सावधान! भारतीय आम चुनावों में अमेरिकी बिग टेक दोहरा सकते हैं “हंटर बाइडन” का पूरा घटनाक्रम

धूर्त अमेरिकी बिग टेक की चालाकी भारत में तो नहीं चलेगी

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अमेरिका की बिग टेक कंपनियां अपनी मनमानी के लिए जानी जाती रही हैं जो कि आए दिन विवादों में रहती हैं। यह आम है कि तकनीक का मानव जीवन पर काफी प्रभाव होता है इसके अलावा आज के दौर में सोशल मीडिया के माध्यम से भी किसी को भी प्रभावित करना बहुत आसान हो गया है। कई बार राजनीतिक दृष्टि से भी तकनीक और सोशल मीडिया का प्रयोग किया जाता रहा है लेकिन यह स्वतंत्र लोकतांत्रिक चुनावों के लिए कभी-कभी सही प्रतीत नहीं होता। अब अमेरिका को ही ले लीजिए जब वहां चुनावों के दौरान कुछ ऐसा ही हुआ और अहम बात यह है कि फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने अब इस बात को स्वीकार भी कर लिया है।

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क्या फेसबुक चुनाव को प्रभावित करता है?

दरअसल, द जो रोगन एक्सपीरियंस पॉडकास्ट के दौरान फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने स्वीकार किया है कि वे फेसबुक एल्गोरिथम से अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन के बेटे हंटर बाइडन के लैपटॉप की खबरों को एक हफ्ते के लिए सेंसर कर चुके हैं। जुकरबर्ग ने स्पष्ट तौर कहा कि उन्होंने चुनाव में गलत सूचना को प्रतिबंधित करने के लिए एफबीआई के एक सामान्य अनुरोध के कारण ऐसा किया था। उनके इस बयान से यह समझा जा सकता है कि फेसबुक चुनावों को भी तेजी से प्रभावित करने की कोशिश करता रहता है।

हंटर बाइडन की फीड और खबरों को सेंसर करने के सवालों पर मार्क जुकरबर्ग ने बताया कि इसके लिए उन्होंने ट्विटर से अलग रास्ता अपनाया था। मार्क ने बताया कि एफबीआई के लोग उनके पास आए और कहा कि आपको अलर्ट रहना चाहिए। हमने सोचा कि 2016 के चुनाव में बहुत सारा रूसी प्रोपेगेंडा था। मार्क ने खबर को पूरी तरह से रोक देने के लिए ट्विटर की कड़ी आलोचना भी की। हालांकि उन्होंने फेसबुक पर इस खबर को सेंसर कर दिया, जिससे इसकी लोगों तक पहुंच कम हो गयी थी।

गौरतलब है कि 2020 में न्यूयॉर्क पोस्ट ने एक खुलासा किया था जिसमें जो बाइडन के बेटे हंटर और यूक्रेन के व्यापारिक सहयोगियों के बीच दसियों हजार ईमेल मौजूद होने का दावा किया गया था। इसी बीच ही राष्ट्रपति चुनावों को लेकर अमेरिका में सरगर्मी थी। ऐसे में मार्क जुकरबर्ग ने स्पष्ट तौर पर स्वीकारा है कि फेसबुक के एल्गोरिथम के जरिए हंटर बाइडन की इन खबरों को सेंसर किया गया था।

हंटर बाइडन की खबरों में उनका रूसी कनेक्शन भी सामने आ रहा था जबकि जो बाइडेन राजनीतिक लाभ के लगातार रूस पर हमलावर थे। ऐसे में इन खबरों से जो बाइडन को राजनीतिक तौर पर नुक़सान हो सकता था। जिसके चलते उस दौरान हंटर बाइडन से जुड़ी खबरों को सेंसर किया गया था जिससे चुनाव प्रभावित न हो। भले ही जुकरबर्ग इसके जरिए यह तर्क दे रहे हों कि रूसी हस्तक्षेप में कमी करने के लिए यह किया गया लेकिन यह एक ख़तरनाक स्थिति है।

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नया नहीं है डॉनल्ड ट्रंप और बिग टेक के बीच का टकराव

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से बिग टेक का टकराव हमेशा चर्चा में रहा। बिग टेक अपने पसंदीदा कैंडिडेट यानी जो बाइडन और उनके बेटे हंटर बाइडन की खबरों को सेंसर कर उनकी छवि सुधारने की कोशिश करत रहा और अब मार्क जुकरबर्ग ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है। जुकरबर्ग की इस स्वीकारोक्ति ने लोकतांत्रिक देशों को हिलाकर रख दिया है और सवाल उठने लगे कि क्या आगे जाकर अन्य देशों में भी चुनावों के दौरान फेसबुक या बिग टेक कंपनियां अपने पसंदीदा राजनेता या दल की विवादित खबरों को सेंसर करेगी?

भारत के लिहाज से यह एक बड़ा खतरा हो सकता है क्योंकि भारत की बड़ी आबादी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं। ऐसे में यह डर स्वाभाविक है कि जिस तरह अमेरिका में चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की गयी उसी तरह भारत के आम चुनावों में इस तरह की ट्रिक का इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत में पहले ही कैंब्रिज एनलिटिका का फेसबुक वाला फ्रॉड सामने आ चुका है जिसमें यूजर्स के डेटा के साथ छोड़छाड़ के आरोप लगते हैं और मार्क जुकरबर्ग का खुलासा फेसबुक की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है। इसके अलावा फेसबुक के साथ-साथ ट्वीटर को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है जब समय-समय पर भारत की लोकतांत्रिक शक्ति को चोट पहुंचाने के लिए ट्वीटर पर टूलकिट गैंग कुकुरमुत्ते की तरह उफन आते हैं।

ऐसे में आवश्यक है कि भारत में इस तरह की सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सरकार एक हद तक ही सुविधाएं दे। इनकी एक-एक नीति की न केवल जांच हो बल्कि यदि ये अपनी हरकतों से बाज न आएं तो भारत से इनका बोरिया बिस्तर समेट दिया जाए।

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