क्या कभी सोचा है कि आज से सौ या हज़ार सालों बाद लोगों का जीवन कैसा होगा? उन्हें इस समय के बारे में क्या और कितना पता होगा? यदि आपको उस समय के लोगों से बात करने का अवसर मिले तो आप उसे क्या बताना चाहेंगे? और क्या हो अगर मैं कहूं कि आप भविष्य के लोगों को अपना इतिहास और अपने काल की बातें बता सकते हैं? इन सभी प्रश्नों का उत्तर है टाइम कैप्सूल।
एक टाइम कैप्सूल जिसमें आमतौर पर कुछ सामान या उस समय से जुडी जानकारी रखी जाती है जिसमे वह दफनाया जा रहा है। यह आमतौर पर भविष्य के लोगों के साथ संचार की एक विधि के रूप में और भविष्य के पुरातत्वविदों, मानवविज्ञानी, या इतिहासकारों की मदद करने के लिए होता है जिससे कि वह साक्ष्यों के साथ अपने और उस स्थान या देश के इतिहास को जान सकें। कुछ दिनों पहले अयोध्या में राममंदिर निर्माण के दौरान भी टाइम कैप्सूल की चर्चा सामने आई थी जब कहा जा रहा था क़ी मंदिर और रामलला की जानकारी उस कैप्सूल में डालकर मंदिर के नीचे दफ़न की जायेगी।
आमतौर पर एल्युमिनियम, स्टेनलेस स्टील या तांबे जैसी धातुओं से टाइम कैप्सूल बनाया जाता है और संदेश एसिड फ्री कागज पर लिखा जाता है ताकि हजारों साल बाद भी कागज सड़ न जाए। टाइम कैप्सूल कंटेनर 3 फीट लंबा होता है और जमीन के अंदर लगभग हज़ारों फ़ीट की गहराई में दबाया जाता है।
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भारत में अब तक टाइम कैप्सूल की सूची
भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1970 के दशक के दौरान लाल किले के परिसर में दफन किया था। इस कालपात्र को लेकर उस समय काफी हंगामा मचा था। विपक्ष का कहना था कि इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल में अपना और अपने वंश का महिमामंडन किया है। 1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। जनता पार्टी की सरकार गठन के कुछ दिनों बाद ही कालपात्र टाइम कैप्सूल को निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का कभी खुलासा नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था। भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की उपस्थिति में 6 मार्च 2010 को आईआईटी कानपुर के सभागार के पास एक टाइम कैप्सूल को दफनाया गया था।
2019 में एलपीयू में दफनाया गया टाइम कैप्सूल
जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (LPU) में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अवसर के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में जनवरी 2019 में भी एक टाइम कैप्सूल दफनाया गया था। 10 फुट की गहराई में एक टाइम कैप्सूल को गाड़ा गया। इसे 100 साल बाद निकाला जाएगा और 22वीं सदी के लोग देख सकेंगे कि आज के जमाने में किस तरह के सामान, गैजेट और उपकरण इस्तेमाल किए जाते थे। इस कैप्सूल में 100 सामान रखे गए हैं जिनमें लैपटॉप, स्मार्टफोन, ड्रोन, वर्चुअल रियलिटी वाले चश्मे, अमेजन एलेक्सा, एयर फिल्टर, इंडक्शन कुक टॉप, एयर फ्रायर, सीएफएल, टेप रिकॉर्डर, ट्रांजिस्टर, सोलर पैनल, हार्ड डिस्क आदि हैं।।
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कैसे एक टाइम कैप्सूल भारत की सभ्यता और इतिहास को सुरक्षित रख सकता है?
यह बात और इतिहास किसी से नहीं छिपा है कि बाबर ने राम मंदिर तोड़कर अपनी बाबरी मस्जिद बनवाई थी। लेकिन इसी बात को सत्य सिद्ध करने और वापस राम मंदिर का निर्माण करने में कई लोगों के प्राण गए, अदालत की लम्बी कार्यवाइयां चलीं और दंगे भी भड़के। ठीक उसी तरह ज्ञानवापी मस्जिद भी शिव मंदिर को तोड़कर बनाया गया था यह बात वहां से शिवलिंग मिलने के बाद सिद्ध हो गयी है। लेकिन ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि इन मंदिरों में साक्ष्य के रूप में देवमूर्तियाँ और सनातन धर्म के चिन्ह नहीं मिलते तो क्या कोई भी इस बात पर विश्वास करता कि आज जहाँ मस्जिदें खड़ी थीं वे मंदिरो को तोड़कर बनाई गई थीं?
कोई नहीं जानता कि आज से हज़ारों वर्षों के बाद क्या होगा लेकिन जिस तरह से भूमि अधिग्रहण किये जा रहे हैं और सनातन संस्कृति पर चोट करने की कोशिशें की जा रही है ऐसे में आवश्यक है कि सनातन अपनी संस्कृति, इतिहास और सभय्ता की सही जानकारी भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाए। इसके लिए आवश्यक है कि जो भी सनातन धर्म के सिद्ध मंदिर हैं फिर चाहे वे बद्रीनाथ धाम हो या काशी विश्वनाथ, देवी वैष्णो देवी का मंदिर हो या फिर भगवन जगन्ननाथ इन सभी मंदिरों के नीचे सनातन के विषय, इस समय की स्थिति और विशेषकर मंदिर के इतिहास और भगवान के विषय में पूरी जानकारी एक टाइम कैप्सूल में डालकर मंदिर परिसर में ही दबा दी जाए ताकि भविष्य में यदि फिर से मंदिर की भूमि का अधिग्रहण करने की कोशिश होती है तो टाइम कैप्सूल एक साक्ष्य होंगे कि जिस स्थान पर विवाद चल रहा है वह मंदिर का था और है।
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कोई नहीं जानता कि हज़ारों सालों बाद किस राजा की प्रजा होगी लेकिन सनातन धर्म के इतिहास, सभ्यता और संस्कृति को सुरक्षित रखना और इसकी सही जानकारी अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना हमारी जिम्मेदारी है और इसके लिए टाइम कैप्सूल एक बेहतर प्रयास है।
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