भारत के पश्चिमी थिएटर कमांड के तहत आने वाले लद्दाख और गलवान क्षेत्र में चीनी सेना द्वारा एकतरफा सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण “आंख खोलने वाला और खतरनाक” है। यह बातें हम नहीं बल्कि यूएस आर्मी पैसिफिक कमांडिंग जनरल चार्ल्स फ्लिन कह रहे हैं। पत्रकारों के एक चुनिंदा समूह के साथ बातचीत करते हुए, अमेरिकी सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने भी लद्दाख की स्थिति पर बात की। नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी निर्माण और भूटान में गांवों के निर्माण के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा कि उनका मानना है कि गतिविधि का स्तर आंखें खोलने वाला है।
इसके साथ-साथ अमेरिकी सेना के इस शीर्ष अधिकारी ने बुधवार को यह भी कहा कि भारतीय और अमेरिकी सेना के 9,000 जवान इस साल उच्च ऊंचाई वाले युद्ध के लिए क्रियाशीलता बढ़ाने हेतु 10,000 फीट पर एक साथ प्रशिक्षण लेंगे। ।
उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दोनों सेनाओं के बीच एक मजबूत ऑपरेशनल बॉन्ड के लिए केवल नौसैनिक इंटरऑपरेबिलिटी पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय लद्दाख के पास चीन के निर्माण और बीजिंग द्वारा गलत नियत से अपने सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की बात कही।
वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि वह इस साल संयुक्त सैन्य अभ्यास को लेकर वास्तव में उत्साहित हैं जो 9,000-10,000 फीट की ऊंचाई पर आयोजित किया जा रहा है। पिछले साल यह अभ्यास अलास्का में आयोजित किया गया था। इस तरह के प्रशिक्षण और अभ्यास से हमारी संयुक्तता बढ़ती है, हमारी अंतःक्रियाशीलता बढ़ती है, हमारे गठबंधन की अंतःक्रियाशीलता बढ़ती है।
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अमेरिका के अनुसार जो बातचीत चल रही है वह मददगार है लेकिन व्यवहार यहाँ भी मायने रखता है। उनको लगता है कि चीनी जो कह रहे हैं वह एक बात है लेकिन जिस तरह से वे निर्माण कार्य और व्यवहार कर रहे हैं उससे उनकी कथनी और करनी में फर्क दिखता है। जाहिर है, तनाव हुआ है और हमें उस पर ध्यान देना होगा।
आखिरकार अमेरिका ऐसा क्यों कह रहा है? क्या वो सीमा विवाद के मुद्दे पर भारत से दोस्ती निभाते हुए चीन को चुनौती दे रहा है या फिर उसके कुछ अपने स्वार्थ हैं?
दोस्ती का तो पता नहीं लेकिन स्वार्थ साफ-साफ दिखता है। अमेरिकी जनरल के बयान में भी इस स्वार्थ की अभिव्यक्ति हुई। उन्होंने कहा कि इतनी ऊंचाई वाले वातावरण में अमेरिकी सेना अपने भारतीय समकक्षों से कई चीजें सीख सकती है।
चीनी विशेषज्ञ ने स्वीकारा है भारत का दम
हुआंग गुओझी ने लिखा है कि वर्तमान में, पठार और पर्वतीय सैनिकों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा और अनुभवी देश न तो अमेरिका और रूस और न ही कोई यूरोपीय संघ है, बल्कि भारत है।”
यहां ध्यान देने योग्य है कि गुओझी की पत्रिका को एक व्यापक सैन्य और रक्षा पत्रिका माना जाता है। यह राज्य के स्वामित्व वाली चाइना नॉर्थ इंडस्ट्रीज ग्रुप कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NORINCO) से संबद्ध है, जो PLA के लिए मशीनीकृत, डिजिटल और बौद्धिक उपकरण विकसित करने का मुख्य मंच है। ऐस में यह साफ है कि गुओझी परोक्ष रूप से पीएलए सैनिकों की जुबान बोल रहे थे।
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भारतीय सैनिकों का पर्वतीय प्रशिक्षण
पर्वतारोहण भारतीय पर्वतीय मंडल के लगभग हर सैनिक का एक अनिवार्य हिस्सा है। भारत सियाचिन में दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र की रक्षा करता है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में केवल भारतीय सैन्य यौद्धा ही डटे रह सकते हैं। ऊपर से साल-दर-साल, ऐसे बहादुर दिलों को सेना द्वारा अत्यंत पूर्णता के साथ तराशा जाता है। अधिकांश सैनिकों के लिए पहाड़ उनके दूसरे घर हैं। हमारे कुछ सैनिकों को तो अपने हाथों के पिछले हिस्से की तरह इस क्षेत्र के अंदर और बाहर की जानकारी है।
एसएफएफ- चीन का सबसे बुरा सपना
यह भारत की गुप्त स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) है जिसने इस क्षेत्र में चीनी हमलों को ध्वस्त कर दिया और पीएलए सैनिकों को रोक कर रखा। स्थानीय इलाकों के बारे में पूरी तरह से जागरूक होने और पहले से ही पर्यावरण के आदी होने के कारण एसएफएफ एक कुशल और दक्ष पर्वत योद्धा हैं।
SFF इकाइयाँ सेना का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन वे सेना के संचालन नियंत्रण में कार्य करती हैं। इकाइयों की अपनी रैंक संरचनाएं होती हैं जिन्हें सेना रैंक के बराबर दर्जा प्राप्त होता है। हालांकि, वे उच्च प्रशिक्षित विशेष बल कर्मी हैं जो विभिन्न प्रकार के कार्य कर सकते हैं जो आमतौर पर किसी विशेष बल इकाई द्वारा किए जाते हैं।
पहाड़ों की लड़ाई
उच्च ऊंचाई वाले युद्ध की चुनौती का मतलब है कि चीनी सैनिक कभी भी इस क्षेत्र में बढ़त हासिल करने में कामयाब नहीं हुए हैं। मगर हिल, गुरुंग हिल, रेचेन ला, रेजांग ला, मोखपरी और फिंगर 4 के पास चीनी पदों पर हावी ऊंचाई कुछ ऐसे रणनीतिक पहाड़ी स्थान थे जिन्हें भारतीय सेना ने चीनियों के खिलाफ जीता था।
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भारतीय सैनिक चीन की पसंद के हिसाब से बहुत फुर्तीले, पुष्ट और मजबूत हैं और यह उन्हें दुनिया भर के दमदार संगठनों में से एक बनाता है। अमेरिका भारत से यही सीखना चाहता है कि आखिर पर्वत पर युद्ध कैसे लड़ते हैं? कारगिल से लेकर रेजांग ला तक के युद्ध भारत के पर्वत युद्ध कौशल के प्रमाण हैं।
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