‘एजेंडाधारी’ किसानों की हितैषी पंजाब सरकार ने असली किसानों का जीना दूभर कर दिया है

पंजाब के किसानों के लिए ग्रहण बन गई है मान सरकार!

Bhagwant Mann

Source- TFI

पंजाब को किसान आंदोलन के बाद ठगने की पूरी प्लानिंग करने वाली आम आदमी पार्टी आज पंजाब में किसानों की दिन-प्रतिदिन बढ़ती आत्महत्या की एकमात्र कारण है, जो किसान आंदोलन में चिंघाड़-चिंघाड़ कर किसानों की हिमायती बन रही थी। किसान आंदोलन में कथित किसानों के लिए दिल्ली के दरवाज़े खोलने वाली यही आम आदमी पार्टी अब पंजाब में चुनाव जीतने के बाद न अब किसानों की हिमायती रही और न ही उसके दर्द से मान सरकार को कोई सरोकार है। परिणामस्वरूप किसान मर रहा है, और मान सरकार क्षुब्ध अवस्था में बैठी है। सत्य तो यह है के आम आदमी पार्टी असली किसानों के लिए नहीं सिर्फ एजेंडाधारी किसानों की आवाज़ सुनती है, यह वही कहानी है जो फिर से पंजाब में असली किसानों पर बीत रही है।

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पंजाब में 2 महीनें में 55 किसानों ने की आत्महत्या

दरअसल, पंजाब में किसानों की आत्महत्या की बाढ़ आ गई है। राज्य सरकार की नीतियों से त्रस्त प्रदेश के असली किसान हासिए पर हैं, कोई उनका सुनने वाला नहीं है। तपतपाती गर्मी और घटते पैदावार ने राज्य के किसानों की मुसीबतें बढ़ा दी है, उनके पैदावार में कमी आई है और मुआवजे की बात तो दूर-दूर तक कोई करने वाला नहीं है। नतीजनत राज्य के किसान काल के गाल में समाते जा रहे हैं। मनसा के डिप्टी कमिश्नर जसप्रीत सिंह का कहना है कि उन्हें इस साल 1 मार्च से जिले में आत्महत्या करने वाले 12 किसान परिवारों से मुआवजे के आवेदन मिले हैं।

पंजाब के सबसे बड़े कृषि संघ, भारतीय किसान यूनियन (उग्रहन) ने 1 अप्रैल से अभी तक राज्य में किसानों और खेतीहर मजदूरों की आत्महत्या की संख्या 55 बताई है। ध्यान देने वाली बात है कि इंडियन एक्सप्रेस ने कुछ आत्महत्या पीड़ितों के घरों का दौरा किया और उनकी मृत्यु के पीछे आम कारकों का मिश्रण पाया, जैसे कि विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र से कर्ज, लगातार फसल की विफलता, उच्च भूमि किराया और बढ़ती कृषि लागत के कारण किसान दिन प्रतिदिन दबते जा रहे हैं।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस शिगूफे के साथ आम आदमी पार्टी ने “किसानां दि सरकार” बनाई थी आज वो टर्म ही नेस्तेनाबूत हो चुकी है। इसका कारण बड़ा साफ़ है कि जिसकी नियत ही उस विषय पर काम करने की न हो उससे मार मारकर भी काम नहीं कराया जा सकता। इन दिनों पूर्व नेताओं और अधिकारियों की सुरक्षा वापस लेने और उसके बाद घटी एक घटना के बाद उस सुरक्षा को दोबारा बहाल करने में व्यस्त मान सरकार कितनी अस्थिर और बुद्धिहीन है, वह पूरा देश देख चुका है। राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान की निर्णय लेने की क्षमता गर्त में समा चुकी है। खालिस्तानी दिन प्रतिदिन पंजाब में अपना पैर पसारते जा रहे हैं। राज्य में आये दिन एक न एक हत्या का मामला आ ही जाता है। मतलब सरकार बनने के बाद ऐसी अस्थिरता है कि सरकार संभले नहीं संभल रही और पंजाब की जनता ने इसके लिए तो आम आदमी पार्टी को बिल्कुल ही नहीं चुना था।

कर्ज तले दबे हैं किसान

किसानों के दर्द का सबसे बड़ा हिस्सा है “क़र्ज़”, जिसके बोझ के तले किसान दबा हुआ है। छोटे खेतिहर किसान, जमीन लीज़ पर लेते हैं और खेती करने के लिए बैंक से बड़ी रकम क़र्ज़ पर उठाते हैं। उनका उद्देश्य होता है कि अच्छे से अच्छे तरीके से जुताई हो ताकि फसल लहलहाती रहे और पैदावार अच्छा हो, पर विडंबना ऐसी कि इस बार पंजाब में गेंहू और कपास दोनों की फसल बड़े स्तर पर बर्बाद हुई है, जिसके बाद किसानों की आत्महत्या की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

छोटे किसानों को हो रहे नुकसान को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने कृषि कानून जैसा क्रांतिकारी कदम उठाया था लेकिन विपक्ष की घटिया मानसिकता और विकृत सोच के साथ-साथ किसानों को बरगलाने वाले संगठनों ने बेड़ा गर्क कर दिया। इस कानून के जरिए कृषि क्षेत्र में बड़े कॉरपोरेट हस्तक्षेप का प्रावधान किया गया, जिससे छोटे किसानों के लिए अपनी आय बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हुआ। लेकिन बड़े किसानों, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की राजनीति ने इसे सफल नहीं होने दिया। कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया और असली किसानों को फिर से स्थानीय राजनीतिक इकाइयों के साथ बड़ी फार्म लॉबी के हाथों में छोड़ दिया गया।

AAP को नहीं है किसानों की सुध

ध्यान देने वाली बात है कि भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार, जिसने ढाई महीने पहले राज्य की बागडोर संभाली थी, उसने मूंग के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सहित कई उपायों के माध्यम से किसानों के संकट से निपटने का वादा किया था। आज वह इन सभी वादों को भूलकर, सिर्फ और सिर्फ इसी बात पर ध्यान केंद्रीत करकर बैठी है कि कब यह मामला शांत हो और वह अपनी राजनीति रोटियां सेंक सके। बीते 3 महीने में राज्य में सबसे बदतर हालत किसानों की हुई है और उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आत्महत्या करने वाले किसानों की सुध न ही भगवंत मान को है और न ही दिल्ली से रिमोट कंट्रोल चला रहे अरविन्द केजरीवाल को। उनकी  “किसानां दि सरकार” एक नौटंकी थी, जिसके भ्रमजाल में किसान फंस गए थे। हालांकि, उनकी घटिया मानसिकात का पर्दाफाश हो गया है लेकिन अब सारा बोझ वो तथाकथित किसान नहीं, असली किसान ढ़ो रहे हैं।

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