पाकिस्तान के लिए अबकी बार ऐसी मजबूरी सामने है कि वो याचना मोड में आ चुका है। मरता क्या नहीं करता, पाकिस्तान आज उसी हालत में है कि एजेंडा चलाएं या पेट भरने की तरकीब ढूंढे। इसी क्रम में पाकिस्तान गेहूं की कमी का त्रास झेल रहा है और अब उसकी हालत ऐसी है कि उसे भारत की ओर रुख करना पड़ रहा है। भारत विश्व के शीर्ष गेहूं उत्पादक देशों में से एक है, तो यथासंभव और कम मूल्य में पाकिस्तान को जहां से मदद मिल जाए वह तो वहीं से उठाएगा, अब उसके लिए उसे गिड़गिड़ाना पड़े या नाक रगड़ना पड़े। वैसे भी ज्यादा कीमत में गेहूं आयात करने की क्षमता पाकिस्तान में न तो कल थी, न आज है और न ही आगे होगी। ऐसे में एजेंडा, आतंक और अवैध कब्जे की बातें भूल पाकिस्तान को अब कश्मीर नहीं गेहूं चाहिए।
दरअसल, पाकिस्तान की इन दिनों गेहूं के मामले में हालत तंग है। आतंक की फैक्ट्री पाक में खाने के लाले पड़े हैं। अब चूंकि घर के हालात सुधारने हैं और घर का गेहूं त्रास खत्म करना है, ऐसे में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सत्ता में आने और गठबंधन सरकार बनने के साथ ही, इस्लामाबाद ने नई दिल्ली के साथ अपने रुके हुए संबंधों को पुनर्जीवित करने हेतु बातचीत के लिए पिछले दरवाजे पर काम करना शुरू कर दिया है।
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रूस के साथ पाकिस्तान ने किया है करार
ध्यान देने वाली बात है कि यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस के साथ पाकिस्तान ने सौदा किया है। इस सौदे के तहत पाकिस्तान बीस लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने वाला है। इसके लिए इस्लामाबाद की ओर से मास्को को नकद भुगतान किया जाएगा। यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के खिलाफ अनेकों प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिससे व्लादिमीर पुतिन सरकार के साथ इसके व्यापार पर प्रभाव पड़ा है। एक्सप्रेस ट्रिब्यूनल अखबार ने अपनी खबर में बताया कि प्रमुख इकोनॉमिक कमिटी ने यह फैसला लिया है, जिसमें खाद्य तेलों के निर्यात पर अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी को माफ कर दिया गया है। पाक के वित्त मंत्रालय के अनुसार, इस समिति ने रूस से बीस लाख मीट्रिक टन गेहूं के आयात की अनुमति दी है, लेकिन पाक इसे खरीदेगा कैसे, सवाल इसी पर अटका हुआ है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में भी श्रीलंका की तरह महंगाई के चलते हालात बदतर होते जा रहे हैं। अब पाकिस्तान के लिए स्थिति ऐसी है कि उसे अपने आतंक परस्त व्यवहार को त्यागना पड़ेगा, क्योंकि रूस सदा उसकी मदद कर नहीं सकता और वो करेगा भी नहीं। ऐसे में समय की मांग यही है कि वो भारत के सामने आत्मसमर्पण कर गेहूं की याचना करें न कि कश्मीर की।
यूं तो पिछले दरवाजे से बातचीत भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को सामान्य स्थिति की ओर ले जाने के इरादे से एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है, ताकि द्विपक्षीय संबंधों, बातचीत और आपसी समझ का पता लगाने हेतु एक-दूसरे की चिंताओं को दूर किया जा सके। भारत द्वारा अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध पेचीदा स्थिति में थे। इसके जवाब में, पाकिस्तान ने राजनयिक संबंधों को डाउनग्रेड किया और द्विपक्षीय व्यापार को निलंबित कर दिया था। साथ ही जोर देकर कहा था कि जब तक भारत अपने फैसले को उलट नहीं देता, तब तक दोनों देशों के बीच किसी भी मुद्दे पर कोई बातचीत नहीं हो सकती है।
पाकिस्तान के पास अब भारत ही है एकमात्र विकल्प
खबरों की मानें तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के कार्यभार संभालने से पहले से ही, दोनों देश एक-दूसरे से चुपचाप बातचीत कर रहे थे। उन संपर्कों के कारण ही फरवरी 2021 में युद्धविराम की समझ का नवीनीकरण हुआ और तब से संघर्षविराम उल्लंघन की कोई बड़ी घटना नहीं हुई है। जबकि युद्धविराम समझौते ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय स्तर पर अधिक जुड़ाव की दिशा में आगे बढ़ने की उम्मीद दी, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के कार्यकाल के दौरान इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।
सौ बात की एक बात यह भी है कि पाकिस्तान अपने एजेंडे पर तब तक ही चल पाता जबतक वो किसी बैशाखी का साथी होता, अब चीन से आपूर्ति नहीं हो रही जो पहले उसे दान में मिल जाती थी। ऐसे में आलम ऐसा हो चुका है कि पाक को महंगाई ने जकड़ लिया है और अब वहां की जनता गेहूं के लिए त्राहिमाम कर रही है। अंततः अब पाकिस्तान के पास एक ही अवसर है कि कश्मीर पर अपना विधवा विलाप छोड़े और भारत के सामने नतमस्तक होकर गेहूं के लिए कटोरा आगे बढ़ाए।
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