आपने कहावत तो सुनी ही होगी खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे, असदुद्दीन ओवैसी के लिए यह बातें अब एकदम सटीक साबित होती हैं। अब उनको उन्हीं के धर्म के लोग संजीदगी से नहीं लेते हैं। हालिया बयान है मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के पर पोते याकूब हबीबुद्दीन तुसी उर्फ प्रिंस तुसी का जिन्होंने ओवैसी और उनके कार्यों पर उन्हें जमकर धोया। एजेंडाधारी ओवैसी के कृत्यों को अबतक अन्य विपक्षी पार्टियां ही लताड़ती थीं पर उनके समुदाय के साथी भी अब उनकी लंका लगाने में लग गए हैं। ओवैसी जिस प्रकार से हर मुद्दे को धार्मिक एंगल देने के साथ ही उसका राजनीतिकरण करते हैं उसको स्वयं तुसी ने भी जमकर आड़े हाथों लिया जिसके बाद यह सिद्ध हो गया कि, ओवैसी को मुसलमान भी गंभीरता से नहीं लेते हैं और वो चले हैं राष्ट्रीय राजनीति करने।
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प्रिंस तुसी ने असद्दुदीन ओवैसी को लताड़ा
दरअसल, तुसी उस शाही परिवार से आते हैं जो कभी भारत के बड़े क्षेत्रों पर शासन करते थे। प्रिंस तुसी, राजनीति के लिए कुछ भी करने के लिए आतुर AIMIM प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी को उनकी राजनीति के लिए लताड़ते अमूमन मिल जाते हैं। इस बार फिर से उन्होंने जमकर ओवैसी को धोते हुए बड़ा लताड़ा। उन्होंने ओवैसी की पूरी वंशावली बता दी। प्रिंस तुसी ने ज्ञानवापी मामले पर ओवैसी पर मुसलमानों को भड़काने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की है।
याकूब हबीबुद्दीन तुसी ने ओवैसी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो हैदराबाद की मस्जिदों की ठीक से रखवाली नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन ज्ञानवापी मामले पर मुस्लिमों को भड़का रहे हैं। यह ओवैसी के लिए बड़े आक्रमण जैसा प्रतीत होता है जिसका बचाव करने में ओवैसी स्वयं को असफल ही पाएंगे। घर से बैठकर तक़रीरें और अपने ज्ञान को बिखेरते हुए ओवैसी हर मुद्दे पर मोदी सरकार पर आक्रामक होते दिखते हैं। निश्चित रूप से यह ही तो लोकतंत्र की ख़ूबसूरती है पर जो ओवैसी करते हैं वो विपक्षी हमले के अतिरिक्त थोड़ा और निम्न स्तरीय कृत्य हो जाता है।
ज्ञात हो कि यह पहली बार नहीं है जब याकूब हबीबुद्दीन तुसी ने ओवैसी को घेरते हुए अपनी बात रखी है। 4 अगस्त 2020 को जब प्रिंस तुसी से असदुद्दीन ओवैसी और अन्य विपक्षी नेताओं जैसे आलोचकों, जिन्होंने अयोध्या में समारोह के लिए प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा पर सवाल उठाए थे। तब उन्होंने ओवैसी को जोकर कहा था। साथ ही कहा था कि उसकी आपत्ति पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।
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इन सभी बातों से यह सिद्ध हो चुका है कि कट्टरता फैलाते-फैलाते ओवैसी अपने समुदाय से भी दूर हो गए और उनका समुदाय भी उन्हें अब संजीदा नहीं लेता है। आज़ादी के बाद हुए तमाम विश्लेषण करने पर ये बात साफ़ हो जाती है कि मुसलमान कभी किसी मुस्लिम नेतृत्व वाली पार्टी के पीछे नहीं चले। मुसलमान ऐसी पार्टियों की सभाओं में उनके जज्बाती भाषण सुनकर तालियां तो ख़ूब पीटते रहे। लोकिन वोट करते वक्त उनकी पसंद धर्मनिरपेक्ष दल ही रहे।