मोहम्मद ज़ुबैर याद है आपको, याद ही होगा। वही जुबैर- जो सोशल मीडिया पर दिन रात जहर उगलता है, नफरत फैलाता है, हिंदुओं के विरुद्ध एजेंडा चलाता है और कथित फैक्ट चेकर वेबसाइट Alt News का को-फाउंडर है, और यह वेबसाइट शुरू से ही फैक्ट चेक के नाम पर अपने प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देते आई है। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि अब मोहम्मद जुबैर के बुरे दिन शुरु हो चुके हैं और नफरती बीज बोने वाले इस कुंठित व्यक्ति की लंका लगने का शुभारंभ भी हो चुका है। न्याय एक ऐसी चीज़ है जो देर सवेर ही सही अन्तोत्गत्वा मिल ही जाती है।
ध्यान देने वाली बात है कि मोहम्मद जुबैर ने 3 हिंदू संतों को नफरत फैलाने वाला कहकर संबोधित किया था, जिसके बाद उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। ‘हिंदू विरोध’ के नशे में धुत ये महाशय इस प्राथमिकी को चुनौती देने कोर्ट पहुंच गए, लेकिन कोर्ट ने इन्हें धोबी पछाड़ देते हुए जांच में सहयोग करने के निर्देश दिए हैं। दरअसल, जून माह की शुरुआत में एक ट्वीट के माध्यम से ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने तीन हिंदू संतों यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप को ‘हेट मांगर’ यानी घृणा फैलाने वाला कहा था। इसके विरुद्ध ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को मोहम्मद ज़ुबैर द्वारा चुनौती दी गई थी ताकि FIR और कार्रवाई से बचा जा सके। पर यह सपना, एक सपना ही रह गया जिससे ज़ुबैर की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई है।
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कानूनी पचड़े में फंस चुका है मो.जुबैर
घृणित टिप्पणी के लिए मशहूर ज़ुबैर के विरुद्ध इस महीने की शुरुआत में यूपी पुलिस ने आईपीसी की धारा 295-A और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 के तहत मामला दर्ज किया था। जुबैर ने इससे बचने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, उसने अपनी याचिका में कहा था कि उसने अपने ट्वीट में किसी वर्ग की धार्मिक आस्था का अपमान नहीं किया है। ज़ुबैर ने यह भी कहा था कि उसके खिलाफ FIR केवल उत्पीड़न के लिए दर्ज की गई है, इसलिए इसे रद्द किया जाए।
गजब बकलोली है, यही तो एकमात्र शांतिदूत बने रह गए हैं भारत में! कहते हैं न कि झूठ के पैर नहीं होते और यह अधिक समय तक छिपा नहीं रह सकता। यह बात ज़ुबैर के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने ज़ुबैर की याचिका खारिज कर दी क्योंकि पूरा मामला केवल एक समयपूर्व चरण में है और पंजीकरण की तारीख पर किए गए कुछ प्रारंभिक प्रयासों को छोड़कर मामले की जांच अभी तक आगे नहीं बढ़ी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि “मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने से प्रथम दृष्टया मामला वर्तमान चरण में बनता है और मामले में जांच के लिए पर्याप्त आधार प्रतीत होता है।”
बताते चलें कि ज़ुबैर ने ही नूपुर शर्मा के बयान को ऐसे प्रस्तुत किया कि ‘सर तन से जुदा गैंग’ ऐसा एक्टिव हुआ और आज निस्संदेह नूपुर शर्मा पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। ज़ुबैर ने खुद को बचाने के भरसक प्रयास तो किए पर न्यायपालिका ने सीधे कह दिया कि “मामला और मामले की जांच तो बनती है।” ठीक उसी तरह चूंकि प्राथमिकी उत्तर प्रदेश में दर्ज़ हुई है तो यूपी में सर तन से जुदा गैंग की क्या यथास्थिति है वो किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में अब ज़ुबैर को भी उत्तर प्रदेश में “उत्तर” मिलेगा या नहीं वो न्यायपालिका के हाथ में है। सौ बात की एक बात यह है कि यह जो ज़ुबैर अबतक बचने के हथकंडे अपना रहा था पर अब वो कानून की मजबूत पकड़ में आ ही गया है, शेष कार्रवाई कोर्ट कर ही लेगा।
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