीन की योजनाओं का रणनीतिक जवाब दिया जा रहा है और न केवल चीन को सफलतापूर्वक हर मोर्चे पर पराजित किया जा रहा है बल्कि चीन की अपनी सुरक्षा भी खतरे में पड़ चुकी है। चीन बेल्ट एंड रोड योजना के अंतर्गत डेट ट्रैप पॉलिसी का प्रयोग करके महत्वपूर्ण बंदरगाह पर कब्जे के लिए छोटे देशों को कर्ज देकर उन्हें फंसा रहा है। चीन भारत के पड़ोस में ऐसे बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है जिनका आर्थिक और सैनिक दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सके। बेल्ट एंड रोड परियोजना के अंतर्गत चीन अपने प्राचीन सिल्क रूट अथवा रेशम मार्ग के व्यापार को पुनर्जीवित करके न केवल अपने आर्थिक हितों की पूर्ति कर रहा है बल्कि इसके माध्यम से अपनी कूटनीतिक चालों को भी अंजाम दे रहा है।
म्यांमार में क्यौकप्यू (Kyaukpyu) बंदरगाह, श्रीलंका में हंबनटोटा और CICT टर्मिनल प्रोजेक्ट, पाकिस्तान में ग्वादर और करांची तथा जिबूती में दोरालेह (Doraleh) चीन की पकड़ में हैं। यहाँ उसके प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं। चीन का प्रयास है कि महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों पर स्थित चोक पॉइंट पर अपनी पकड़ मजबूत की जाए। चोक पॉइंट व्यापारिक मार्गों पर स्थित ऐसी जगहों को कहते हैं जहां से आवागमन के लिए बहुत पतले रास्ते होते हैं और समस्त व्यापार इसी एकमात्र रास्ते से होकर गुजरता है। ऐसे चोक पॉइंट पर जिस भी देश की मजबूत नौसैनिक पकड़ होगी वह उस मार्ग से होने वाले संपूर्ण व्यापार को नियंत्रित कर सकता है। चीन चाहता है कि स्ट्रेट ऑफ मलक्का, स्ट्रेट ऑफ हरमुज, स्ट्रेट ऑफ मंडेब और लोम्बोक स्ट्रेट पर अपनी पकड़ मजबूत कर ले।
और पढ़ें : चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ को भारत के ‘नेकलेस ऑफ डायमंड्स’ ने ध्वस्त कर दिया है
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र
चीन 21वीं शताब्दी में महाशक्ति बनने का सपना देखता है। चीन चाहता है कि उसकी नौसैनिक धमक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बनी रहे। हिंद प्रशांत क्षेत्र को ग्लोबल हाइवे कहा जाता है। वैश्विक व्यापार का 40% हिस्सा इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है। विश्व की कुल जीडीपी का 62% इस क्षेत्र पर निर्भर है। जल से होने वाले व्यापार का 80% इसी क्षेत्र में होकर गुजरता है। इसलिए चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में रखना चाहता है और इसलिए स्वतंत्रता के पक्षधर देशों का यह कर्तव्य है कि वैश्विक शांति और व्यापारिक स्थिरता के लिए इस क्षेत्र में चीन के दबदबे को समाप्त करें।
यहां से भारत की केंद्रीय भूमिका शुरू होती है। भारत हिंदू प्रशांत क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण नौसैनिक शक्ति है। इसलिए भारत क्षेत्रीय सैन्य साझेदारियों के माध्यम से इस ग्लोबल हाईवे की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठा रहा है। भारत ने चीन को घेरने तथा उसकी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति का जवाब देने के लिए नेकलेस ऑफ डायमंड्स नीति अपनाई थी और अब सुरक्षात्मक कार्यधारियों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए डबल फिश हुक योजना तैयार की गई है।
और पढ़ें: इस तरह भारत पेपर ड्रैगन को हर मोड़ पर मात दे रहा है
डबल फिश हुक रणनीति
डबल फिश हुक योजना के अंतर्गत भारत ने सामरिक महत्व के बन्दरगाहों पर अपनी उपस्थिति और पहुँच बनाकर पूरे हिन्द महासागर क्षेत्र में सुरक्षा घेरा बनाने की योजना तैयार की है। इस फिश हुक में पहला घेरा अंडमान निकोबार द्वीप समूह से शुरू होता है जहाँ भारत का नौसैनिक अड्डा है। वहाँ से इंडोनेशिया स्थित सबांग बन्दरगाह इसका दूसरा पड़ाव है, जिस बन्दरगाह का विकास भारत और इंडोनेशिया साथ मिलकर कर रहे हैं। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के कोकोस आइलैंड इसमें शामिल हैं। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच जून 2020 में द्विपक्षीय लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट हुआ है, जिससे दोनों देशों की नौसेना, ईंधन से लेकर हथियारों तक के लिए दूसरे देश के बंदरगाह का प्रयोग कर सकती है। इसके बाद पूर्वी हुक का अंतिम पड़ाव अमेरिका का डिएगो गार्सिया मिलिट्रीबेस है। भारत और USA के बीचcomcasa, LEMOA जैसे समझौते हैं। दोनों देश आवश्यक सूचनाएं, सेटेलाइट इमेज, ईंधन, स्पेयरपार्ट्स सहित अन्य आवश्यक सहयोग एक दूसरे को दे सकते हैं।
डबल फिश हुक का पश्चिमी भाग ओमान के दुकम बन्दरगाह से शुरू होता है। भारतीय सेनाएं इस बन्दरगाह का प्रयोग कर सकती हैं। इसके बाद जिबूती में भारत का सैन्य अड्डा है। वहाँ से आगे बढ़ें तो पूर्वी अफ्रीका में मेडागास्कर, सेशल्स और अंत में मॉरीशस में भारत की नौसैनिक पहुँच है, अथवा सैन्य अड्डे मौजूद हैं। वैसे तो मेडा गास्कर में भारत अफ्रीका के पायरेट्स पर निगरानी रखता है, किन्तु वास्तव में यह हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की नौसैनिक उपस्थिति का ही एक माध्यम है। सेशल्स और मॉरीशस में भारत के सैन्य अड्डे की बात चर्चा का केंद्र है किंतु इसकी कभी पुष्टि नहीं होती। जो भी है वह गुप्त है किंतु इन देशों की जल सीमाओं में भी भारतीय नौसेना की मौजूदगी है यह जगजाहिर है। मॉरीशस में तो भारत के पोसाइडन एयरक्राफ्ट होने की भी बात चर्चा में रही है। पश्चिमी फिश हुक में फ्रांस के हिंद महासागर में स्थित भू क्षेत्रों पर बने सैन्य अड्डा को भी शामिल किया जाता है क्योंकि भारत और फ्रांस के बीच भी रक्षा समझौता हो चुका है।
और पढ़ें: अंडमान और निकोबार की रणनीतिक क्षमता में इस तरह से ऐतिहासिक वृद्धि कर रहे हैं पीएम मोदी
भारत ने अपनी सुदृढ़ और सूझबूझ भरी विदेश नीति के बल पर मित्र राष्ट्रों की सहायता से हिंद महासागर में अपनी पकड़ मजबूत की है। अब आवश्यकता है नौसैनिक शक्ति के विस्तार की। भारत को अपने तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण के लिए कार्य शुरू करना होगा। अब न्यूक्लियर सबमरीन, लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक शिप की संख्या में विस्तार करना आवश्यक है। भारत का नौसैनिक विस्तार भारत की कूटनीतिक सफलताओं के प्रभाव को और सुदृढ़ करेगा।