जयशंकर की एक चाल और चीनी ‘जासूसी जहाज’ श्रीलंका से बाहर

इसे कहते हैं, 'सांप भी मर जाए, लाठी भी ना टूटे' रणनीति !

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Source- TFIPOST.in

राजनीति में अपना दुश्मन सोच समझकर बनाना चाहिए और दोस्त बनाने से पहले तो हज़ार बार सोचना चाहिए. शायद श्रीलंका को आखिरकार यह बात समझ आ ही गई है. बीते कुछ दिनों से खबर आ रही थी 11 अगस्त को श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का जहाज़ आने वाला है. चीन का यह जहाज़ यहाँ 6 दिन रुकने के बाद आगे बढ़ता. हालाँकि चीन ने अपने इस जहाज़ को एक अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत के रूप में वर्णित किया था लेकिन एक भारतीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह एक दोहरे उपयोग वाला जासूसी जहाज है।

भारत इस जहाज़ को लेकर चिंतित क्यों है?

युआन वांग 5 एक दोहरे उपयोग वाला जासूस, अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत है। जो अंतरिक्ष और उपग्रह ट्रैकिंग के लिए नियोजित है और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल प्रक्षेपण में विशिष्ट उपयोग के साथ है। यह मिसाइलों और रॉकेटों के प्रक्षेपण और ट्रैकिंग का समर्थन करने के लिए शीर्ष एंटेना और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ एक अत्यधिक परिष्कृत मिसाइल रेंज इंस्ट्रूमेंटेशन जहाज है। ऐसे जहाज़ मुख्य रूप से सैन्य उद्देश्यों के लिए चीन, फ्रांस, भारत, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेनाओं द्वारा उपयोग किए जाते हैं।

चीनी जहाज़ ‘युआन वांग 5’ एक शक्तिशाली ट्रैकिंग पोत है। जिसकी महत्वपूर्ण हवाई पहुंच कथित तौर पर लगभग 750 किमी है। इसका अर्थ है कि केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कई बंदरगाह चीन के रडार पर हो सकते हैं। रिपोर्टों में दावा किया गया है कि “दक्षिण भारत में कई महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की जासूसी किए जाने का खतरा हो सकता है। क्योंकि हंबनटोटा से भारत के कई परमाणु संयत्रों की दूरी बहुत अधिक नहीं है, ऐसे में भारत की बड़ी जासूसी का खतरा था। यही वजह है कि भारत सरकार ने जहाज के आगमन को लेकर श्रीलंका से आपत्ति जताई थी।”

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केंद्र इस पर लगातार नज़र बनाये रखे था और आखिर में, श्रीलंका सरकार ने चीन के जासूसी जहाज को लेकर भारत की स्थिति पर गंभीरता से विचार करते हुए चीन से अपने जासूसी जहाज युआन वांग 5 के आगमन को टाल देने के लिए कहा। श्रीलंका का भारत के पक्ष में लिया यह फैसला चीन पर भारत की बड़ी कूटनीतिज्ञ जीत है।

चीन दोस्त, दुश्मन या बहरूपिया?

जिस चीन को कभी दोस्त मानकर श्रीलंका ने भारत के खिलाफ कई बार बयान दिए उसी चीन ने श्रीलंका की हालत खस्ता कर दी है। लोगों के पास न पेट भरने को भोजन छोड़ा और न ही उनकी मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अब उनके पास धन है। जब श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने दिसंबर 2021 में बीजिंग से मदद मांगी क्योंकि उन्होंने चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ बैठक में ऋण पुनर्गठन का अनुरोध किया था। हालांकि, चीन ने श्रीलंका पर अपने भारी कर्ज के बोझ को निर्धारित करने की श्रीलंका की अपील को भी ठुकरा दिया।

देश में आपातकाल की स्थिति पैदा करने के बाद “हम उम्मीद करते हैं कि श्रीलंका मौजूदा कठिनाइयों को दूर करने, स्थिरता बहाल करने, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और लोगों की आजीविका में जल्द से जल्द सुधार करने का प्रयास करेगा।” यह कहते हुए चीन ने श्रीलंका के संकटकाल से अपना पल्ला झाड़ लिया। बीजिंग ने मानवीय सहायता में कुछ 500 मिलियन युआन ($75 मिलियन, €73.35 मिलियन) प्रदान किए हैं और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ श्रीलंका की वार्ता में “सकारात्मक भूमिका निभाने” का वादा किया है। लेकिन इसने कर्ज से राहत के लिए संघर्षरत देश की हर अपील को नजरअंदाज कर दिया है।

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भारत और श्रीलंका

वहीं दूसरी ओर, भारत भोजन, ईंधन और दवाओं की कमी से जूझ रहे संकटग्रस्त श्रीलंका की मदद करने के अपने कर्तव्य से ऊपर और परे चला गया। भारत ने श्रीलंका को लगभग 5 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है। जिसमें से 2022 में 3.8 बिलियन डॉलर प्रदान किए गए हैं। मई में, द्वीप राष्ट्र को भारत से $16 मिलियन के मानवीय सहायता पैकेज की पहली खेप मिली और जून में, इससे अधिक आपूर्ति भेजी। 14,700 मीट्रिक टन (एमटी) चावल, 250 मीट्रिक टन दूध पाउडर, और 38 मीट्रिक टन दवाएं भेजीं।

श्रीलंका ईंधन की भारी कमी का सामना कर रहा है और भारत ईंधन उपलब्ध कराता रहा है। फरवरी 2022 में, दोनों देशों ने क्रेडिट लाइन के माध्यम से इंडियन ऑयल कंपनी से पेट्रोलियम उत्पादों की $500 मिलियन की आपूर्ति के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल में इसे और 200 मिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया गया था। द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन महीनों में श्रीलंका को भारत से 400,000 टन से अधिक ईंधन प्राप्त हुआ है।

ऐसे में अब श्रीलंका भी समझ गया है कि जितनी सहायता उसकी भारत ने की है उतनी कोई भी नहीं कर सकता। साथ ही जालसाज़ चीन के लिए भारत की दोस्ती खोना श्रीलंका के पक्ष में नहीं होता। इन्हीं कारणों पर विचार कर श्रीलंका की सरकार ने चीन के जहाज़ को अभी हम्बनटोटा पर भेजने से रोक दिया है। हालाँकि यह सच है कि श्रीलंका ने हम्बनटोटा बंदरगाह अगले 99 वर्षों के लिए चीन को पट्टे पर दे दिया है। लेकिन अभी भी श्रीलंका के पास इतनी ताकत है कि वह इस जासूसी चीनी जहाज़ को तब तक रोक कर रखे जब तक कि भारत अपने सुरक्षा के इंतज़ामों को और पक्का न कर ले।

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इस समय भले ही श्रीलंका के पास कुछ ऐसा नहीं जो वह भारत को दे सके या फिर भारत का ऋण उतार सके लेकिन एक ईमानदार सहायक और दोस्त के रूप में श्रीलंका भारत का दोस्त और वफादार साबित हो सकता है। श्रीलंका की यही निष्ठा भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है।

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