देवेंद्र फडणवीस ने सत्ता से अपदस्थ होने के पश्चात अपने व्यक्तित्व का वास्तविक परिचय दिया और कैसे एक-एक ईंट हटाते हुए उद्धव ठाकरे के हवा से भी हल्के साम्राज्य को पूरी तरह धसका दिया। ये कथा प्रारंभ होती है अक्टूबर 2019 में, जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव आयोजित कराए गए थे। वो तो शिवसेना ने भाजपा को धोखा दे दिया था वरना 288 में 152 सीट पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 105 सीटों पर विजय प्राप्त हुई और तत्कालीन गठबंधन सहयोगी शिवसेना जिसने 123 सीटों पर चुनाव लड़ा, उसे मात्र 56 सीटों पर जीत दर्ज़ कर पाई।
परंतु सत्ता का लोभ शिवसेना को ऐसा लगा, कि जो रेखा ठाकरे परिवार को कभी नहीं लाँघनी थी, वो भी लांघ दी, और परिणाम था महाविकास अघाड़ी की खिचड़ी सरकार, जहां नीति और तर्क विरुद्ध शिवसेना, कांग्रेस एवं एनसीपी एकसाथ खड़े थे। देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक कौशल का अंदाज़ा शिवसेना से लेकर सभी दलों को था इसलिए उन्हें नीचे लाने के चक्कर में बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा को धकेल उद्धव ठाकरे ने अघाड़ी गठबंधन के साथ सरकार बना ली, परंतु जनता तो जनता, कहीं न कहीं बालासाहेब ठाकरे की आत्मा भी कोसती होगी।
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फिर क्या था, हिंसा, अत्याचार और कुशासन का वो युग प्रारंभ हुआ, जिसके बारे में जितना भी लिखें वो कम होगा। बुलेट ट्रेन परियोजना में विलंब, आरे मेट्रो शेड निर्माण पर रोक, कानून व्यवस्था तार-तार होना, पालघर हत्याकांड, सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मृत्यु, आप बस बोलते जाइए और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र में सब हुआ। रही सही कसर कोविड की महामारी ने पूरी कर दी। ऐसा लगा मानो अब महाराष्ट्र का कुछ नहीं हो सकता और यह शीघ्र ही अगला बिहार या बंगाल बनने की ओर अग्रसर है।
देवेंद्र फडणवीस ही असली नायक
ऐसे संकट में असली नायक का उत्थान होता है। समृद्धि में तो सभी राजा होते हैं, परंतु नायक वही है, जो विपत्ति में अपनी योग्यता का प्रमाण दे, और देवेंद्र फडणवीस इसी का साक्षात प्रमाण है। देवेंद्र फडणवीस वास्तव में किस मिट्टी के बने हैं, ये उनके सत्ता से बाहर होने पर ही लोगों को पता चला। इसके संकेत तो तभी मिल गए, जब उन्होंने एनसीपी के अजीत पवार के साथ महाविकास अघाड़ी के चालों को असफल करने के लिए तुरंत सत्ता बनाने में जुट गए। उन्हे उस समय सफलता नहीं मिली, परंतु एक सीख अवश्य मिली – अपने प्रयास में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।
असल में फडणवीस उन दुर्लभ राजनेताओं में से एक हैं जो किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहते हैं। अपने प्रशासन की सफलता के पीछे के फॉर्मूले के बारे में बात करते हुए, फडणवीस ने टिप्पणी की थी कि, “हर बड़ी चुनौती के लिए, डोमेन विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ एक युद्ध कक्ष बनाया गया था। चुनौतियां तो हमेशा होती हैं लेकिन मैं किसी एक चुनौती से भागा नहीं हूं, हर चुनौती का सामना किया है। जब आप उनका सामना करेंगे, तो आपको समाधान मिल जाएगा।”
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उन्होंने फिर नारायण राणे जैसे कद्दावर नेता को भारतीय जनता पार्टी की ओर बहुत पहले ही आकर्षित कर लिया था, परंतु जब उद्धव ठाकरे ने सत्ता के नशे में चूर होकर नारायण राणे को हिरासत में लेने की भूल की, तो फडणवीस ने राणे और उनके स्थानीय कैडर में उनकी लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए अपना ध्यान उस जगह पर केंद्रित किया जिसपर कम ही लोग ध्यान केंद्रित करते है नगरपालिका के चुनाव पर। हर क्षेत्र, हर नगर एवं हर पंचायत में भाजपा ने साम दाम, दंड भेद की नीति अपनाते हुए हर जगह के नगरपालिका चुनावों में सेंध लगाने लगी।
खैर, महाविकास अघाड़ी (MVS) गठबंधन महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में सबसे अधिक सीट जीतने वाले गठबंधन के रूप में उभरी है जबकि भाजपा ने सबसे बड़ी पार्टी की स्थिति को बरकरार रखा है। राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, शहरी स्थानीय निकायों की 1,649 सीटों में से बीजेपी को 384 सीटें मिली हैं जबकि NCP को 344, कांग्रेस को 316 और शिवसेना को 284 सीटें मिली हैं। इससे पता चलता है कि महाविकास अघाड़ी को कुल 944 सीटें मिली हैं। शहरी स्थानीय निकायों में NCP को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है जबकि शिवसेना को 284 सीटों के साथ सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। पार्टी से सीएम होने के बावजूद शिवसेना महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई।
परंतु असली खेल प्रारंभ हुआ राज्यसभा चुनाव 2022 में, भाजपा ने एकमुश्त 10 में से 5 सीटें जीत ली थी, इसने अघाड़ी सरकार को बड़ा घाव दिया ही था, क्योंकि 6 में से जो चार सीट अघाड़ी की तय मानी जा रही थी, उसमें से आश्चर्यजनक रूप से एक अतिरिक्त सीट भाजपा को मिल गई। परंतु ये गठबंधन इस झटके से संभल पाता, इससे पूर्व ही भाजपा ने एक और बड़ा झटका देते हुए राज्य विधान परिषद चुनावों में 10 में से पांच सीटें जीतने में सफलता प्राप्त की, वो भी तब जब पार्टी के पास केवल चार सीटों पर जीत प्राप्त करने का बहुमत था। कांग्रेस ने केवल एक सीट जीती, जबकि एनसीपी और शिवसेना ने दो-दो सीटों पर जीत हासिल की।
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अब इस बात पर विशेष ध्यान दीजिएगा, ध्यान देने वाली बात है कि सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एमवीए के पास सभी छह एमएलसी उम्मीदवारों का चुनाव सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संख्या थी, लेकिन यह एक सीट हार गई, जबकि प्रथम दृष्टया बड़े पैमाने पर क्रॉस-वोटिंग और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन के कारण भाजपा ने अपने सभी पांच उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कर ली है। देवेन्द्र गंगाधर फडणवीस वो राजनेता हैं, जिन्हे न केवल छल कपट से निपटना भी आता है, अपितु उन कपटियों को मुंहतोड़ जवाब भी देना आता है।
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