सीएम केजरीवाल ने अपने ही खूबसूरत हाथों से बिगाड़ा अपना भव्य प्लान

झूठ बोलते-बोलते सच बता गए केजरीवाल !

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Source- TFIPOST.in

अक्ल पर पत्थर पड़ जाना, कभी कभी यह कहावत असल जीवन में ऐसे चरितार्थ होती है कि देखने वाला भी आनंद लेता है और बाद में जीवनपर्यन्त तंज भी कसता है। कुछ ऐसा ही इस बार दिल्ली के कथित स्वघोषित मालिक अरविंद केजरीवाल के साथ हुआ। अपने मुंह मियां मिठूं, इसी परिपाटी को आत्मसात करने वाले अरविंद केजरीवाल इस बार ऐसे बुरे फंसे हैं कि झूठ सबके सामने बोलते-बोलते सच निकल गया और पोल खुल गई। झूठ के न कल पांव थे न आज हैं न आगे होंगे इसलिए वो क्षणभर भी नहीं टिक पाता। और चूंकि केजरीवाल सरकार झूठ के आडंबरों पर खडी पाई गई तो इस बार भी झूठ बोल तो दिया पर स्वयं ही उस झूठ का पर्दाफाश कर दिया।

दरअसल, शुक्रवार को “कट्टर ईमानदार” नई आबकारी नीति में फंसे पुराने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने वही पुरानी वाह-वाही नीति के शिगूफे के साथ कहा कि “मशहूर न्यूयॉर्क टाइम्स के पहले पन्ने पर छाई सीएम अरविंद केजरीवाल की शिक्षा क्रांति…दुनिया देखती है, जैसे दिल्ली आगे का रास्ता दिखाती है।” न्यूयॉर्क टाइम्स के पहले पन्ने पर अपने सिसोदिया को चित्रित किए जाने की प्रशंसा करते हुए सीएम केजरीवाल भी परोक्ष रूप से अपनी वाह-वाही करने में लग गए। लेकिन सीएम केजरीवाल को ऐसी लागी लगन की जो आरोप दिनभर से उनकी विपक्षी पार्टियां लगा रही थीं, उसको उन्होंने स्वयं ही स्वीकार कर लिया।

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बता दें, शुक्रवार सुबह से आम आदमी पार्टी का कुनबा यह ख़ुशी मना रहा था कि न्यूयॉर्क टाइम्स में उसके दिल्ली मॉडल को स्वीकृति मिल गई। भले ही वास्तविकता इससे कोसों दूर हो। जिस अखबार में मात्र भारत और विशेषकर मोदी सरकार को घेरने के लिए उसे खुनी बताने के लिए कोरोना में तथ्यविहीन लेख लिख दिया हो तो और तो क्या ही उम्मीद इस अखबार से की जा सकती है।

अब जब केजरीवाल सरकार के शिक्षा मॉडल पर आधारित यह लेख पढें तो पता चलता है कि जमीनी हकीकत से जिन दावों का वास्ता न हो ऐसे-ऐसे कथित तथ्य उसमें लिखे गए। अब यह जानना भी आवश्यक है कि यह कौन हैं जिन्हें ऐसी अंदर की जानकारी है जो किसी को नहीं है। तो पता चलता है कि न्यूयॉर्क टाइम्स के रिपोर्टर करण दीप सिंह का तो इतिहास रहा है कि थोक के भाव उन ख़बरों को प्लांट करो जिनका जमीनी सरोकार निल्ल बटे सन्नाटा हो।

कोरोना में मोदी सरकार के विरोध में एक लेख लिखा गया जिसका एकमात्र मकसद यह प्रतीत कराना था कि कैसे भारत सरकार ने कोविड -19 को गलत तरीके से प्रबंधित किया। न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा प्रकाशित लेख को पढ़ने पर यह पाया गया कि इन कपटपूर्ण और सर्वथा बेईमान दावों जिनके तहत मोदी सरकार को नाकामयाब और हत्यारा बताने की साजिश रची गई उस दावे का समर्थन करने के लिए कोई रिपोर्ट में एक डेटा प्रदान नहीं किया गया था।

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अब इससे यह तो तय था कि न्यूयॉर्क टाइम्स तब भी यूँही हरकत नहीं किया था जब उसने मोदी सरकार को घेरने के लिए लेख लिख डाला था। तब भी किसी घर के लिबरल भेदी ने नौटंकी की थी और पैसा देकर खबर निकलवाई थी और इस बार भी जो यह लेख आया वो भी जमीनी जायज़ा लेने के बाद नहीं बल्कि जो माननीय कथित रूप से दिल्ली के मालिक ने दे दिया उसे प्रसाद समझ न्यूयॉर्क टाइम्स ने हज़म कर लिया और इसकी स्वीकार्यता स्वयं दिल्ली के कथित मालिक अरविंद केजरीवाल ने दे दी जब वो हमेशा की तरह लाइव आए और टीवी पर कह पडे कि, “न्यूयॉर्क टाइम्स में खबर छपवाने-छपने के लिए बडा मुश्किल होता है। बडा मुश्किल होता है न्यूयॉर्क टाइम्स में खबर छपना।”

अब हाथ कंगन को आरसी क्या पढे लिखे को फ़ारसी क्या। बोलते बोलते केजरीवाल यह तक तो कबूल गए कि छपवाने के लिए बडा मुश्किल होता है। शेष जनता जानती है और खूब समझ भी रही कि जिस बीते 7 साल में एक नया स्कूल नहीं खुला, शिक्षा का स्तर इतना नीचे आ गया कि रैंक के मामले में साल-दरसाल स्कूलों की रैंकिग देशभर में ऐसे गिरती जा रही है जैसे मानों तेल के प्रकोप आ गई है पूरी शिक्षा क्रांति जिसके जनक यही केजरीवाल और सिसोदिया हैं।

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