दूसरों को ज्ञान देने से पहले, अपने गिरेबान में झांके। ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब मानवाधिकार पर भारत को ज्ञान देने वाले अमेरिका को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उसी के अंदाज में जवाब दिया था। परंतु यह अमेरिका है। वो कहां सुधरने वालों में से है। अमेरिका को तो आदत है पूरी दुनिया का ठेकेदार बनने और हर किसी को बेफिजूल का ज्ञान बांटने का।
अमेरिका के द्वारा भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर एक बार फिर से टिप्पणी की गई है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (USCIRF) द्वारा आलोचकों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई को लेकर चिंता व्यक्त की। अपनी एक रिपोर्ट में आयुक्त डेविड करी के हवाले से कहा- “USCIRF भारत सरकार द्वारा आलोचनात्मक आवाजों के निरंतर दमन को लेकर चिंतित है। विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों और उन पर रिपोर्टिंग और उनकी वकालत करने वालों के बारे में। USCIRF ने अपने कमिश्नर स्टीफन श्नेक के हवाले से आगे यह भी कहा- “भारत में मानवाधिकार अधिवक्ताओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आस्था के नेताओं को धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में बोलने और रिपोर्ट करने के लिए उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। यह लोकतंत्र के इतिहास वाले देश का प्रतिबिंब नहीं है।“
USCIRF Commissioner David Curry: “USCIRF is concerned about the Indian government’s continued repression of critical voices— especially religious minorities and those reporting on and advocating for them.” https://t.co/wj3N5WsrUJ
— USCIRF (@USCIRF) July 1, 2022
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यह टिप्पणी अमेरिका की गंदी मानसिकता दर्शाता है
यानी अमेरिका संगठन बेफिजूल में भारत की धार्मिक स्वतंत्रता पर टिप्पणी की गई। परंतु यह भारत वो भारत नहीं है, जिसे कोई भी आए और ज्ञान देकर चला जाए और वो चुपचाप सुनता रहे। आज का नया भारत हर किसी को उसी की भाषा में जवाब देना जानता है, फिर चाहे वो कोई भी हो। इस बार भी हुआ ऐसा ही अमेरिकी संगठन द्वारा की गई इस टिप्पणी पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने USCIRF की टिप्पणी को पक्षपातपूर्ण और गलत बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि यह टिप्पणी भारत के प्रति अमेरिका के समझ की कमी को दिखाता है।
एक बयान जारी कर अरिंदर बागची ने कहा- “हमने USCIRF द्वारा भारत को लेकर की गई पक्षपातपूर्ण और गलत टिप्पणियों को देखा। टिप्पणियां भारत और इसके संवैधानिक ढांचे, इसकी बहुलता और इसके लोकतांत्रिक लोकाचार के प्रति ‘समझ की गंभीर कमी’ को दर्शाती हैं।“
बागची ने आगे कहा- “अफसोस की बात है कि USCIRF अपने प्रेरित एजेंडे के अनुसरण में अपने बयानों और रिपोर्टों में बार-बार तथ्यों को गलत तरीके से पेश करता है। इस तरह की कार्रवाई से केवल संगठन की विश्वसनीयता और निष्पक्षता के बारे में चिंताओं को मजबूत करने का काम करती हैं।“
Our response to media queries on comments on India by USCIRF:https://t.co/VAuSPs5QSQ pic.twitter.com/qXnwSOA49K
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) July 2, 2022
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अमेरिका को भारत का जवाब
इससे पहले USCIRF ने एक माह पूर्व अपनी एक रिपोर्ट भी जारी की थीं, जिसमें उसने भारत को स्वतंत्रता के मामले में “विशेष चिंता वाले देशों” की सूची में डाला था। अमेरिकी संगठन ने इस सूची में चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ भारत को खड़ा किया था। आयोग ने बाइडन प्रशासन को इन देशों को विशेष चिंता वाले देशों में शामिल करने की सिफारिश की थी। तब भी इस रिपोर्ट को लेकर भारत की तरफ से USCIRF को जमकर लताड़ लगाई गई थीं। परंतु लगता है कि मानवाधिकार के कथित रक्षकों को तो आदत हो गई है भारत के मामलों में टांग उड़ाकर लेक्चर देने की। हाल ही में तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी के मामले में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने भारत को ज्ञान देने का प्रयास किया था। जिस पर भारत की ओर से करारा जवाब देते हुए संयुक्त राष्ट्र को अपनी सीमा पर रहने की चेतावनी दे दी थीं।
UNHRC ने तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी के मुद्दे को उठाते हुए जल्द से जल्द रिहाई की मांग भी की थी। जिस पर जवाब देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि- “यह देश की स्वतंत्र न्यायिक व्यवस्था में हस्तक्षेप करती है। एजेंसियों ने स्थापित न्यायिक नियमों के तहत कानून के उल्लंघन के विरुद्ध कार्रवाई की है इसलिए किसी विदेशी शख्स या संस्थान को इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने का कोई अधिकार नहीं है।” यानी भारत ने अपने रूख से साफ कर दिया है कि वे अपने यहां सभी नागरिकों और उनके अधिकारों की रक्षा करना अच्छे से जानता है। अमेरिका या फिर किसी और मानवाधिकार के कथित रक्षक से लेक्चर की जरूरत नहीं ।
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