पूरे विश्व का अर्थतंत्र चरमराया हुआ है. इसके कई कारण है- मुद्रास्फीति, पलायन, रूस-युक्रेन विवाद, एकतरफा प्रतिबन्ध, आपूर्ति श्रंखला में टूट, सेमीकंडक्टर चिप संकट, ऊर्जा संकट, बेरोजगारी और महामारी. वास्तविकता के धरातल पर इसके प्रतिफल भी दिखने लगे हैं. श्रीलंका बर्बाद हो गया. वैश्विक स्टॉक मार्केट में भगदड़ मची है. ना बाज़ार है, ना ग्राहक हैं, ना उत्पादक है और ना ही कोई व्यापार है. लोगो के खर्च, खरीद और बचत तीनों में गिरावट आई है. वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य असंतुलित सा दिख रहा है, जैसे अफगानिस्तान से अमेरिका का बाहर निकलना, रूस का यूक्रेन के साथ फंसना और चीन के साथ व्यापार युद्ध आदि. पर, आखिर भारत ने ऐसा क्या किया कि जब पूरे विश्व में आर्थिक रूप से हाहाकार मचा हुआ है तब भी, भारत का ना सिर्फ आर्थिक तंत्र सुदृढ़ रहा बल्कि देश विश्व के लिए तारनहार भी बना है. दरअसल, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था 5 स्तंभों पर टिकी होती है.
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1. तेल और ऊर्जा संकट
140 करोड़ लोगों का यह देश अपने तेल जरूरतों का 74 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है. इस साल तेल की खरीद 100 बिलियन डॉलर पार करने की संभावना है. आप स्वयं सोचिये हम अपनी अर्थव्यवस्था और विदेशी मुद्रा भंडार का कितना हिस्सा खाड़ी देशों को दे देते हैं. ऊपर से खाड़ी देश अपने हिसाब से कीमत बढ़ाते हैं, प्रतिबंध लगाते हैं और ब्लैकमेल भी करते हैं. तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने OPEC को OPEC+ देशों से लगातार बढ़ती मांग और शेष मूल्य निर्धारण को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाने का आग्रह किया, लेकिन अरबियों ने मना कर दिया. 2021 तक हम उनसे अपनी जरूरतों का 52 प्रतिशत तेल खरीदते थे, इसीलिए अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छा गए.
पर सरकार के साहसिक और समझदार प्रयासों ने आपदा को अवसर में बदल दिया. सरकार ने पहले तेल को सब्सिडी मुक्त करते हुए विदेशी मुद्राकोष को बचाया और फिर रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीद कर पूरी बाज़ी पलट दी. पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 में भारत के कच्चे तेल के आयात (भारतीय टोकरी) की औसत लागत पिछले साल के इसी महीने में 71 डॉलर प्रति बैरल की तुलना में लगभग 72% गिरकर 19.9 डॉलर प्रति बैरल हो गई और इसके साथ ही रूस हमारा दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया.
2.प्रवासी मजदूरों का संकट निवारण
भारत के संबद्ध में COVID-19 की पहली छवि वे प्रवासी मजदूर हैं जो सैकड़ों मील दूर अपने गांवों में वापस जा रहे थे. पर, सरकार इस स्थिति से घबरायी नहीं. संकट के समय सरकारी प्रतिक्रिया ने 20 ट्रिलियन रुपये के राजकोषीय प्रोत्साहन से (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत) नुकसान को कम किया. साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक ने निर्णायक विस्तारवादी मौद्रिक नीति लागू की. फिर भी, बैंकों ने 3 ट्रिलियन रुपये की आपातकालीन गारंटीकृत क्रेडिट विंडो में से केवल 520 बिलियन रुपये का उपयोग किया.
