कांवड़ियों पर फूल बरसते देख, लिबरल्स की छाती पर लोट रहा है सांप, रुदाली जारी है

कांवड़ियों पर बरसे फूल, लेफ़्टिस्टों में घुस गए शूल!

Vinod Kapri

Source- TFI

भारत में जितना बड़ा नौटंकीबाज़ों और तथाकथित सेक्युलर गुट का कुनबा है शायद ही कहीं और होगा। जब भी सरकार की ओर से हिंदुओं के लिए रति मात्र भी कुछ किया जाता है इन कुंठितों के पेट में मरोड़े उठने लगती है और ये विधवा विलाप करने लगते हैं। हालांकि, इन घटिया और विकृत मानसिकता वाले लोगों की रोज की यही ड्यूटी है, उठो, हिंदुओं के बारे में जहर उगलो, हिंदुओं की आस्था को चोट पहुंचाओं, कट्टरपंथियों के विरोध में मौन व्रत धारण करो और सरकार को गाली देकर सो जाओ! अब पेशे से स्वयं को पत्रकार बताने वाले कुछ लोग सावन के पावन महीने में हो रही कांवड़ यात्रा और उसपर की जा रही पुष्पवर्षा पर रोने लगे हैं।

उनका मानना है कि खुले में नमाज़ पर कार्रवाई होती है तो कांवड़ियों पर कार्रवाई न होते हुए पुष्प वर्षा क्यों हो रही है, उनपर भी कार्रवाई होनी चाहिए। अब इन कुपित और कुंठित लोगों के शुतुरमुर्ग से भी छोटे दिमाग में जितनी बुद्धि होगी वे उतना ही तो प्रयोग करेंगे! इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि लिब्रांडुओं द्वारा नमाज़ियों की कांवड़ियों से तुलना करना कितना जायज है और कितना नहीं और वामपंथी कुनबे में इसे लेकर हलचल क्यों मची है?

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कांवड़ यात्रा पर लिबरलों की गजब सुलगी है!

दरअसल, कोरोना की भयंकर महामारी के कारण बीते 2 वर्षों से श्रद्धालुओं के लिए कांवड़ यात्रा न कर पाना दुखद था। उसके बाद अब जब कांवड़ यात्रा को शुरू किया गया तो लाखों शिवभक्तों के भीतर अलग ही ऊर्जा संचारित हो गई। वे सभी तैयार हो गए और वर्तमान में भारत में लाखों कांवड़िया पवित्र गंगा नदी से जल लेकर उससे महादेव का अभिषेक करने हेतु कठिन यात्रा कर रहे हैं। चूंकि दो वर्ष बाद यह यात्रा फिर से शुरू हुई तो इसकी ख़ुशी और श्रद्धालुओं की आस्था का कोई सानी नहीं था पर लिबरल गुट का ज़हर उगले बिना हाल कुछ ऐसा है- “रहा नहीं जाता, तड़प ही ऐसी है।”

ज्ञात हो कि कांवड़ यात्रा और कांवड़ियों पर श्रावण मास के दूसरे सोमवार को उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा हेलीकॉप्टर के माध्यम से पुष्पवर्षा की गई। बस इसी को देखकर लिबरलों की सुलग गई और सभी का विधवा विलाप शुरू हो गया कि योगी ने ऐसा कर कैसे दिया। कईयों का लक्की चार्म बन चुकी बरखा दत्त ने ट्वीट कर लिखा, “राज्य के अधिकारियों द्वारा कांवड़ियों पर पंखुड़ियों की बौछार करना लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ पर आपत्ति करना कैसे ठीक है?”

