आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा बुरी तरह से फ्लॉप हो गई. दूसरे दिन आमिर खान की फ़िल्म ने 7.25 करोड़ रुपये कमाए. इस कमाई को जोड़कर देखा जाए तो 2 दिन में लाल सिंह चड्ढा ने कुल 18.75 करोड़ रुपये कमाए. ऐसे में एक बात तो साफ है कि लाल सिंह चड्ढा दर्शकों का ध्यान खींचने में बुरी तरह से असफल रही है. इसके साथ ही फ़िल्म के फ्लॉप होने की एक मुख्य वज़ह ये भी है कि फ़िल्म का बड़े स्तर पर बॉयकॉट किया गया था.
राष्ट्रवादियों ने सोशल मीडिया पर फ़िल्म का बॉयकॉट किया. इसके पीछे कई कारण थे. इन कारणों की चर्चा हम अपने कई लेखों में कई बार कर चुके हैं- लेकिन इस लेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्या आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा के फ्लॉप होने से ही हमारी जीत हो जाती है? क्या यह हमारी अंतिम जीत है?
इसमें कोई शक नहीं है कि लाल सिंह चड्ढा एक घटिया फ़िल्म है. पहले और दूसरे दिन इसने जो कलेक्शन किया- उसे देखकर यह समझा जा सकता है कि यह फ़िल्म बुरी तरह से फ्लॉप होने जा रही है. इस फ़िल्म के बर्बाद होने के पीछे वज़ह क्या है? फ़िल्म समीक्षक कहेंगे कि फ़िल्म में दम नहीं था- फ़िल्म की कोई ‘क्वालिटी’ नहीं थी, लेकिन सत्य यह है कि बॉयकॉट अभियान ने आमिर खान की फिल्म को फ्लॉप करा दिया.
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लेकिन क्या हम जीत गए? क्या एक सभ्यता की जीत के तौर पर इसका दावा किया जा सकता है? या फिर हमें जीत पर दावा करने के लिए अभी और कई फ़िल्में डूबानी हैं? सत्य यह है कि जीत दूर-दूर तक कहीं नहीं है, यह अगर कुछ है तो एक छोटी से झलक है.
सूचना प्रसार में सिनेमा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह एक जन माध्यम है. यह उन लोगों के लिए शिक्षा का माध्यम भी है जो डॉक्यूमेंट्री नहीं देख पाते हैं. इसलिए रईस और परज़ानिया जैसी प्रोपेगैंडा फ़िल्मों के उदाहरण सत्य की तरह पेश किए जाते हैं.
Tanking a movie by a proven propagandist is a good step but just a step in a stairway of thousands of steps. Real victory lies in reclaiming everything that was once our own. It will take time, but it will happen.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) August 12, 2022
सिनेमा इंडस्ट्री को गिराकर शुरूआत करना अच्छा कदम है. यह मीडिया के बाद दूसरा संस्थान है जोकि गिरेगा. ‘5 स्टार संपादक’ और ‘न्यूज़रुम के एंकर’ 2014 के बाद धीरे-धीरे यूट्यूबर बनकर रह गए हैं.
सभ्यताई जीत का दावा तभी किया जा सकता है, जब निम्नलिखित उद्देश्य पूरे हो-
पाठ्य-स्थल: सभी बीमारियों की जड़ यह है. यह राष्ट्र को असेंबली की पंक्तियों में पतीत बनाता है, और इसने रुकने का कोई संकेत नहीं दिया है. कॉलेजों में मार्क्सवादी विचारधारा के प्रोफेसर्स, एड टेक और यूट्यूब पर ज़हर उगलते रॉक स्टार शिक्षक और NCERT जिन स्कूल के शिक्षकों को ‘कोट’ कर रही है- उस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
मंदिर: इस्लामिक आक्रांताओं ने हमारे मंदिरों को क्यों ध्वस्त किया था? हमें लज्जित करने के लिए? बिल्कुल, लेकिन यह उनका मुख्य उद्देश्य नहीं था. मुख्य तौर पर उनका उद्देश्य था हमें हमारी जड़ों से काटना. मंदिर, समुदाय के इकठ्ठा होने के स्थान थे, स्कूल थे और कई मामलों में समुदाय की तिजोरी भी थे. ओडिशा में राजा कपिलेंद्र देवा ने भगवान जगन्नाथ को राजा का दर्जा दिया था. वहीं, पदमनाभा स्वामी को राजा का दर्जा त्रावणकौर के राजा मार्तंड वर्मा ने दिया था. इस तरह से मंदिर भारतीय संस्कृति और राजनीति के केंद्र में रहे हैं- अगर मंदिर वास्तव में सरकारी चंगुल से मुक्त नहीं होते तो हम एक संस्कृति के रूप में कभी समृद्ध नहीं होंगे.
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जाति: पीएम मोदी ने यह करके दिखा दिया कि अगर हिंदुओं के पास सही तरीके से पहुंचा जाए तो वो हिंदुत्व के बैनर तले एकसाथ आ सकते हैं. इसलिए वो देश के सबसे बड़े सवर्ण, OBC और दलित नेता बने.
अगर हमें एक सभ्यता के रुप में समृद्ध होना है- तो हमें इसे एक साथ करने की आवश्यकता है. इसका अर्थ है कि हमें अपनी पूर्व कल्पित धारणाओं से छुटकारा पाना होगा.
पालन-पोषण: माता-पिता को अपने बच्चों में धार्मिक ज्ञान का संचार करना चाहिए. मैं अपने परिवार के सभी बच्चों में धार्मिक ज्ञान का संचार करता हूं. भोले-भालो बच्चों के दिमाग में लव जिहाद, छद्म-धर्मनिरपेक्षता, ‘वोकइज़्म’ का कूड़ा इसलिए भर जाता है क्योंकि उनके पास उसे लतियाने के लिए कुछ नहीं होता. 14 वर्ष की उम्र तक बच्चों को 4 वेद, 14 उपनिषद्, 2 महाकाव्य और 18 पुराणों का ज्ञान दिया जाना चाहिए- जोकि बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है.
राजनीति: हम में से बहुत ससे लोग वोट नहीं देते. कुछ लोग अंधे होकर वोटिंग करते हैं और कुछ नोटा दबा देते हैं. लोकतंत्र संख्याओं का खेल है. अगर आप वोट नहीं देते हैं, और आपके वैचारिक विरोधी वोट करते हैं- तो आपके समर्थक उम्मीदवार का हारना तय है- इसका मतलब आपका हारना तय है.
अपनी बुद्धि को तैयार रखो, अपने शरीर को तैयार करो. यह ऐसी दुनिया है जो क्षमा नहीं देती, और दुर्भाग्य से आप उस समूह के विरुद्ध खड़े हैं जोकि कभी भी दया नहीं दिखाता. वाद-विवाद, संवाद में विजय पाने के लिए हमेशा तथ्यों के साथ तैयार रहें.
अगर किसी तरह से वो आपके दरवाजे तक पहुंच जाएं तो स्वयं को इस तरह तैयार रखिए कि आप उन्हें दबोच पाएं. यह हमला या युद्ध नहीं है- बल्कि आत्मरक्षा है- और यह एक धार्मिक कृत्य है.
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