देखो बंधुओं, कुछ और हो न हो, परंतु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि JNU के बंधु बांधव से मुफ्तखोर संसार में दूसरा कोई न भया और इनकी टक्कर का मुफ्तखोर भारत में मिलना लगभग असंभव है, अनलेस आप दिल्ली के मतदाताओं की बात कर रहे हों। परंतु हर समस्या का समाधान होता है, तो फिर JNU के मुफ्तखोरों का कैसे नहीं होगा? इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे वर्तमान JNU प्रशासन ने JNU के मुफ्तखोर वामपंथियों के पेट पर लात मारने का निर्णय लेते हुए सभी ढाबा, कैंटीन संचालनकर्ताओं से सभी प्रकार से बकाया वसूल करने का निर्णय किया है।
जी हां, JNU प्रशासन का रुख बिल्कुल स्पष्ट है। JNU ने विभिन्न कैंटीन एवं ढाबा मालिकों से लाखों का बकाया चुकाने और 30 जून तक तत्काल प्रभाव से विश्वविद्यालय परिसर खाली करने को कहा है। जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, “परिसर में चल रही कैंटीन, ढाबों और फोटोकॉपी की 10 दुकानों को ये नोटिस दिए गए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कहना है कि यदि व्यक्ति नोटिस का पालन करने में विफल रहता है तो वह सार्वजनिक परिसर अधिनियम 1971 के अंतर्गत बेदखली की कार्यवाही के लिए उत्तरदायी होगा।”
तो इससे वामपंथी मुफ्तखोरों को क्या समस्या है? यूं तो प्रशासनिक रेक्टर अजय दुबे ने प्रत्यक्ष रूप से इसकी ओर संकेत नहीं दिया, परंतु इतना अवश्य स्पष्ट किया कि यह नोटिस उन दुकान मालिकों को दिया है जो लंबे समय से किराये और बिजली के बिलों का भुगतान नहीं कर रहे हैं। अब ऐसे कौन से प्रजाति के व्यक्ति होंगे? वहीं न, जिनके ग्राहक विशुद्ध वामपंथी होंगे, जिनके लिए समय पर बिल चुकाना, समय पर कोई काम करना और साफ सफाई से रहना किसी महापाप से कम नहीं होगा!
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JNU को संवारने में लगी हैं शांतिश्री धूलिपुडि पंडित
लेकिन आपको क्या प्रतीत होता है, ऐसा पहली बार हुआ है? वर्ष 2019 में जब प्रशासन ने फीस में थोड़ी बढ़ोत्तरी कर दी थी, तो जैसे JNU में भूकंप सा आ गया था। कैंपस में रायता नहीं फैला, उपद्रव का तांडव रचा गया, जगह-जगह लाल सलाम वाले नारे लिख दिये गए। सिर्फ इतना ही नहीं, स्वामी विवेकानंद की मूर्ति जिसका अभी अनावरण भी नहीं हुआ था उसे क्षत-विक्षत कर उसके पाये में कई असंवेदनशील नारे लिख दिये गए। इसके बाद यह तमाशा रोड पर भी उतर गया और सड़क छाप यात्रा निकाली गई।
परंतु इस बार प्रशासन ने भी ठान लिया – इस पार या उस पार। इसकी नींव तभी पड़ गई जब नई कुलपति डॉ शांतिश्री धूलिपुडि पंडित ने JNU की कमान संभाली। पहले कोई भी ऐसे ही विश्वविद्यालय में घुस सकता था और अराजकता फैलाकर चला जाता था। पर, अब नई कुलपति की देखरेख में JNU को सुनिश्चित किया जा रहा है कि वह एक पिकनिक स्पॉट या राजनीतिक अड्डे के बजाए पूर्णतया एक विश्वविद्यालय परिसर में परिवर्तित हो। यह भी कहा जा रहा है कि डॉ पंडित विश्वविद्यालय की “ढाबा संस्कृति” पर कार्रवाई कर सकती है, जो JNU के विषाक्त और अत्यधिक अस्थिर विचारों का प्रजनन स्थल रहा है।
JNU की नई एडमिशन स्ट्रैटजी
हालांकि, नए प्रशासन द्वारा लाया गया सबसे बड़ा बदलाव प्रवेश परीक्षा की शुरूआत है। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रणाली में बदलाव के बाद, जेएनयू में प्रवेश भी सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा (CUCET) के माध्यम से ही किया जाएगा। विश्वविद्यालय ने खुद इस बड़े फैसले की घोषणा की है और कहा है कि प्रवेश परीक्षा राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) की योजना के अनुसार आयोजित की जाएगी। यह कदम पूरी तरह से पुराने पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म कर देगा, जिसने जेएनयू को वामपंथी विचारधारा का केंद्र बना दिया था।
इसके अलावा, छात्रों को सक्षम बनाने के लिए पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया जा रहा है। जैसा कि TFI द्वारा रिपोर्ट किया गया है कि अकादमिक परिषद के अनुमोदन पर विश्वविद्यालय ने पिछले साल दोहरी डिग्री कार्यक्रम का पीछा करने वाले इंजीनियरिंग छात्रों के लिए एक वैकल्पिक पाठ्यक्रम शुरू किया था। ऐसे में अब JNU के मुफ्तखोरों के पेट पर सबसे बड़ी लात मारते हुए ढाबा एवं कैंटीन मालिकों से उनका बकाया का हिसाब मांगना प्रारंभ शुरू हो चुका है, जिसका दर्द अभी से दिख रहा है।
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