देखो भई करण, तुम आदमी जैसे भी हो, परंतु यह काम नहीं करना चाहिए था। जयकान्त शिकरे जैसा एटीट्यूड केवल जयकान्त शिकरे पर ही सुहाता है आप पर नहीं, जिनसे खुद की एक ओरिजिनल फिल्म तक न बन सके। जी हां, यहां बात हो रही है करण जौहर की जिन्होंने खुलेआम अपने विनाश को आमंत्रण दिया है।
स्वयं की बेइज्जती कराने से पीछे नहीं हट सकते करण
बॉयकॉट अभियान दावानल की भांति एक के बाद एक फिल्मों को लील रहा है जिसका हाल ही में शिकार बनी लाईगर। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर एक हफ्ते भी टिक जाए तो वो भी बहुत बड़ी बात हो जाएगी, परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि बॉलीवुड जानबूझकर जनता को उकसाने में लगी हुई है कि हम तो ऐसे ही काम करेंगे, तुम क्या कर लोग।
इसी परिप्रेक्ष्य में ‘ब्रह्मास्त्र’ के प्रोमोशन के दौरान करण जौहर ने बोला, “देखिए अगर आपको लगता है आपको देखना चाहिए और मत देखिए अगर आपको लगता है कि नहीं देखना चाहिए। क्योंकि कोई भी आप पर दबाव नहीं डाल रहा है फिल्म देखने के लिए। किसी ने भी आपके सिर पर बंदूक रखकर आपको फिल्म देखने के लिए नहीं कहा है मैं ऐसा महसूस करता हूं इसलिए मैं ट्रोल्स को गंभीरता से लेता नहीं हूं।”
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अरे करण, इन्हीं कारणों से राजामौली गारु ने तुम्हें RRR से लात मारकर निकाल दिया था अन्यथा ये तो बाहुबली के बाद RRR का भी क्रेडिट चुराना चाहते थे।
परंतु हंसी मज़ाक से इतर, जब आपकी फिल्म प्रदर्शन से कुछ ही दूरी पर हो और आप ऐसे बयान दे, तो ये स्पष्ट हो जाता है कि आप अपने ग्राहकों को क्या समझते हैं, और यहां तो करण जौहर ने सबसे बड़ी भूल कर दी। इतिहास साक्षी है, आदमी चाहे जितने निकृष्ट रहे हों परंतु करण जौहर बॉलीवुड के वो कॉकरोच है जिसने सबसे विषम परिस्थितियों में भी अपने शातिर दिमाग से अजीबोगरीब उत्पाद बेचने में सफलता पायी है, चाहे ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी अलविदा न कहना’ हो, ‘ए दिल है मुश्किल’, ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ हो। आप चाहे जितना करण से मतभेद रखे परंतु इस बात पर संदेह नहीं रख सकते हैं कि उसे अपने ग्राहकों के पसंद की समझ है।
परंतु इस बार करण ने अपने ही ग्राहकों को ठेंगा दिखाने का महापाप किया है और ऐसा करना किसी भी उद्योग में विनाश की नींव स्थापित करने के लिए पर्याप्त है।
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ऐसा पहली बार नहीं हुआ है
परंतु यह पहला ऐसा मामला नहीं। इससे पूर्व आलिया भट्ट ने कुछ ऐसे ही सुवाक्य कहे थे। आलिया भट्ट, जो अपनी फिल्मों के लिए भी जानी जाती है और विवादों के लिए भी। उन्होंने भी अपनी आगामी फिल्म ब्रह्मास्त्र के प्रदर्शन के पूर्व अपना ब्रह्मज्ञान देते हुए कहा कि हमें बार-बार अपने को डिफेंड करने की आवश्यकता नहीं है। अगर जनता को हमारी फिल्में नहीं देखनी तो मत देखें। परंतु इस मामले में सबसे मस्त तड़का दिया फरहान अख्तर ने। उन्होंने कहा, “बॉलीवुड को अब ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है उन्हें ग्लोबल ऑडिएंस को देखते हुए कंटेंट तैयार करना होगा। हमें ज्यादा लोगों तक पहुंचने का तरीका ढूंढना होगा जैसा ‘द अवेंजर्स’ ने किया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सी भाषा में बात कर रहा है या कोई इंग्लिश समझ पा रहा है या नहीं। जरूरी है कंटेंट, जिससे आप कनेक्ट कर सकें।”
यानी ‘बॉलीवुडिया गैंग’ को यह लगने लगा है कि देश की जनता उन्हें बुरी तरह से नकार चुकी है और उनकी फिल्में भारत में फ्लॉप ही होंगी। फरहान अख्तर के बयान से यह तो स्पष्ट है कि देसी बिरादरी को माल हजम नहीं हुआ तो विदेशी बिरादरी को ठुसायएंगे। लेकिन इस महाशय को समझना होगा कि इज्जत घर से ही आती है और जब घर पर ही भाव न मिले तो दुनिया से दो चार वाह वाही बटोर कर कोई क्या ही कर लेगा? रही बात ग्लोबल कनेक्टिविटी की, तो चाटने में और नमन करने में अंतर होता है और यह अंतर ‘रौद्रम रणम रुधिरम’ (RRR) ने बहुत ही स्पष्ट रूप से बता दिया है।
वो कहते हैं न कि जब नियत में ही खोट हो तो दर्पण को भी साफ करके तोड़ दिया जाता है। यही हाल करण जौहर का है जिन्हें अब जनता का आक्रोश ही अनुचित लग रहा है, भले ही वो दिखाने का प्रयास न करे।
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