अफ्रीका के पास एक ऐसी योजना है जो भारत की लॉटरी लगायेगा और चीन का सर्वनाश करेगा

भारत के लिए चीन से ब्रेकअप करने को तैयार है अफ्रीका!

Modi vs Jinping

Source- TFI

कभी कभी ऐसे भी अवसर आपके समक्ष आते हैं, जिसे देख आप नहीं समझ पाते कि करे तो करे क्या। ये प्रारंभ में एकदम हास्यास्पद प्रतीत होंगे परंतु एक ही तीर से दो लक्ष्य भेदने में सक्षम भी होंगे और कुछ ऐसा ही अफ्रीका हमारे लिए भी करने जा रहा है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे अफ्रीकी देश भारत के लिए अपने लिथियम भंडार खोलकर न केवल भारत का उद्धार करने को उद्यत हैं अपितु उन्होंने चीन के कर्ज के मायाजाल का सर्वनाश करने का रामबाण इलाज भी खोज निकाला है।

दरअसल, अफ्रीकी देशों ने एक ऐसी डील भारत के समक्ष पेश की है, जिसे भारत कतई अस्वीकार नहीं करेगा। अपने कर्ज चुकाने हेतु अनेक अफ्रीकी देशों ने लिथियम और कोबाल्ट के दोहन का प्रस्ताव भारत को दिया है, जो ई-व्हीकल, स्मार्टफोन इत्यादि में बहुपयोगी है। बता दें कि लिथियम के उत्पादन में चीन इस समय अग्रणी है और भारत के पास लिथियम के दोहन हेतु पर्याप्त संसाधन नहीं है। वर्ष 2019 से ही इस दिशा में भारत सतत प्रयास भी कर रहा है। भारत विदेशों में सामरिक खनिजों के खनन के अधिकार हासिल करने के लिए तैयार है।

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चीन को लगेगा तगड़ा झटका

ध्यान देने वाली बात है कि सामरिक खनिज वे खनिज हैं, जो सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ देश की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं। भारत में कुल 10 खनिजों को सामरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अब भारत विभिन्न देशों में लिथियम और कोबाल्ट का खनन करेगा। इन खनिजों का खनन ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली जैसे देशों में किया जाएगा। यह भारत में विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जा रहे कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। ऐसे में अफ्रीकी देशों द्वारा यह प्रस्ताव सोने पर सुहागा से कम नहीं होगा।

परंतु यह प्रस्ताव अफ्रीका ने यूं ही नहीं रखा। असल कारण है चीन और ‘सिंहिका’ की भांति फैलता उसके कर्ज का मायाजाल। कोरोना वायरस चीन के साथ-साथ उसकी डेब्ट डिप्लोमेसी के लिए भी बहुत बड़ा झटका लेकर आया है। अपनी डेब्ट डिप्लोमेसी के जरिये चीन छोटे और गरीब देशों को बड़े-बड़े कर्ज़ देकर उन्हें पहले दिवालिया करने और बाद में उनसे अपने हित में सौदे कराने के लिए बदनाम है। कुल मिलाकर चीन अपने कर्ज़ को भी निवेश के तौर पर इस्तेमाल करता आया है। अफ्रीका में भी चीन को यही करने का विचार सूझा।

चीन ने मुख्यतः आर्थिक तौर पर पिछड़े अफ्रीकी देशों को बड़े-बड़े लोन दिये। आज अफ्रीका पर अकेले चीन का लगभग 150 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है। हालांकि, कोरोना के बाद यह कर्ज़ गरीब अफ्रीकी देशों की बजाय खुद चीन के ही गले की फांस बन सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये अफ्रीकी देश अब चीन पर उनके कर्ज़ को माफ करने का दबाव बना रहे हैं। दबाव में झुककर अगर चीन को यह कर्ज़ माफ करना पड़ता है तो इससे बैठे-बिठाए चीन का 150 बिलियन डॉलर का ‘निवेश’ पानी में बह जाएगा।

अफ्रीका की पीड़ा को समझता है भारत

आपको बताते चलें कि कोरोना की वजह से अफ्रीकी देशों की आय में बड़ी गिरावट दर्ज की गयी है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अफ्रीकी देश इस बड़े झटके को सह नहीं सकते हैं। नतीजा यह है कि इससे निपटने के लिए अफ्रीकी देशों को सरकार चलाने के लिए भी कर्ज़ लेना पड़ रहा है। इसी वर्ष अफ्रीकी वित्त मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफ्रीका को 100 बिलियन डॉलर का राहत पैकेज देने का अनुरोध किया है। कहने को यह तो चोर के घर में ही चोरी चल रही है परंतु यह अनवरत नहीं चल सकती, उन्हें एक शक्तिशाली साझेदार की आवश्यकता तो पड़ेगी ही और ये साझेदार उन्हें भारत के रुप  में मिल रहा है।

वो कैसे? भारत उन चंद देशों में है, जो अफ्रीकी देशों की पीड़ा को समझता है और निस्स्वार्थ भाव से सेवा करने को तैयार भी रहता है। इसके अतिरिक्त चीन से उसका छत्तीस का आंकड़ा तो जगजाहिर है। शत्रु का शत्रु मित्र होता है, इस भावना को इस तरह से आत्मसात करने का इससे बढ़िया तरीका तो किसी ने भी नहीं सोचा होगा। ये न केवल अफ्रीकी देशों के लिए अपितु भारत के लिए भी वैश्विक स्तर पर अपने को विश्वगुरु के रूप में पुनः स्थापित करने का एक बहुमूल्य अवसर है और इसमें चीन का ऐसा नुकसान होगा, जिससे वो फिर कभी भी उबर नहीं पाएगा।

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