3.स्टॉक मार्केट
महामारी आई और स्थिति चरमरायी. कोरोना वायरस महामारी दुनिया के लगभग हर देश में पहुंच चुकी है. इसके प्रसार ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं और व्यवसायों को ध्वस्त कर दिया क्योंकि वायरस के प्रसार से निपटने के लिए लॉकडाउन अनिवार्य था. लॉकडाउन लगा भी. भारत का कोविड-19 संकट अप्रत्याशित स्टॉक सेलऑफ़ की स्थिति पैदा नहीं कर सका. यहां तक कि जब देश में 300,000 से अधिक संक्रमणों और एक दिन में 4,000 से अधिक मौतों की रिपोर्ट हो रही थी, तब भी भारत का बेंचमार्क इक्विटी इंडेक्स क्षेत्रीय साथियों के अनुरूप आगे बढ़ता रहा.
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4.आत्मनिर्भरता
मेक-इन-इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, स्टैंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया जैसी पहलों के साथ बढ़े हुए निवेश ने देश के उपभोग पैटर्न को जिंदा रखा. इन पहलों के माध्यम से मोदी सरकार ने उत्पादकता की ओर देश की युवा आबादी को भी शामिल किया. यह उत्पादन इकाइयों को अधिक उत्पादन करने के लिए मजबूर करता है. इसीलिए कोविड काल में भारत अपने दम पर खड़ा हो पाया. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के माध्यम से भारत की 80 करोड़ आबादी को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने पर भारी खर्च करने के बावजूद यह उग्र रवैया सामने आया, जिसके कारण स्थिति में इतनी तेजी से सुधार हुआ है.
5.दवा कंपनियों और मुनाफा
दुनिया भर की सरकारों ने कोविड-19 के टीके और उपचार के विकल्पों के लिए अरबों डॉलर देने का वादा किया है. वैक्सीन के विकास में शामिल कुछ दवा कंपनियों के शेयरों में तेजी आई है. मॉडर्ना, नोवावैक्स और एस्ट्राजेनेका में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, लेकिन फाइजर ने अपने शेयर की कीमत में गिरावट देखी है. किन्तु, भारत ने इस मौके को भी क्या खूब भुनाया? भारत बायोटेक, कोविशिल्ड, कोवैक्सिन, कोरोना किट और अन्य फार्मा वस्तुओं का उत्पादन कर भारत ना सिर्फ कमजोर देशों का तारनहार बना बल्कि इससे मुनाफा भी कमाया.
नौकरी चाहने वालों के लिए कोरोना काल काफी कठिन समय था. बहुत से लोगों की नौकरी चली गई है या उनकी आय में कटौती हुई. प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में बेरोजगारी दर में काफी वृद्धि हुई है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में बेरोजगार लोगों का अनुपात सालाना कुल 8.9% है, जो नौकरियों के विस्तार के एक दशक के अंत का संकेत देता है. ऑस्ट्रेलिया में नौकरी की रिक्तियां 2019 के समान स्तर पर लौट आई हैं, लेकिन वे फ्रांस, स्पेन, यूके और कई अन्य देशों में पिछड़ रहे हैं. पर, भारत इस संकट से भी उबर गया है.
हां, हम ये नहीं कह सकते कि भारत में बेरोजगारी नहीं है लेकिन अगर सापेक्ष रूप से अन्य देशों के साथ भारत की तुलना करें तो भारत ने स्थिति को अच्छे से संभाला है. हाल ही में नमो सरकार ने 10 लाख रिक्तियों को तुरंत भरने का निर्देश दिया. सेना में अग्निपथ कार्यक्रम शुरू हुआ. विदेशी निवेश बढ़ गया. व्यापार सुगमता भी बढ़ी, जिसके कारण भारत आर्थिक प्रलय के बहाव में भी मजबूती के साथ खड़ा रहा.
तथ्य सामने हैं, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि भारत आधुनिक दुनिया में एक अजेय शक्ति है. जैसे ही अन्य देश इसके साथ सहमत होंगे, वे आने वाले दशकों में हमारी आर्थिक ताकत से लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे.
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