अगर भाजपा बिहार में ‘शिंदे’ नहीं ढूंढ पाई तो फिर कभी सत्ता में नहीं आ पाएगी

बिहार में भाजपा अब क्या-क्या कर सकती है, समझ लीजिए!

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Source- TFIPOST.in

बिहार की सियासत बदलते मौसम की तरह है। कब किसके आँगन धूप और किसके आँगन में तूफ़ान आ जाए पता ही नहीं चलता। एक समय भले ही सत्ता पर भाजपा और जदयू का गठबंधन विराज रहा हो लेकिन इन दोनों दलों के बीच जो दरार पड़ी है वह इस पूरी सत्ता को बदलने की ताकत रखती है। हाल ही में आई खबरों के अनुसार नीतीश कुमार अब भाजपा का साथ छोड़ रहे हैं और अटकलें लगाईं जा रही हैं कि बिहार में आरजेडी, जदयू और कांग्रेस एक बार फिर साथ आ रही हैं। हालांकि पहले भी ये पार्टियां गठबंधन में थीं लेकिन फिर नीतीश बाबू ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली और जदयू भाजपा से मिल गई।

लेकिन अब दोनों दलों में मनमुटाव के चलते जदयू अलग हो गया है। दरअसल, जदयू ने एनडीए गठबंधन के तहत केंद्र में दो मंत्री पद मांगे थे, लेकिन बीजेपी शीर्ष नेतृत्व इस पर राजी नहीं हुआ था। इस वजह से नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल से बाहर रहने का फैसला किया। हालांकि, सीएम नीतीश कुमार के मर्जी के बगैर जदयू के अध्यक्ष रहते हुए आरसीपी सिंह खुद केंद्र मंत्री बन गए थे। बीजेपी के लिए आरसीपी सिंह के मीठे-मीठे बोल नीतीश कुमार को कड़वे लगने लगे। इसका खामियाजा यह हुआ कि पहले उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा और रविवार को पार्टी से बाहर हो गए। आर.सी.पी. के जदयू छोड़ते ही सियासी घमासान और तेज हो गया।

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बीजेपी भले ही केंद्र की सत्ता में आठ साल से काबिज हो, लेकिन बिहार में अभी तक अपने दम पर न तो सरकार बना पाई है और न ही अपना मुख्यमंत्री। नीतीश कुमार के सहारे ही बीजेपी बिहार की सत्ता में बनी हुई थी। 2020 के चुनाव में बीजेपी जरूर 73 सीटें जीतकर जदयू से बड़ी पार्टी बनने में कामयाब रही है, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही बैठने में कामयाब रहे। खैर, नीतीश कुमार अब वापस आरजेडी के साथ जाने का मन बना चुके हैं और आरजेडी और जदयू एक बार फिर गठबंधन की सरकार बनाएगी। इसके लिए गवर्नर से नीतीश ने समय भी मांग लिया है ताकि वे अपनी बहुलता सिद्ध कर सकें।

तो फिर भाजपा कभी बिहार में सरकार नहीं बना पायेगी

यदि इस समय भाजपा जदयू को नहीं तोड़ सकी तो दोबारा फिर कभी उसे बिहार में सरकार बनाने का अवसर नहीं मिलेगा। इसके पीछे का कारण है बिहार का जातीय समीकरण। बिहार में जितने भी यादव और मुस्लिम हैं उनका संगठित वोट आरजेडी के लिए है और इसका परिणाम यह है कि 40 से 45% वोट आरजेडी के यहाँ से ही पक्के हो जाते हैं। इसके बाद भाजपा के पास केवल सवर्ण वोट और गैर यादव ओबीसी के ही वोट बचते हैं जो कि आरजेडी के वोट बैंक से बहुत कम है। यह आरजेडी के वोटों को टक्कर नहीं दे सकता। जिसके चलते भाजपा को गठबंधन बनाने की आवश्यकता पड़ती है। यही कारण है कि पिछली बार नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में भाजपा ने गठबंधन की सरकार बनाई।

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भाजपा इस रणनीति से बिहार मे सरकार बना सकती है

इस समय भले ही नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बना लेते हैं और स्वयं मुख्यमंत्री बनते हैं लेकिन फिर वर्ष 2025 में दोबारा विधानसभा चुनाव होंगे। हाँलाकि भाजपा जातीय समीकरण को देखते हुए नहीं जीत सकती लेकिन फिर भी एक उपाय है जिसे यह पार्टी आजमा सकती है। यह वही उपाय है जिसे भाजपा पार्टी ने महाराष्ट्र में आज़माया था। यदि भाजपा जदयू को तोड़कर उसके एक गुट को अपने पास लाने में सफल होती है तो भाजपा का बिहार में भविष्य बचेगा भी और बनेगा भी। हालाँकि भाजपा अपनी ओर से प्रयास कर रही है लेकिन केवल प्रयास ही उन्हें बिहार की कुर्सी तक नहीं ले कर जायेगा। उन्हें यह करके भी दिखाना होगा।

इस समय आरसीपी सिंह ने जदयू से इस्तीफा दे दिया है और यह भाजपा के लिए सुनहरा अवसर है। आरसीपी सिंह अपने साथ सात विधायक लेकर आये हैं। जदयू के पास बिहार में 45 विधायक है यदि आरसीपी सिंह उनमें से 30 को अपनी ओर करके भाजपा में लाने में सफल होते हैं तो भले ही इस वर्ष भाजपा अपनी सरकार न बना सके। लेकिन 2025 में होने वाले चुनावों में नीतीश कुमार की जदयू आरसीपी के कब्ज़े में  होगी। जिसके चलते वे भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना सकेंगे।

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