भारत विश्व पटल पर हर रोज एक नई कहानी लिखते जा रहा है। कई विकासशील देश भारत का अनुसरण करते हुए हमारे पीछे-पीछे चलने को अपना सौभाग्य मान रहे हैं। दुनिया के तमाम बड़े देश इस बात को अच्छी तरह से समझ गए हैं कि भारत की भविष्य है और यही कारण है कि किसी भी कीमत पर दुनिया के देश भारत के साथ संबंध बिगाड़कर नहीं रखना चाहते। अब खाड़ी देश भी इसी श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। खाड़ी देशों ने यह पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि वे किसी भी कीमत पर भारत को छोड़कर यूरोप के साथ नहीं जाएंगे।
दरअसल, यूक्रेन से छिड़े युद्ध के बाद पश्चिमी देश रूस के पीछे पड़े है। वे तमाम तरह के प्रतिबंधों के जरिए रूस को घुटने पर लाने के प्रयासों में जुटे हैं परंतु रूस भी हार मानने को तैयार नहीं। लगभग सभी यूरोपीय देश रूस के तेल और गैस पर काफी हद तक निर्भर रहे हैं। हालांकि, यूरोपीय संघ ने दिसंबर 2022 तक रूस से तेल व गैस खरीद में 90 फीसदी की कटौती का निर्णय लिया है। यानी यह तमाम देश इस वर्ष के अंत तक रूस के तेल पर अपनी निर्भरता को लगभग खत्म करना चाहते हैं।
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जाहिर सी बात है कि यूरोपीय देश रूस से तेल व गैस खरीदना कम कर देंगे तो ऐसे में अपनी आपूर्ति को पूरा करने के लिए उन्हें अन्य विकल्प तलाशने की जरूरत है। इसके लिए यूरोपीय देश, खाड़ी देशों की शरण में जाने को तैयार हैं। अपनी मांग को पूरा करने के लिए वे खाड़ी देशों का सहारा लेना चाहते हैं परंतु भारत की आपूर्ति में कटौती करके खाड़ी देश, यूरोप को तेल देने के लिए तैयार नहीं हैं।
द इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में संचालित रिफाइनर्स के अधिकारियों ने बताया कि खाड़ी के तेल निर्यातक यूरोप से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति में कटौती नहीं करेंगे। भारत में संचालित रिफाइनर अपनी तेल आवश्यकता का 60 प्रतिशत के करीब टर्म सौदों के माध्यम से प्राप्त करते हैं। वर्तमान में एक वार्षिक क्रूड खरीद सौदे पर बातचीत करने की तैयारी हो रही है। जनवरी से शुरू होने वाली टर्म के लिए सितंबर-अक्टूबर तक बातचीत शुरू होगी।
रिफाइनर के अधिकारी ने कहा कि बातचीत के दौरान हमारी टर्म डील प्रभावित होने की संभावना नहीं है। मुझे ऐसा नहीं लगता कि खाड़ी देश किसी भी महत्वपूर्ण तरीके से फर्म की मात्रा को कम करने वाले हैं। वो यूरोप की मांग को पूरा कर सकते हैं परंतु भारत की तेल आपूर्ति में कटौती किसी कीमत पर नहीं करेंगे। ऐसा कर वे भारत के साथ अपने दशकों पुराने संबंधों में खटास नहीं लाना चाहेंगे, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और कच्चा तेल आयातक देश है।
भारत ने अपनी मजबूरी को ही मजबूती बना लिया
ध्यान देने वाली बात है कि अरब देशों के पास भरपूर मात्रा में तेल है। देखा जाए तो उनके पास तेल के सिवाए और कुछ खास नहीं है और इसी के दोहन पर उनका राष्ट्र भी चलता है। खाड़ी देश दशकों से भारत को तेल की आपूर्ति कर रहे हैं। भारत के कच्चे तेल के आयात में खाड़ी देशों की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी है। यही कारण है कि वे यूरोप के तेल आपूर्ति को पूरा करने के लिए भारत के साथ अपने संबंध बिगाड़ना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें मालूम है कि भविष्य में भी भारत ही उनकी जरूरत है।
यूरोपीय देश जो खाड़ी देशों से अपनी तेल की जरूरत पूरा करने की आस लगाए बैठे है, यकीनन यह उनके लिए एक बड़ा झटका होगा। रूस-यूक्रेन शुरू होने के बाद से ही दबाव बनाने के लिए पश्चिमी देश रूस पर तमाम प्रतिबंध तो लगा रहे है परंतु उनके तमाम दांव उल्टे ही पड़ रहे हैं। रूस पर तो पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का कुछ खास असर पड़ता नजर नहीं आ रहा परंतु पश्चिमी देशों की समस्याएं इससे जरूर बढ़ रही हैं।
आपको बताते चलें कि एक समय में तेल आयात करना भारत की मजबूरी हुआ करती थी परंतु अब इसे ही भारत ने अपनी मजबूती बना लिया है। पश्चिमी देशों द्वारा रूस को अलग थलग करने की कोशिश हुई तो भारत ने रूस का साथ भी निभाया और इसके साथ ही कम दाम में रूस से भारी मात्रा में तेल भी खरीदा। आज रूस भारत का ईराक के बाद दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है। भारतीय रिफाइनिंग कंपनियों ने मई में लगभग 2.5 करोड़ बैरल रूसी कच्चा तेल खरीदा था, जो भारत के कच्चा तेल आयात का 16 प्रतिशत है। पहले भारत में रूसी तेल की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम हुआ करती थी। खाड़ी देशों को यह डर सताने लगा है कि तेल आयात के मामले में भारत जैसा पुराना साथी कही उनसे छिन न जाए। इसलिए वे भारत के लिए किसी भी कीमत पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं और इसलिए वे यूरोप की मांग तक को दरकिनार करने को तैयार है।
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