पश्चिमी देशों को भारत ने दिया एक और बड़ा झटका, IAEA की वोटिंग से बनाई दूरी

यहां समझिए भारत ने क्यों किया वोटिंग से परहेज ?

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)

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तेहरान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) द्वारा ईरान विरोधी प्रस्ताव पारित करने की कड़ी निंदा की है। ईरान ने कहा है कि वह उचित जवाब देगा और तेहरान को अपने हितों की रक्षा के लिए आईएईए के प्रति अपनी नीति बदलने का अधिकार है। चीन और रूस के कड़े विरोध के बावजूद संयुक्त राज्य अमेरिका और तीन यूरोपीय देशों द्वारा तैयार ईरान विरोधी प्रस्ताव IAEA कार्यकारी बोर्ड की बैठक में पारित किया गया।

यह प्रस्ताव ईरान में तीन “अघोषित स्थानों” में यूरेनियम संवर्धन के चिंताओं को उठाता है और तेहरान से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ सहयोग करने का आह्वान करता है। इसके साथ साथ ईरान से इसके बारे में स्पष्टीकरण भी मांगा है। 35 सदस्यीय IAEA बैठक में 30 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में तथा चीन और रूस ने इसके विपक्ष में मतदान किया। इसके अलावा 3 देशों भारत, पाकिस्तान और लीबिया ने मतदान से परहेज किया।

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ईरान का जवाब

प्रस्ताव पारित होने के तुरंत बाद, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में ईरान के राजदूत मोहम्मद रज़ा घैबी ने कहा कि प्रस्ताव विशुद्ध रूप से राजनीतिक उद्देश्यों के लिए पारित किया गया और तेहरान को इसके खिलाफ उचित कार्रवाई करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि आईएईए पिछले 20 वर्षों में ईरान की परमाणु सुविधाओं की निगरानी कर रहा है। दूसरी ओर, ईरान दुनिया के परमाणु कार्यक्रम का केवल तीन-चौथाई प्रबंधन करता है। उन्होंने कहा कि इन सबके बावजूद प्रस्ताव में ईरान के खिलाफ असहयोग का आरोप लगाया गया है। ईरानी राजदूत ने कहा कि ईरान में तीन स्थलों पर यूरेनियम की खोज की जानकारी पूरी तरह से झूठी है और इज़राइल द्वारा प्रदान की गई झूठी जानकारी पर आधारित है। उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के प्रस्ताव के पारित होने से आईएईए के साथ ईरान के संबंधों को नुकसान होगा।

क्यों लाया गया प्रस्ताव?

वहीं, संयुक्त राष्ट्र के परमाणु निगरानी समूह ने गुरुवार को कहा कि ईरान अपनी नटांज परमाणु सुविधा को अपग्रेड करने की योजना बना रहा है। जल्द ही ईरान यहां दो IR-6 सेंट्रीफ्यूज कैस्केड स्थापित कर सकता है। अगर वह इसमें सफल हो जाता है तो वह तेजी से यूरेनियम को समृद्ध करने में सक्षम होगा। वियना में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की बैठक से ठीक पहले ईरान ने अपनी भूमिगत नैटंज परमाणु सुविधा में दो IR-6 सेंट्रीफ्यूज कैस्केड स्थापित करने का निर्णय लिया। इस बैठक में पश्चिमी देशों द्वारा ईरान की आलोचना करने वाले एक प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। निगरानी समूह के अनुसार, ईरान देश भर में तीन अज्ञात क्षेत्रों में पाए गए परमाणु सामग्री पर विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने में विफल रहा है। भारत उन तीन देशों में शामिल था, जिन्होंने पश्चिमी दबाव का सामना किया और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में ईरान के खिलाफ मतदान से परहेज किया।

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भारत ने क्यों किया वोटिंग से परहेज?

ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन के भारत दौरे पर आने से ठीक पहले यह मतदान हुआ है। भारत ने इससे पहले वर्ष 2005, 2006 और 2009 में यूपीए के दौर में ईरान के खिलाफ वोट किया था। वर्ष 2009 में जब भारत ने ईरान के खिलाफ वोट किया था, तो इसमें रूस और चीन भी शामिल हो गए थे। लेकिन इस बार भारत के मतदान से परहेज करने के अपने कारण हैं। प्रथम, नुपुर शर्मा के मामले में हमने देखा कि आखिर कैसे मुस्लिम उम्माह के नाम पर सारे अरब देशों ने एकजुट होकर भारत को ब्लैकमेल किया। ऐसा नहीं है कि वो दूसरे के धार्मिक भावनाओं को आहात करने के कारण क्षुब्ध थे बल्कि वे इसलिए दुखी थे क्योंकि मामला इस्लाम और पैगम्बर का था।

वरना, हिंदू देवी-देवताओं का अपमान तो एमएफ हुसैन ने भी किया था लेकिन इसी क़तर ने न सिर्फ उसे शरण दी, बल्कि सुरक्षा मुहैया कराते हुए अपने यहां के कई पुरष्कारों से भी नवाज़ा। किन्तु, भारत इसलिए चुप रहा क्योंकि राष्ट्र हित में तेल आवश्यक है, पर भारत अब अरब देशों पर अपनी निर्भरता कम करने को आतुर है। एक रूस का साथ तो मिल गया अब भारत ईरान की तरफ देख रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत ईरान से तेल नहीं खरीद सकता लेकिन रूस-युक्रेन के विवाद ने बता दिया है भारत अब सिर्फ अपनी राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा।

दूसरी बात, अफगानिस्तान का एक रास्ता ईरान से बजी हो कर जाता है। भारत इसी रणनीतिक अहमियत को प्राप्त करने के लिए ईरान की ओर देख रहा है। अब जब चाबहार बंदरगाह का निर्माण ठंढे बस्ते में चला गया है ऐसे में अफगानिस्तान में अपनी पैठ बनाये रखने के लिए भारत को ईरान की जरुरत महसूस होती रहेगी। तीसरी बात, शिया राष्ट्र ईरान सुन्नी अरबियों द्वारा हमेशा से सताया जाता रहा है। अतः विरोधी का विरोधी अपना समर्थक होता है। भारत ने इसी कहावत को चरितार्थ रखते हुए ईरान के विपक्ष में मतदान करने से परहेज किया।

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