चीनी स्मार्टफोन कंपनियों के पीछे मोदी सरकार दाना पानी लेकर पीछे पड़ चुकी है। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि ऐसा साफ-साफ प्रतीत हो रहा है। भारत के कानून को ठेंगा दिखाने की चीनी कंपनियां हिम्मत तो करती हैं पर भारत सरकार भी कम थोड़े न है। भारत सरकार अपने एक्शन से चीनी कंपनियों पर इस तरह से नकेल कसने में लग गयी है कि इन कंपनियों की नानी याद आ गयी होगी।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीनी स्मार्टफोन मार्केट ने काफी समय तक भारत में भी वर्चस्व जमाए रखा। काउन्टरपॉइंट रिसर्च के एक शोध के अनुसार, चीनी स्मार्टफोन शिप्मेन्ट केवल 2021 में ही 173 मिलियन, यानी 17.3 करोड़ हैन्ड्सेट के आसपास पहुंच चुकी थी। 2020 में चीनियों ने 74 प्रतिशत भारतीय स्मार्टफोन मार्केट पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था, जिसमें अकेले शाओमी का 22 प्रतिशत का हिस्सा था।
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चीनी कंपनियों पर चल रहा है सरकार का डंडा
पर टेंशन मत लीजिए, मोदी सरकार आखिर किस दिन के लिए है? जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती वैसे ही इस चीनी वर्चस्व के पीछे भी एक स्याह पहलू था, जो कोरोना वायरस की महामारी और गलवान की हिंसक झड़प के बाद धीरे-धीरे ही सही, परंतु उजागर होने लगा और वह था चीनी उत्पादकों की कालाबाजारी एवं ठगी। बात केवल वर्चस्व की नहीं थी, चीनी स्मार्टफोन निर्माता कंपनी जिस प्रकार से भारतीय कानून व्यवस्था को खुलेआम ठेंगा दिखा रही है, उस प्रकार से उन्होंने अपना विध्वंस को स्वयं निमंत्रण दिया है।
वो कैसे? ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार ने ZTE कॉर्प एवं Vivo मोबाइल कम्युनिकेशन कंपनी के विरुद्ध एक्शन लेने का निर्णय किया, क्योंकि इनपर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगा है। कॉरपोरेट एफेयर्स मिनिस्ट्री उक्त ऑडिटर रिपोर्ट्स का निरीक्षण करके जो भी उल्लंघन हुआ है, उसपर एक्शन लेगी। वीवो और ZTE की धोखाधड़ी अप्रैल तक सरकारी एजेंसियों के दृष्टि में आ चुकी है और ताबड़तोड़ कार्रवाई की दिशा में कार्य भी प्रारंभ होगा।
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पहले भी हो चुकी है कार्रवाई
ये ऐसी प्रथम कार्रवाई नहीं है। लगभग एक माह पूर्व प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी कार्रवाई में चीनी स्मार्टफोन निर्माता शाओमी (Xiaomi) के एक नहीं, दो नहीं, अपितु 5500 करोड़ की संपत्ति को जब्त करने का निर्णय लिया। FEMA एक्ट यानी विदेशी मुद्रण अधिनियम का उल्लंघन करने के पीछे यह कदम उठाया गया, क्योंकि शाओमी के काले धंधों से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है और इसके कारण ईडी ने इस अप्रत्याशित कार्रवाई को अंजाम दिया। ध्यान देने वाली बात है कि शाओमी ने वर्ष 2015 से लगभग 5500 करोड़ रुपये की अवैध कमाई चीन और अमेरिका में स्थित अपनी कंपनियों को भेजी है।
प्रवर्तन निदेशालय के बयान के अनुसार कंपनी ने रॉयल्टी के नाम पर इतना बड़ा भुगतान वास्तव में शाओमी से संबंधित इकाइयों को लाभ पहुंचाने के दृष्टिकोण से किया था। ED ने आगे ये भी बताया, “Xiaomi India भारत में पूर्णतया निर्मित मोबाइल सेट और अन्य उत्पाद अन्य उत्पादकों से प्राप्त तो करता है, परंतु इससे उत्पन्न होने वाले लाभ या फिर सेवा का कोई हिसाब किताब नहीं रखता। इसकी आड़ में शाओमी ने कई तरीकों से FEMA के सेक्शन 4 का उल्लंघन किया है। यही नहीं, कंपनी ने विदेश में पैसों का भुगतान करते समय भ्रामक जानकारी भी दी है।” अब मोदी सरकार ने कसम खा ली है कि या तो चीनी कंपनियां भारतीय कानूनों का पालन करते हुए व्यापार करे, अन्यथा अपना बोरिया बिस्तर समेटकर चलते बने।