आपने 250 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया। एक वीर योद्धा की शौर्य गाथा को अमर करने का दावा किया। डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी जैसे प्रख्यात निर्देशक से फिल्म बनवाई। यश राज फिल्म्स जैसी प्रसिद्ध कंपनी से फिल्म को निर्मित कराया।
अक्षय कुमार से लेकर संजय दत्त जैसे प्रख्यात सितारों से फिल्म सजा दी, यहाँ तक कि देश के गृह मंत्री और देश के सबसे प्रभावशाली राज्य के मुख्यमंत्री से इस फिल्म का अंधाधुंध प्रमोशन भी करवाया, परंतु भी परिणाम क्या रहा ? निल बट्टे सन्नाटा।
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लगभग 300 करोड़ के विशालकाय बजट में बनी “सम्राट पृथ्वीराज” से आशा थी कि वह भारत के वीर योद्धा, सम्राट पृथ्वीराज चौहान की शौर्यगाथा को भव्यता से प्रदर्शित करेगी। परंतु डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी के निर्देशन में बनी सम्राट पृथ्वीराज फिल्म ने कई मोर्चों पर निराश किया है और ये बात कहीं न कहीं बॉक्स ऑफिस के आंकड़ों में भी परिलक्षित होती है। सोमवार तक के बॉक्स ऑफिस आंकड़ों के अनुसार “सम्राट पृथ्वीराज” घरेलू बॉक्स ऑफिस पर मात्र 44.40 करोड़ रुपये ही कमा पाई है।
#SamratPrithviraj has a sharp decline on Day 4 [Mon]… Should've scored in double digits or thereabouts to make up for unsatisfactory biz on Day 1 and 2… Biz at national chains remains dull… Fri 10.70 cr, Sat 12.60 cr, Sun 16.10 cr, Mon 5 cr. Total: ₹ 44.40 cr. #India biz. pic.twitter.com/GQOACqoa0Z
— taran adarsh (@taran_adarsh) June 7, 2022
चकित मत होइए, ये वास्तविक आँकड़े हैं, और इसके लिए “सम्राट पृथ्वीराज” का लोकेश कनागराज की “विक्रम” या सशी किरण तिक्का निर्देशित “मेजर” के साथ क्लेश कतई दोषी नहीं। बड़ी-बड़ी फिल्मों में क्लैश होना तो आम बात है, क्लैश तो ‘लगान’ और ‘गदर’ में भी हुआ और क्लैश तो ‘ज़ीरो’ और ‘KGF’ में भी हुआ। अंतर इस बात से पड़ता है कि आपका उत्पाद कैसा है और यहीं पर सम्राट पृथ्वीराज बुरी तरह मात खा गया।
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इस फिल्म के माध्यम से डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने दावा किया था कि वे वास्तविक भारतीय इतिहास को चित्रित करना चाहते हैं एवं सम्राट पृथ्वीराज के वास्तविक शौर्य का वर्णन करना चाहते हैं। परंतु यदि ऐसी नीति थी तो क्षमा करें डॉक्टर साहब, आप उसे आत्मसात करने में असफल सिद्ध हुए हैं और अभी तो हमने अक्षय कुमार की एक्टिंग की चर्चा भी नहीं की है
ये तो कुछ भी नहीं है, इस फिल्म में राजपूतों का जितना उर्दूकरण हुआ है, उसे देख लें तो एक बार आपको संजय लीला भंसाली भी सयाना लगने लगेगा। चलिए, हम मान लेते हैं कि फिल्म में कुछ रचनात्मकता होनी चाहिए, आप शत प्रतिशत शाश्वत सत्य नहीं चित्रित कर सकते, परंतु ये कौन सी बात भई कि 12वीं शताब्दी में राजपूत एक दूसरे को ‘होली मुबारक’ कहे, इश्क, अफ़साने, फरियाद इत्यादि की बात करें। सवाल यह भी है कि मोहम्मद गोरी के आक्रमण से पूर्व राजपूतों में पर्दा और सती प्रथा कब प्रारंभ हो गई?
परंतु “सम्राट पृथ्वीराज” के फ्लॉप होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण हैं अक्षय कुमार। आप किसी ऐतिहासिक किरदार को निभाते हो तो आपसे कम से कम इतनी तो आशा की जाएगी न कि आप उस किरदार को आत्मसात कर जाएं।
अब हर कोई डेनियल डे लूइस या परेश रावल या अजय देवगन तो नहीं होगा, जो अपने किरदारों की जीती जागती प्रतिमूर्ति बन जाएँ, परंतु कम से कम अक्षय कुमार की तरह निरुत्साही तो न ही बने। कल्पना कीजिए, यदि सम्राट पृथ्वीराज चौहान की भूमिका में उनके स्थान पर शाहिद कपूर या फिर प्रभास, या फिर कोई अन्य प्रभावशाली अभिनेता होता, तो?
ऐसे में जिस प्रकार से “सम्राट पृथ्वीराज” बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी है, उससे एक बात तो साफ तौर पर स्पष्ट होती है- अब वो दिन गए जब “जोधा अकबर”/“मुग़ल ए आज़म” जैसे इतिहास के नाम पर कुछ भी परोस दिया जाता था, और जनता लपक के लपेट लेती थी। अब जनता जाग रही है, उन्हे झूठ से तनिक भी नाता नहीं रखना।
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