लातों के भूत बातों से नहीं मानते और ये बात कहीं न कहीं अमेरिका पर शत प्रतिशत लागू होती है। चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए मानो इन्हीं जैसों के लिए बना है। खुद के अर्थव्यवस्था के पलीते लग रहे हैं, कहीं मुंह दिखाने योग्य नहीं, रूसी तेल न खरीदने के लिए अन्य देशों के सामने घिघिया रहे हैं पर मजाल है कि अकड़ में तनिक भी कमी हो। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे अमेरिका ने एक बार फिर अपनी हेकड़ी के चक्कर में मुंह की खाया है और कैसे अब भारत को पाश्चात्य जगत की गीदड़ भभकियों से तनिक ऊपर उठने की आवश्यकता है।
हाल ही में अमेरिका ने अनुरोध किया है कि भारत और जापान रूसी तेल को खरीदने से परहेज करें। ब्लूमबर्ग में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका विश्व भर में धड़ल्ले से बेचे जा रहे रूसी तेल पर लगाम लगाने का प्रयास कर रहा है जिसके लिए उसके अधिकारी व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास भी कर रहे हैं। परंतु यह कार्य सुनने में जितना सरल लग रहा है वास्तव में उतना है नहीं।
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अमेरिका की ऊर्जा सचिव जेनिफर ग्रेनहोम को अपने क्वाड सहयोगियों को इस योजना के लिए स्वीकृति कराने का काम सौंपा गया है ताकि रूसी तेल किसी भी स्थिति में 60 डॉलर प्रति बैरेल से अधिक न कमा पाए। अगर ऐसा हुआ तो वैसे भी गैर रूसी तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में औसतन 100 डॉलर प्रति बैरेल कमा रहा है और इससे अमेरिकी सहयोगियों, विशेषकर मध्य एशिया के उसके साथियों को खूब लाभ मिलेगा।
हां जी, जब अमेरिका को प्रतीत हुआ कि भारत के समक्ष उसकी दाल नहीं गल रही है तो उसने अपने पन्टरों को काम पर लगा दिया। हाल ही में बाइडन प्रशासन ने मुंबई पोर्ट अथॉरिटी के डायरेक्ट चिट्ठी लिखी है और आदेश नुमा लहजे में कहा है कि वो अपने बंदरगाह पर रूसी जहाजों को नहीं आने दे जिसके बाद मोदी सरकार की ओर से उसे करारी प्रतिक्रिया भी मिली है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी कॉन्सुलेट से मिली इस चिट्ठी पर मुंबई पोर्ट अथॉरिटी ने स्पष्ट किया है कि कॉन्सुलेट कोई नहीं होता जो उन्हें बताये कि करना क्या है। उनके अनुसार, “हम किसी भी जहाज/कार्गो पोत को अनुमति देने से तब तक इनकार नहीं कर सकते जब तक कि हमें शिपिंग महानिदेशालय या तटरक्षक बल जैसी एजेंसियों से निर्देश नहीं मिलते।” अधिकारी ने कहा कि “नियामक प्राधिकरण होने के नाते डीजीएस को निर्णय लेना होगा।”
वहीं, डीजीएस ने विदेश मंत्रालय (एमईए) के पाले में गेंद फेंक दी। शिपिंग महानिदेशालय के महानिदेशक अमिताभ कुमार ने दि प्रिंट को बताया कि “हमने अमेरिकी महावाणिज्य दूतावास के पत्र को विदेश मंत्रालय को भेज दिया है और उनसे निर्देश मांगा है।” कुमार ने कहा कि अभी तक किसी विशेष देश के जहाजों को भारतीय बंदरगाहों में प्रवेश करने से मना करने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा, “अगर वे सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हैं और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का उल्लंघन नहीं करते हैं तो वे जहाज व्यापार के लिए स्वतंत्र हैं।”
अब इतना तो स्पष्ट है कि भारत ने स्पष्टता से अमेरिका को बता दिया है कि हर बार इनकी हेकड़ी नहीं चलेगी। परंतु अब भारत को यह भी समझना होगा कि हर बार गीदड़ भभकी पर प्रतिक्रिया देने से भी कुछ नहीं होगा क्योंकि जब आप दुनिया की नजर में बेहतर होते हैं, वैश्विक मंचों पर आपकी पूछ होती है तो वैश्विक देशों को मिर्ची लगेगी ही और अमेरिका तो ठहरा ही जलनखोर। ऐसे में भारत को हर किसी को भाव देने से भी बचने की आवश्यकता है।
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