प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से सत्ता संभाली है, वो कई मिथकों को तोड़ते आ रहे है। ऐसा माना जाता है कि देश के जितने भी प्रधानमंत्री 10 साल या उससे अधिक वक्त तक सत्ता पर कायम रहे हैं, उन्हें अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष यानी दसवें साल उन्हें बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उनके कार्यकाल का दसवां साल चुनौतियों से भरा रहा है। देखा जाए तो नरेंद्र मोदी से पहले ऐसे तीन ही प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्होंने पीएम के तौर पर 10 साल या उससे अधिक का वक्त पूरा किया हो। इसमें जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह के नाम शामिल हैं। इन तीनों ने प्रधानमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के 10वें साल में बड़ी मुसीबतों का सामना किया। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर 8 वर्ष पूरे कर लिए हैं। मोदी ऐसे चौथे प्रधानमंत्री बनने वाले हैं, जो 10 वर्ष पूरे करेंगे। तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस दौरान उन्हें भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा? क्या प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का 10वां साल चुनौतियों से भरा रहेगा?
जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू वैसे तो आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। वर्ष 1947 से 1964 तक 17 साल वो देश के प्रधानमंत्री पद पर कायम रहे। परंतु देखा जाए तो 1952 में भारत के पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पीएम बने थे। इसके ठीक 10 साल बाद नेहरू ने अपने कार्यकाल की सबसे बड़ी चुनौती का सामना किया। वो चुनौती आई थी एक युद्ध के रूप में। 1962 में भारत चीन के बीच युद्ध लड़ा गया, जिसमें दुर्भाग्यवश भारत को हार का सामना करना पड़ा था। इस हार का जिम्मेदार नेहरू की गलत नीतियों को ही माना जाता है। युद्ध में भारत ने अपने सवा तीन हजार सैनिकों को खोया। साथ ही साथ चीन ने भारत की करीब 43 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर भी अपना कब्जा जमा लिया था।
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इंदिरा गांधी
इंदिरा गांधी देश की ऐसी दूसरी प्रधानमंत्री रहीं, जो 10 वर्षों से अधिक समय तक इस पद पर कायम रहीं। इंदिरा गांधी पहले साल 1966 से 1977 तक लगभग 11 वर्ष और इसके बाद साल 1980 से 1984 तक देश की प्रधानमंत्री बनीं। इस तरह कुल मिलाकर उन्होंने 15 साल तक इस पद को संभाला। इंदिया गांधी के कार्यकाल के दसवें साल वो हुआ, जो आज भी देश के इतिहास में सबसे काला अध्याय माना जाता है। हम बात कर रहे है वर्ष 1975 के आपातकाल यानी इमरजेंसी के दौर की। महज सत्ता में बने रहने के लालच में इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया था। इंदिरा गांधी ने पूरे देश को जेल में तब्दील करके रख दिया। लोकतंत्र के लिए उठने वाली हर आवाज को निर्ममता से कुचला गया। आपातकाल कांग्रेस पार्टी पर लगा ऐसा दाग है, जिससे वे कभी भी मुक्त नहीं हो पाएगी।
मनमोहन सिंह
वर्ष 2004 से लेकर 2014 तक प्रधानमंत्री के पद पर बने रहे। वैसे तो मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल ही विवादों से भरा हुआ था। UPA 2.0 में महंगाई, भ्रष्टाचार अपने चरम पर थी। परंतु देखा जाए तो मनमोहन सिंह ने सबसे अधिक चुनौती का सामना अपने कार्यकाल के अंतिम समय में किया था। उस दौरान आए दिन किसी ना किसी घोटाले की खबर सुनने को मिल ही जाती थी। यूपीए सरकार के विरुद्ध जनआक्रोश इतना बढ़ गया था कि जनता ने कांग्रेस के शासन को सत्ता से उखाड़ फेंका और पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा की सरकार सत्ता में आई।
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी वर्ष 2014 से देश के प्रधानमंत्री के तौर पर जिम्मा संभाल रहे हैं। वे पीएम के तौर पर 8 साल पूरे कर चुके हैं। जल्द ही प्रधानमंत्री मोदी भी अपने कार्यकाल के दसवें साल का सामना करने वाले हैं। तो ऐसे में प्रश्न उठता है कि उनके कार्यकाल का दसवां साल कैसे होने वाला है? क्या पूर्व के प्रधानमंत्रियों की तरह ही अपने दसवें साल में किसी बड़ी चुनौती का सामना करने वाले हैं?
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वैसे तो भविष्य में क्या होगा, इसका आंकलन करना मुश्किल होता है। परंतु वर्तमान के हिसाब से देखें तो इसकी संभावनाएं बेहद कम ही लगती हैं कि पीएम मोदी के कार्यकाल का दसवें वर्ष किसी प्रकार की बड़ी चुनौती का सामना करेंगे। क्योंकि अभी के समय में प्रधानमंत्री मोदी विश्व में एक सबसे मजबूत छवि वाले नेता बने हुए हैं। ऐसे समय में जब विश्व के तमाम देश आर्थिक मंदी के साए से परेशान है, तब भारत अन्य देशों की तुलना में स्वयं को मजबूत स्थिति में बनाए हुए है। इसके अलावा आज अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामलों में भी भारत पहले के मुकाबले कई बेहतर स्थिति में स्वयं को पाता है। अमेरिका हो या फिर चीन किसी भी वर्तमान में इतनी ताकत नहीं है कि वो भारत को अपने आगे झुका लें। वैश्विक मंचों में भी भारत स्वयं को ताकतवर बनाता चला जा रहा है।
राजनीति के हिसाब में देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देने योग्य विपक्ष के पास कोई चेहरा नजर नहीं आता। आज के समय में विपक्ष बेहद ही कमजोर स्थिति में दिखाई पड़ता है, जिसके पास राजनीति करने के लिए अच्छे मुद्दे तक नहीं है। किसान आंदोलन एक मुद्दा था, जो सरकार के लिए परेशानी का सबब बना हुआ था। परंतु कानून वापस लेकर सरकार ने विपक्ष से यह मुद्दा भी छिन लिया। प्रधानमंत्री मोदी के सामने अभी के वक्त में तो ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नजर नहीं आता, जो बचे हुए कार्यकाल में उनके लिए चुनौती बने। ऐसे में संभावना तो ऐसी ही है कि पूर्व के प्रधानमंत्रियों की तुलना में नरेंद्र मोदी का दसवां साल बेहतर रह सकता है।
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