बात चाहे पूजास्थल में प्रार्थना करने के लिए अगरबत्ती जलाने की ही या फिर अरोमाथेरेपी में इसके औषधीय महत्व की, अगरबत्ती लगभग हर भारतीय घर में पाई जाती है। विभिन्न रंगों, सुगंधों और गुणों की अगरबत्तियों का बाजार केवल भारत तक सीमित नहीं है। बल्कि दुनिया भर के लोग, चाहे वे अमेरिका में हों या यूके, मलेशिया या इथियोपिया में हों, सभी अगरबत्ती का इस्तेमाल किसी न किसी कार्य में करते है जिसके चलते अगरबत्ती वह उत्पाद है जो वैश्विक निर्यात के दरवाज़े खोलती है। भारत में, चंदन से लेकर लैवेंडर और गुलाब से लेकर मोगरा तक, कई सुगंधों में अगरबत्ती मौजूद है जिसके कारण भारत में निर्मित अगरबत्ती को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक माना जाता है।
लेकिन अगरबत्ती के इतने बड़े बाज़ार में भी भारत को वह लाभ नहीं हो पा रहा था जिसका वह हक़दार था। कारण था कि कई वर्षों से भारत अगरबत्ती बनाने के लिए सभी वस्तुओं का आयात करने लगा था। वर्ष 2018 में भारत जो स्वयं अगरबत्ती की 6000 करोड़ रूपए की बड़ी मार्केट है उसने चीन से 800 करोड़ रूपए की अगरबत्ती का आयात किया। हालाँकि यह पहली बार नहीं था जब भारत ने चीन से अगरबत्ती में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी का आयात किया था लेकिन इसके कारण भारत में अगरबत्ती परियोजनाओं की संख्या में गिरावट और इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को घटा दिया जिसके चलते कई लोग अपना रोज़गार खोने लगे।
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भारत को अपने अगरबत्ती के व्यापार के लिए चीन पर इतना निर्भर न रहना पड़े इसके लिए भारत सरकार ने कुछ कड़े कदम उठाये जिनमें पहला कदम था चीन से अगरबत्ती में इस्तेमाल होने वाले धूप और लकड़ी के आयात पर रोक लगाना। अगस्त 2019 में, अगरबत्ती उद्योग को झटका लगा जब भारत सरकार ने घोषणा की कि अगरबत्ती का अब और अधिक स्वतंत्र रूप से आयात नहीं किया जा सकता है। देश में वैसे भी ‘मेक इन इंडिया’ की लहर दौड़ रही थी। ऐसे में निर्णय लिया गया कि भारतीय किसानों को बम्बूसा टुल्डा नाम की बम्बू को उगाना सिखाया जायेगा जिसकी लकड़ी का इस्तेमाल फिर अगरबत्ती बनाने में किया जा सकेगा।
आज स्थिति यह है कि भारत आयात और निर्यात के लिए जो भी अगरबत्तियां बनाता है उसमें इस्तेमाल होने वाली लकड़ी भारत में उगाई गई होती है। अब भारत के अगरबत्ती उद्योग को चीन और विएतनाम जैसे देशों के सहारे की आवश्यकता नहीं। बल्कि यह भी संभव है कि कुछ समय में भारत अगरबत्ती में इस्तेमाल होने वाली इस लकड़ी का निर्यात करना भी शुरू कर दे।
अगरबत्ती से बढ़ता रोजगार
अगरबत्ती उद्योग में ग्रामीण समुदाय की महिलाओं को आर्थिक मुक्ति मिल रही है। धूप और अगरबत्ती उद्योग में हमेशा से ही महिलायें अधिक सम्मिलित रही हैं। यह महिलाओं को आर्थिक रूप से और अपने पैरों पर खड़ा होने में सहायक रहा है।
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सरकार द्वारा आयात पर प्रतिबंध का फल
भले ही सरकार ने अचानक आयात पर प्रतिबन्ध लगाया था लेकिन अपनी त्वरित और बेहतर योजनाओं और हर संभव सहायता प्रदान कर सरकार ने आज इस उद्योग को फलने-फूलने में बहुत सहायता की है। साथ ही कई रोजगार का सृजन भी हुआ है।
कैसे भारतीय अगरबत्ती उद्योग ‘आत्मनिर्भर’ बनता जा रहा है?
एक उद्योग ‘आत्मनिर्भर’ होता है जब उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली छोटी से छोटी चीज़ उसे स्वदेश में मिले। आज भारत की अगरबत्ती उद्योग के पास अपने सभी कच्चे माल को स्थानीय रूप से प्राप्त करने का विकल्प है। भारत में खपत और उपभोक्ता आधार स्थिर गति से बढ़ रहा है। ये दो पहलू उद्योग के लिए दीर्घायु और आत्मनिर्भरता को सिद्ध करते हैं।
वर्तमान में, भारत से 150 से अधिक देशों को अगरबत्ती का निर्यात किया जाता है। इसके अलावा, उद्योग को भारत सरकार की नीतियों और विनियमों को लागू करने के मामले में पर्याप्त समर्थन मिल रहा है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्थानीय उत्पादकों को लाभान्वित करते हैं, जिससे वाणिज्य और निर्यात को बढ़ावा मिलता है। आज यह कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी ने भारत को अगरबत्ती मैन्युफैक्चरिंग हब में बदल दिया है।
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