भोजपुरी में एक कहावत है ‘आटा मड़ले आ दुष्ट कड़ले, ठीक रहेला।’ कहने का तात्पर्य है की ‘आटे को जितना गूंथेंगे और दुष्ट प्राणी को जितना कूटेंगे’ उसके स्वभाव में उतना ही निखार आता जाएगा। आप माने या न माने पश्चिम के संदर्भ में यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है।
नेहरू के समय हमने हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया किंतु, यह बात चीनियों को समझ नहीं आयी। मनमोहन के समय देश मौन रहा तो यह स्वाभाव भी चीनियों को कायरता लगी। उनका जब मन करता मुंह उठाकर भारत में घुस जाते, भारतीय लोगों को अगवा कर लेते, हमारे बंकर और बैरक तोड़ देते और अपना लाल झंडा लगाकर उस हिस्से को पहले विवादित बनाते और फिर भारत से अलग कर देते।
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चीन अब भारत के सामने घुटनों पर है
थोड़ा-थोड़ा करके उन्होंने भारत की विशाल भूमि को हथिया लिया। जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बता दिया और इतना ही नहीं अपने सीपेक परियोजना के लिए पाक के हाथों जम्मू कश्मीर में कुछ भूमि भी पा लिया। किंतु फिर, भारत में लोगों का मन परिवर्तन हुआ जिसके फलस्वरूप सत्ता परिवर्तन हुआ और फिर भारत ने कहा- “बस बहुत हुआ।” भारत ने फिर यह ठान लिया कि वह न सिर्फ चीन द्वारा अपने ऊपर किए जा रहे अत्याचारों को रोकेगा बल्कि वह इस क्रूर साम्यवादी सरकार के विस्तारवादी सोच को ही ध्वस्त कर देगा। दुनिया के साथ साथ चीन को भी समझ में आ गया कि भारत ने जो शांति छोड़ दी तो फिर भारत जैसा भीषण राष्ट्र दुनिया में अन्य कोई नहीं है। शायद, इसीलिए चीन अब भारत के सामने घुटनों पर है और संबंध सुधारने की गुहार लगा रहा है।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे अब चीन भारत से संबंधों में सुधार की गुहार लगा रहा है। चीन के राजदूत और रक्षामंत्री से लेकर विदेश मंत्री तक भारत के साथ सीमा मुद्दे को “उचित स्थान” पर रखने की आवश्यकता को दोहराते नहीं थक रहे?
इस सम्बन्ध में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए चार सिद्धांत को लेकर पहुंचे भारतीय राजदूत प्रदीप रावत के पास और इसे “चार-आयामी दृढ़ता” करार दिया। यह अपने आप में ही चीन के स्वभाव और कूटनीति के विपरीत व्यवहार है लेकिन पहले आप चीन की याचना सुनिए:-
- पहला सिद्धांत यह था कि दोनों देश खुद को भागीदार मानते हैं, न कि प्रतिद्वंद्वी या खतरा।
- भारत को संबंधों के केंद्र में सीमा विवाद को नहीं रखना चाहिए और बाकी स्तरों पर संबंधों को आगे बढ़ने देना चाहिए, यह दूसरा सिद्धांत है।
- तीसरा सिद्धांत, दोनों पक्षों को “द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक ऊर्जा को लगातार [इंजेक्ट] करना है.
- चौथा बहुपक्षीय सहयोग का विस्तार करने, ओरिएंटल सभ्यताओं को पुनर्जीवित करने, जटिल दुनिया का एक साथ मुकाबला करने और मानव जाति के लिए एक उज्जवल भविष्य खोलने के लिए है।
ऐसा क्यों हुआ?
चीन से त्रस्त सारे राष्ट्र भारत के शरण में आ गए। फिर क्या था भारत ने भी चीन को चहुं दिशाओं से घेरना प्रारंभ कर दिया। चारों दिशाओं से हमारा अर्थ चीन की सामरिक, कूटनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक घेरेबंदी से है। हमने उन्हें डोकलाम में रोका, लद्दाख पर चिल्लाते रहे फिर भी, हमने उसे केंद्रशासित राज्य का दर्जा दिया। सीमा पर आधारभूत संरचना मजबूत की और शक्ति प्रदर्शन भी किया। हम क्वाड समूह में भी शामिल हुए। ताइवान से रिश्ते मजबूत किए। वियतनाम, फिलीपींस, कंबोडिया आदि देशों के साथ संबंध स्थापित किए। दक्षिणी चीन सागर को चीन की बपौती मानने से इंकार कर दिया और जब उन्होंने गलवान में हरकत करने की कोशिश की तब हमारे जवानों ने उनकी ऐसी कुटाई कि उनकी आने वाली पीढ़ियां तक याद रखेंगी।
ऊपर से भारतीय सेना ने उन्हें मारा तो मारा रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ चोटियों पर कब्जा भी कर लिया। चीनियों को लगा कि मामला तो उल्टा पड़ गया और तो और उन्होंने बातचीत से मामला सुलझाने की कोशिश की। भारत जानता था कि चीन कभी नहीं सुधरेगा अतः हमने बातचीत भी अपने शर्तो पर की और फिंगर पॉइंट के देपसांग और हॉट स्प्रिंग्स जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर डटे रहे। ड्रैगन ने डराने की खूब कोशिश की और तो और इसके लिए उन्होंने चीनी सैनिकों की ड्रेस पहने हुए कलाकारों को भी उतारा। किन्तु, भारत ने स्पष्ट सन्देश दिया की अगर सीमा गतिरोध जारी रहता है तो बाकी संबंध सामान्य नहीं हो सकते। हमारी सेना 1 इंच भी पीछे नहीं हटी। चीनी सैनिक भी जानते थे कि जितने इंच की उनकी लंबाई है उससे ज्यादा चौड़ी तो भारतीय सेना के जवानों की छाती होती है। अतः चीनी संपूर्ण समर्पण की मुद्रा में आ गए।
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हमने चीन को नाकों चने चबवा दिए
कूटनीतिक स्तर पर भी हमने चीन को नाकों चने चबवा दिए। पिछले हफ्ते, भारतीय अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 आईएसआईएल और अल-कायदा प्रतिबंध समिति में जमात-उद-दावा (जेयूडी) प्रमुख हाफिज सईद के एक रिश्तेदार की सूची पर रोक लगाने के लिए चीन की अनौपचारिक रूप से आलोचना की थी।
इसका प्रतिफल यह निकला की अब चीनी विदेश मंत्री वांग यी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर अपने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर के उस बयान की सराहना कर रहे हैं। चीन और भारत के बीच साझा हित को मतभेदों से बड़ा बता रहें है। एक-दूसरे पर संदेह करने के बजाय विश्वास बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं। भारतीय छात्रों की चीन वापसी पर जल्द प्रगति देखने की उम्मीद के साथ साथ जल्द से जल्द सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने का भी जिक्र कर रहें हैं। निसंदेह, यह सामरिक, आर्थिक, रणनीतिक, कूटनीतिक और विदेशी सम्बन्ध के मुद्दे पर चीन की पराजय का प्रतीक है.
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