हां हां, ज़रूर कांवड़िये तो रोज़ यात्रा पर निकलते हैं न, नमाज़ी तो शांति से बैठे रहते हैं सड़कों पर! कितनी विडंबना की बात है कि हर जुम्मे को सड़कों को घेरकर बैठ जाना और चलती हुई यात्रा की तुलना हो रही है। जहां एक ओर जुम्मे की नमाज़ के नाम पर सड़के घेर ली जाती हैं तो दूसरी ओर कांवड़ियों की यात्रा सड़कों का घेराव नहीं करती, चलती चली जाती है उससे बरखा दत्त जैसों के पेट में मरोड़े उठ रही हैं।

दूसरा नाम है उस व्यक्ति का जो अपनी डॉक्यूमेंट्री के चक्कर में एक लावारिस बच्ची को गोद लेने का ढोंग रचता है और पब्लिसिटी स्टंट के लिए उसका उपयोग तक करता है! ये वही विनोद कापड़ी हैं जो हर उस बात का समर्थन करते हैं जिसका विरोध बहुसंख्यक करते हैं। इस बार भी अपनी नौटंकी जारी रखते हुए कापड़ी ने ट्वीट किया, “हफ़्ते में एक बार सड़क पर नमाज़ पढ़ने वालों पर मुक़दमा करने वाली पुलिस पूरे सावन सड़क घेरने वालों (कांवड़ यात्रा) पर पुष्प बरसा रही है ! एक देश, एक क़ानून कहां है ?”

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विनोद कापड़ी तो बिलबिला रहे हैं

विनोद कापड़ी को इस बात का दुःख है कि सरकार ने पुष्प बरसा दिए वो भी कांवड़ियों पर। अब कापड़ी को कौन समझाए कि पुष्प बरसाने वाले पर पुष्प बरसते हैं और ज़हर उगलने वाले पर तो लाठी ही बनती है। यदि सरकार ने कांवड़ियों पर पुष्प बरसा ही दिए तो क्या समस्या हो गई? ये सरकार का पैसा है, परियोजनओं पर लगना चाहिए कहने वालों को यह जानना जरूरी है कि देश के मंदिरों से सरकार को और सरकारी कोष में बहुत पैसा आता है, ऐसे में लाख-दो लाख खर्च करके कांवड़ियों पर पुष्प की बरसात कर ही दी तो कौन सा पहाड़ टूट गया?

दूसरी बात यह कि सरकार को जो पैसा मंदिरों से मिलता है, निस्संदेह उसी में से पैसा हज कमेटियों को भी जाता है। ऐसे में जो कुछ दे न रहे हों, ले ही रहे हों और उसके बाद देश में विघटन और वैमनस्य पैदा करने की रणनीति के तहत काम कर रहे हों, रास्तों को नमाज़ के लिए बाधित कर रहे हों, बावजूद इसके कि मस्जिद बनी हुई हैं, उनकी तुलना कांवड़ियों से करना शर्मनाक है।

https://twitter.com/ARanganathan72/status/1551609658083020800

 

ऐसी तुलना उन लोगों की निकृष्टता को दर्शाता है जो चंद पैसों के लिए अपना जमीर, ईमान और सबकुछ बेच चुके हैं। जो सावन माह हिन्दुओं के लिए पावन है जिस कांवड़ यात्रा से हिंदुओं के मन को तृप्ति मिलती है उसपर आक्षेप लगाना बेशर्मी से कम नहीं। न जाने बरखा दत्त और कापड़ी जैसे एजेंडाधारी तब कहां तकिये में मुंह दबाकर बैठ जाते हैं जब इन्हीं कांवड़ियों के ऊपर यात्रा के बीच में दिल्ली के सीलमपुर में जिहादी प्रवृत्ति के लोग मांस फेंक देते हैं। ये तब कहां मुंह में दही जमाकर बैठ जाते हैं जब हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए एक समुदाय विशेष के लोग बिजनौर में कांवड़ियों का रूप धरकर मजारों को तोड़ वहां चादर जलाते हैं। सत्य तो यही है कि कांवड़ियों पर पंखुड़ी बरसाने पर भड़के उदारवादी स्वयं नीचता की पराकाष्ठा पार कर चुके हैं!

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