अमेरिका वालों ने अपने शहरों को जैसे नाम दिया है, जैसे न्यू यॉर्क को ‘बिग एपल’, शिकागो को ‘विंडी सिटी’, ‘वर्जीनिया इज़ फॉर लवर्स’ आदि उसी तरह अगर हम अपने बिहार को नाम दें तो बिहार को ‘फील गुड स्टेट’ कहा जा सकता है जो वास्तव में अब है नहीं! नीतीश कुमार बिहार को गर्त में लेकर जा चुके हैं। बिहार की हालत डांवाडोल है। नीतीश कुमार हर चीज को बर्बाद करने में माहिर हैं। 17 वर्षों से मुख्यमंत्री के रूप में काम करने वाले नीतीश कुमार ने अपने स्वार्थ के चक्कर में बिहार के साथ-साथ खुद की पार्टी का भी बेड़ा गर्क कर दिया है, जिससे त्रस्त होकर उनके अपने करीबी भी अब उनका साथ छोड़ते नजर आ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा और नवीनतम उदाहरण हैं बिहार के एक बड़े नेता और कभी नीतीश कुमार के राइट हैंड माने जाने वाले आरसीपी सिंह, जिन्होंने अब पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी सिंह का पार्टी से दूर होना, जेडीयू के खात्मे की शुरुआत है।
और पढ़ें: बिहार के सीएम नीतीश कुमार की बीजेपी से नफरत अब खुलकर आई सामने
नीतीश कुमार बिहार में जदयू के सबसे बड़े नेता तो हैं परंतु वो केवल पार्टी का एक चेहरा हैं। एक समय ऐसा था जब आरसीपी सिंह जदयू में नंबर 2 की हैसियत रखते थे। नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया। साथ ही उन्हें दो बार राज्यसभा तक भेजा परंतु बीजेपी के साथ उनकी बढ़ती नजदीकियां नीतीश कुमार को पसंद नहीं आई और दिल्ली दरबार में उनके बढ़ते कद के कारण उन्होंने आरसीपी सिंह के पर कुतरने का निर्णय ले लिया। नीतीश कुमार बीजेपी के साथ दोस्ती का दिखावा तो करते है परंतु वो उन दोस्तों में से हैं, जो मौका आने पर पीठ में खंजर भोंकने से बाज नहीं आते। सरकार में साथ होने के बावजूद वो कई मौकों पर बीजेपी के विरुद्ध खड़े नजर आते हैं। बीजेपी के विरुद्ध नीतीश कुमार की कुंठा तब और बढ़ गई, जब छोटे भाई की भूमिका में नजर आने वाली बीजेपी का कद बिहार में बढ़ने लगा।
नीतीश कुमार के शासन से ऊब चुकी जनता ने बिहार 2020 विधानसभा चुनावों में उन्हें आइना दिखाया और पार्टी को राज्य में तीसरे नंबर पर लाकर खड़ा कर दिया। विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और बड़े भाई की भूमिका में आ गई। आज नीतीश कुमार भाजपा की बदौलत ही बिहार के मुख्यमंत्री बनकर बैठे हैं।
मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए भाजपा और जदयू के बीच तनातनी चल रही थी, जिसका निपटारा करने का जिम्मा आरसीपी सिंह को सौंपा गया था। परंतु इस दौरान स्वयं केंद्रीय मंत्री बनकर आरसीपी सिंह ने भाजपा के साथ समझौता कर लिया। बस तभी से आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की आंखों में खटकने लगे और उन्होंने उन्हें किनारे लगाने का काम किया। यही कारण था कि पार्टी अध्यक्ष के पद से आरसीपी सिंह को हटना पड़ा। साथ ही जदयू ने आरसीपी सिंह का राज्यसभा से पत्ता काट दिया, जिसके कारण उन्हें केंद्रीय मंत्री के पद से हाथ धोना पड़ा। इसी दौरान आरसीपी सिंह को उन्होंने साफ कर दिया था कि वो शांत नहीं बैठेंगे।
उसके बाद जदयू ने आरसीपी सिंह को भ्रष्टाचार के कटघरे में भी खड़ा कर दिया। उनपर वर्ष 2013 से 2022 के बीच जदयू में रहते हुए भ्रष्टाचार के जरिये अकूत संपत्ति बनाने का आरोप लगा और जदयू ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे हिसाब किताब मांग लिया था। इन सबके बाद अब अंत में आरसीपी सिंह ने जदयू छोड़ने का फैसला ले लिया है। इस दौरान उन्होंने कहा कि पार्टी में अब कुछ नहीं बचा। जदयू एक डूबता जहाज है, जिसे अब कोई नहीं बचा सकता।
जदयू की हालत बिहार में कैसी है, यह तो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही स्पष्ट हो गया था। बिहार की जनता नीतीश कुमार के शासन से त्रस्त है और इसके कारण ही विधानसभा चुनावों में जदयू मात्र 43 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। इन सबके बाद भी अहंकार में आकंठ डूबे नीतीश कुमार की अकड़ ठिकाने नहीं आई है और अपनी पार्टी को संभालने की जगह वो पार्टी के बड़े नेताओं को किनारा करते जा रहे हैं। ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब जदयू इतिहास बन जाएगी!
और पढ़ें: आखिरकार भाजपा नीतीश कुमार और उनके तोतों को क्यों बर्दाश्त कर रही है?
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।