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पेट्रोल/डीजल और शराब को जीएसटी के दायरे में लाने का वक्त आ गया है

ये निर्णय आम जनता को 'दोहरी मार' से बचाएगा!

Deeksha Sharma द्वारा Deeksha Sharma
24 July 2022
in अर्थव्यवस्था
Petrol & Fuel

Source- TFIPOST.in

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भारत में 1 जुलाई 2017 से सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक कर’ के नारे के साथ जीएसटी लागू किया। अरुण जेटली के नेतृत्व में प्रक्षेपण किये गए इस कर प्रणाली का कार्यान्वयन भारत में सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक रहा है। ऐसा नहीं है कि जीएसटी लागू होने से पहले सरकारें कर नहीं लेती थीं या फिर उनका लिया कर कम होता था। बल्कि जीएसटी के कार्य में आने से पहले केंद्र और राज्य स्तरों पर अलग- अलग तरह के अप्रत्याशित कर लगाए जाते थे जिनके बारे में कई बार ग्राहक को पता भी नहीं चलता था कि उसने कितना कर प्रशासन को दे दिया है।

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ये तीनों कर सरकार जीएसटी के अंतर्गत ले आई जिसका अर्थ है कि यदि कोई मोबाइल खरीदने पर आपको 11% कर देना पड़ता है तो यही कर देश के हर राज्य में लागू होगा। कोई भी राज्य स्वेच्छा से आपसे जीएसटी से अधिक कर नहीं ले सकता। जीएसटी की शुरूआत ने भारतीय अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया। कई चीज़ें जीएसटी के अंतर्गत लाई गयी लेकिन आज जीएसटी के पांच वर्ष पूरे होने के बाद भी ऐसी दो अहम चीज़ें हैं जिन्हें आज तक इस लिस्ट से बाहर रखा गया है। वे हैं- “शराब और पेट्रोल-डीज़ल।”

चूंकि पेट्रोलियम और शराब उत्पाद वर्तमान में जीएसटी के दायरे में नहीं हैं, इसलिए वर्तमान में इन दोनों पर वैट और उत्पाद शुल्क लगाया जाता है और पेट्रोल की कीमत का लगभग 150 प्रतिशत एकत्र किया जाता है। इसलिए सभी राज्य सरकारों द्वारा इसे जीएसटी के दायरे में लाने के लिए बहुत विरोध किया जा रहा है, क्योंकि इससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान होगा।

शराब उद्योग का भी मानना ​​है कि शराब को जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए। चूंकि पेट्रोलियम उत्पाद और अल्कोहल जीएसटी के लिए उत्तरदायी नहीं हैं इस कारण से राज्य सरकारें जितना चाहे उतना कर इन दोनों उत्पादों पर लगा रही हैं। यही कारण है कि जहाँ देश के एक राज्य में इनकी कीमत यदि 100 रूपए है वहीं दूसरी राज्य में इनकी कीमत 150 से 180 रूपए तक वसूली जाती है। इस तरह से पूरे देश में इनके दाम अलग-थलग हैं।

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शराब और ईंधन को जीएसटी के दायरे में लाना आवश्यक है

जहाँ केंद्र सरकारें इन उत्पादों पर अपना टैक्स लगा रही हैं वहीं राज्य सरकारें भी इन पर अपनी मनमानी करते हुए जितना चाहे उतना प्रतिशत कर वसूलती हैं। इस तरह से ग्राहक केंद्र को भी कर दे रहा है और राज्य सरकार के नखरे भी झेल रहा है। साथ ही ये दो ऐसे उत्पाद हैं जो केंद्र और राज्य की कमाई के दो सबसे बड़े साधन हैं क्योंकि इनपर लगाए गए कर से की कमाई राज्य सरकारें अपने पास रखती हैं और इनका कोई ब्यौरा केंद्र को नहीं दिया जाता। यह कारण भी है कि राज्य सरकारें इन दोनों उत्पादों को जीएसटी के दायरे में आने नहीं देना चाहती लेकिन इन सबका प्रभाव आम नागरिक की जेब पर पड़ रहा है।

ऐसे में आवश्यक है कि जीएसटी परिषद यह सुनिश्चित करे कि दोनों उत्पादों को जल्द से जल्द जीएसटी के दायरे में लाया जाए जो निश्चित रूप से कीमतों में कमी सुनिश्चित करेगा। जीएसटी अर्थव्यवस्था सुधारने का एक क्रांतिकारी कदम रहा है लेकिन अब शराब और ईंधन को भी इसके दायरे में लाना आवश्यक है। यह न केवल आम इंसान की जेब को दोहरी मार से बचाएगा बल्कि केंद्र सरकार के कोष में भी अधिक संचय करेगा जिससे कि उस धनराशि को बाद में आवश्यकता पड़ने पर राज्य सरकारों में केंद्र वितरित कर सकता है।

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