भारत की वर्तमान राजनीति और भविष्य के समीकरणों को साधने के लिए एक गुरुमंत्र निकाला जाए तो वह रिजॉर्ट पॉलिटिक्स है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की राजनीति का एक चेहरा यह भी है कि जनप्रतिनिधियों को एक बस में भरकर होटल और रिजॉर्ट में छिपाया जा रहा है। किंतु यह हो रहा है और 10 जून को होने वाले राज्यसभा चुनाव में भी यह खेल देखने को मिलेगा। आगामी राज्यसभा चुनावों के मद्देनजर, कांग्रेस पार्टी की हताशा और असुरक्षा उजागर हो गई है। पार्टी ने राजस्थान और हरियाणा के अपने विधायकों को क्रमशः उदयपुर और रायपुर के रिसॉर्ट में स्थानांतरित कर दिया है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के लगभग 70 कांग्रेस विधायकों को उदयपुर के एक रिसॉर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया है, जो राज्य की राजधानी से लगभग 400 किलोमीटर दूर है। वहीं, हरियाणा की बात करें तो वहां कांग्रेस की स्थिति और भी खराब है। कांग्रेस पार्टी हरियाणा में न केवल संख्याबल की कमी से जूझ रही है, बल्कि विधायक दल भी गुटों में बंटा हुआ है। फिर भी पार्टी ने कुछ विधायकों को छत्तीसगढ़ के रायपुर में इकट्ठा किया है, जो कि चंडीगढ़ से लगभग 1,470 किलोमीटर दूर है।
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कांग्रेस ने अतीत में जो किया अब उसे ही भुगत रही है
इस रिजॉर्ट वाली पॉलिटिक्स की शुरुआत हुई थी महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूटने के बाद। भाजपा के डर से शिवसेना ने अपने विधायकों को मुम्बई बुलाकर होटल में बंद कर दिया था। उसके बाद होटल की सुरक्षा के लिए शिवसेना के गुंडों को तैनात किया गया था। हालांकि, हाल में पुनः चलन में आई रिजॉर्ट पॉलिटिक्स भारत में एक नया चलन नहीं है। जनता पार्टी के सीएम रामकृष्ण हेगड़े के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने 1983 में अपनी सरकार को इंदिरा गांधी द्वारा भंग होने से बचाने के लिए विधानसभा के विश्वास मत प्रस्ताव के दौरान अपने 80 विधायकों को बचाने के लिए यह कदम उठाया था।
इंदिरा सरकार के भय से यह चलन आम होता गया था। 90 के दौर में इस तरह के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। गुजरात भाजपा ने वर्ष 1996 में ऐसी उठापटक देखी थी जब वाघेला ने पार्टी तोड़ने का कार्य किया और कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया था। वर्ष 1998 में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के दौरान और वर्ष 2000 में बिहार में भाजपा नेताओं और कांग्रेस के साथ-साथ राजद विधायकों को दलबदल के डर से होटलों में स्थानांतरित कर दिया गया था।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय राजनीति में विधायकों को खरीदना और उन पर दबाव बनाना कोई नया चलन नहीं है। वर्ष 2005 में जब भाजपा और JDU सरकार बनाने वाली थी तो कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने निर्दलीय विधायकों को खरीदने और दबाव बनाकर उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस का इस्तेमाल किया था। जैसे तैसे भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें बचाकर उड़ीसा के रास्ते दिल्ली बुलाया और उनकी राष्ट्रपति के सामने परेड करवाई तब जाकर भाजपा ने बहुमत सिद्ध किया था। रिजॉर्ट की पॉलिटिक्स की सबसे बुरी बात यह है कि सभी दल अपने-अपने दौर में दूसरे दल को तोड़ने के लिए प्रयासरत रह चुके हैं।
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महाराष्ट्र और हरियाणा में होगी रोचक लड़ाई
इसका दूसरा नकारात्मक पहलू है कि राजनीतिक दलों के नेता विचारधारा से इतने कटे हुए हैं कि उन्हें तोड़ना बहुत आसान है। अब जबकि राज्यसभा चुनाव शुरू होने वाले हैं, यह खेल पुनः शुरू हो जाएगा। अब तक 41 सीट पर 41 उम्मीदवार निर्विरोध चुनकर राजयसभा गए हैं। शेष महाराष्ट्र में लड़ाई और भी रोचक होने वाली है जहां भारतीय जनता पार्टी ने तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल, अनिल बोंडे और धनंजय महादिक। NCP ने प्रफुल्ल पटेल को टिकट दिया है, जबकि शिवसेना ने संजय राउत और संजय पवार को मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी को उम्मीदवार बनाया है।
भाजपा दो सीटें जीतने के लिए पूरी तरह तैयार है, जबकि MVA तीन सीटें जीतने में सफल हो सकती है। छठी सीट पर शिवसेना के संजय पवार और भाजपा के धनंजय महादिक के बीच कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है। NCP के एक प्रतिनिधिमंडल ने फडणवीस को आगामी राज्य विधान परिषद में एक अतिरिक्त सीट के बदले महादिक को दौड़ से वापस लेने के लिए मनाने की भी कोशिश की थी, तो भाजपा ने जवाब में उन्हें ही उनका प्रस्ताव पुनः देकर NCP की चाल को बेकार कर दिया।
विपक्ष के लिए हालात बेहद निराशाजनक नजर आ रहे हैं। महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और हरियाणा में भी राजनीतिक चालबाजी तेजी से हो रही है। कांग्रेस की हालत खराब है। हरियाणा में पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे कार्तिकेय शर्मा ने भाजपा के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया है। इसी डर से कांग्रेस ने अपने विधायकों को छत्तीसगढ़ में भेज दिया है। कांग्रेस बचने के लिए वही खेल खेल रही है, जिसमें कभी वह सबसे बड़ी खिलाड़ी थी। एक दौर था जब कांग्रेस के भय से विपक्षी दल अपने विधायकों को बचाने का प्रयास करते थे। आज कांग्रेस में वही भय दिख रहा है। कांग्रेस यह नहीं चाहती कि लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी उसकी संख्या कम हो जबकि भाजपा किसी भी स्थिति में राज्यसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त करना चाहती है, जिससे भावी राजनीतिक कार्यक्रमों को लागू किया जा सके। ऐसे में इस चुनाव में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स का खेल काफी मजेदार होने वाला है।
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