व्यक्ति की बेशर्मी उसके आचरण से प्रदर्शित होती है पर संजय राउत की जबान से होती है। सियासी दांवपेंच व्यक्ति को उठाते हैं और गिराते हैं पर राजनीतिक सुचिता बनी रहे यही राजनीति का सबसे बड़ा मूलमंत्र है। सत्ता के लोभी शिवसेना के नेता अपनी जीवा पर काबू करने में सदा से ही असमर्थ रहे हैं, कभी बोलकर तो कभी अपने मुखपत्र “सामना” में लिखकर अपनी कुंठा प्रदर्शित करते रहे हैं। अब इसी का जीवंत उदाहरण वो संजय राउत हैं जो दूसरों की मृत्यु की कामना करते हुए परोक्ष रूप से हत्या की धमकी देना, उसे महाराष्ट्र की संस्कृति बताते हैं। ऐसी नेताओं को न समाज में इसके प्रभाव की चिंता होती है और न ही संदर्भित व्यक्ति की क्या प्रतिक्रिया होगी उसका ध्यान होता है।
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बागी विधायकों के खिलाफ टिप्पणी
दरअसल, शिवसेना नेता संजय राउत ने सोमवार को बागी विधायकों के खिलाफ अपनी “ज़िंदा लाशों” वाली टिप्पणी का बचाव करते हुए कहा कि यह महाराष्ट्र में बोलने का एक तरीका था और कहा कि वह किसी की भावना को आहत नहीं करना चाहते हैं। बीते दिनों, संजय राउत ने बागी विधायकों को जिंदा लाश कहा था। उन्होंने कहा था कि, “40 लोग वहां हैं वे जिंदा लाश हैं, वे शरीर से आयेंगे आत्मा मर चुकी है। यहां जो आग लगी है उसका क्या अंजाम हो सकता है, उन्हें मालूम है।”
इस पर विवाद बढ़ने पर मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, राउत ने कहा, “उनके शरीर जीवित हैं, लेकिन उनकी आत्मा मर चुकी है, यह महाराष्ट्र में बोलने का एक तरीका है। मैंने क्या गलत कहा?” हिंदूवादी से सेकुलरिज्म की चादर ओढ़े राउत ने इमाम अली के हवाले से एक ट्वीट में कहा, ‘जहलत’ (शिक्षा की कमी) एक तरह की मौत है और ‘जाहिल’ (अशिक्षित) लोग मरे हुए लोगों की तरह हैं।’
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भौखलाहट में राउत के बेबाक बयान
संजय राउत ने कहा, मैं इसे दोहराता हूं, जो लोग 40-40 साल तक पार्टी में रहते हैं और फिर भाग जाते हैं, उनका ज़मीर मर गया है, तो उसके बाद क्या बचता है? ज़िंदा लाश। यह राममनोहर लोहिया साहब के शब्द हैं। मैंने किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का काम नहीं किया, मैंने सत्य कहा है। इसके साथ ही राउत ने गुलाबराव पाटिल को लेकर किये गए ट्वीट पर कहा, मैंने गुलाबराव पाटिल के भाषण का एक वीडियो ट्वीट किया जिसमें वह उन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं जो अपने पिता को बदलते हैं। मेरा ट्वीट गुवाहाटी में बैठे लोगों के लिए है। पाटिल ने अपने भाषण में कहा, “लोग खाते-पीते हैं और पार्टी के साथ मौज-मस्ती करते हैं और फिर अपने पिता को बदल लेते हैं, हम उनके जैसे नहीं हैं।
प्रभु जानें ऐसी कौन सी संस्कृति होती है जिसका मूल उद्देश्य व्यक्ति को निपटाना होता है। राउत ने जिस प्रकार अपने बयान को न्यायोचित ठहराने के लिए उस बयान को महाराष्ट्र की संस्कृति से जोड़ दिया। सत्ता की ऐसी आपक कि बालसाहेब की सपनों की शिवसेना को शवसेना बनाने को आतुर राउत जैसे नेता खुद का तो भंटाधार करते ही हैं, साथ ही पार्टी को भी दोफाड़ में अपना अहम योगदान देते हैं। ऐसी प्रवृत्ति के लिए इन्हें असंख्य बार अपनी फजीहत करानी पड़ेगी, यूँ तो अब उनकी आदत बन गई होगी पर ऐसे बयान घृणा बढ़ाने से ज़्यादा कुछ नहीं करते।
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