ठीक ही कहा गया है कि किसी का भी घमंड ज्यादा समय तक नहीं टिकता, एक दिन इसका अंत निश्चित है। घमंडी अमेरिका कथित महाशक्ति बनकर विश्व पर अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है। वो चाहता है कि पूरी दुनिया उसके हिसाब से चले परंतु अब यही अमेरिका धीरे-धीरे कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। रूस को तोड़ने के लिए अमेरिका के तमाम पैंतरे बेअसर हो रहे हैं और भारत के साथ रूस की जुगलबंदी इस तरह रंग ला रही है कि इससे महाशक्ति होने का ढोंग रचने वाले अमेरिका की हालत खस्ता होती चली जा रही है।
इस लेख में जानेंगें कि कैसे अमेरिका को मुंह चिढ़ाते हुए भारत और रूस स्वयं को डॉलर प्रूफ बनाने के प्रयासों में लग गए हैं।
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अमेरिकी डॉलर का दुनिया पर एकछत्र राज रहा हैं
दरअसल, भारत और रूस अब अमेरिकी डॉलर से दूरी बनाने की तैयारी में पूरी तरह से जुट गए हैं। देखा जाए तो अमेरिकी डॉलर का दुनिया पर एकछत्र राज रहा हैं। विभिन्न देश आपसी व्यापार में डॉलर का प्रयोग करते आ रहे हैं। परंतु अब डॉलर के इस प्रभुत्व में सेंध लगनी शुरू हो गयी है। धीरे-धीरे ही सही परंतु डॉलर के एकाधिकार को खत्म किया जा रहा है।
भारत और रूस डॉलर मुक्त होने की राह पर आगे बढ़ रहे है। हाल ही में ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम की अध्यक्ष पूर्णिमा आनंद ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि भारत और रूस को अब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता नहीं है। पूर्णिमा आनंद ने कहा कि “भारत-रूस को व्यापार करने के लिए डॉलर की जरूरत नहीं है। आपसी समझौते के लिए दोनों देश अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का रूख कर रहे हैं। रुपये और रूबल में व्यापार करने के लिए हमने आपसी सहमति बना ली, जिसके बाद आपसी व्यापार के लिए डॉलर का उपयोग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
यानी भारत और रूस आपसी कारोबार के लिए डॉलर की जगह अपनी-अपनी करेंसी रुपये और रूबल का इस्तेमाल करने की तैयारी में है। यकीनन इस कदम से डॉलर के कमजोर होने और रुपये-रूबल की महत्ता बढ़ने की संभावना है। वैसे पिछले कई महीनों से भारत और रूस द्वविपक्षीय व्यापार के लिए डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के प्रयासों में लगे हुए हैं।
दरअसल, रूस ने जब से यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध छेड़ा है तब से ही पश्चिमी देश मिलकर उसे प्रतिबंधों के माध्यम से तोड़ने की कोशिशों में लगे है। एक के बाद एक कई प्रतिबंधों के माध्यम से रूस की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के प्रयास हुए। परंतु भारत जैसे देशों का साथ मिलने की वजह से रूस इस दौरान भी मजबूती से खड़ा रहा। हालांकि प्रतिबंधों के कारण रूस के लिए उन देशों के साथ भी व्यापार करना कठिन हो गया, जिसके साथ उसके मैत्रीपूर्ण संबंध हैं और मुश्किल हालातों में भी जो देश उसका साथ दे रहे हैं। जिसके चलते रूस कारोबार के लिए विकल्प तलाशने में जुट गया है।
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व्यापार में समस्याएं भी आयीं
भारत ने रूस का एक दोस्त की तरह साथ निभाया और युद्ध की स्थिति में अपने कदम को लेकर तटस्थ रहा। भारत ने किसी की एक नहीं सुनी और इस दौरान उसने रूस के बीच व्यापार में जबरदस्त वृद्धि कर दी। लेकिन प्रतिबंधों के कारण भारत और रूस को व्यापार करने में समस्याएं आने लगीं जिसके चलते दोनों देश द्विपक्षीय मुद्रा में व्यापार करने की तैयारी में लग गए। अब भारत-रूस ने अपनी-अपनी करेंसी में व्यापार करने की योजना बनाई है।
इतना ही नहीं खबर तो यह भी है कि कारोबार को लेकर रूसी बैंक और भारत के बैंकों के बीच भी बातचीत का सिलसिला लगातार जारी हैं। कारोबार रूबल और रुपये में होगा, जिससे इस तरह के व्यापार के लिए स्थापित अमेरिकी डॉलर का मैकेनिज्म टूट जाएगा। द इकोनॉमिक्स टाइम्स की खबर के अनुसार 15 से अधिक रूसी बैंक भारतीय बैंकों के साथ संपर्क में है। इसके लिए रूस के जेनिट और तैत्सो बैंक भारत के बैंक ऑफ इंडिया, कैनरा बैंक और यूको बैंक के साथ अपना अकाउंट खोलने की तैयारी भी कर रहे है।
इन सबके अलावा भारत और रूस एक दूसरे की मीर और रुपे भुगतान प्रणाली को स्वीकार करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार रूस में जल्द ही भारत के रुपे कार्ड को प्रयोग करने की मंजूरी दी जा सकती है। वहीं इसी तरह रूस की मीर भुगतान प्रणाली को भारत में उपयोग करने की अनुमति दी जाने वाली है।
स्पष्ट तौर पर दिख रहा है कि भारत से सीख लेकर रूस भी “आपदा में अवसर” यानी युद्ध की स्थिति में समाधान निकालने के प्रयासों में जुटा पड़ा है। इस दौरान भारत रूस के साथ अपनी दशकों पुरानी मित्रता निभाते हुए पूरा सहयोग उसे दे रहा है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि युद्ध के दौरान पैदा हुए हालातों में जहां भारत और रूस की दोस्ती नये आयामों पर पहुंच रही है जिससे अमेरिका को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं और उसका दबदबा लगातार खत्म होता चला जा रहा है।
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