कुछ लोगों को देखकर एक ही बात स्मरण आती है, ‘चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए’ और हमारी मीडिया पर भी यही बात जोर-शोर से लागू होती है। बॉलीवुड का जिस तत्परता से ये लोग बचाव करते हैं, उतना तो शायद नीतीश कुमार का भारत के बुद्धिजीवी भी न करें। स्थिति तो ये हो चुकी है कि घरेलू वितरकों को उनका बकाया देने के लाले पड़े हैं और मीडिया ये दिखाने में लगी है कि आमिर खान कितने “दानवीर” हैं, जबकि सत्य तो कुछ और ही है।
लाल सिंह चड्ढा का हाल कितना बुरा है, ये आप इस बात से पता लगा सकते हैं कि स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण दिन पर इसे जनता ने लात मार दी। ऐसे दिन बॉक्स ऑफिस पर कुछ नहीं तो आप मिनिमम 11 करोड़ तो कमा ही लेते हो, और बाटला हाउस जैसी फिल्म, जो मूल रूप से एक कमर्शियल फिल्म भी नहीं थी उसने भी स्वतंत्रता दिवस पर रिलीज़ होकर एक बॉक्स ऑफिस क्लैश के बाद भी लगभग 15 करोड़ का कलेक्शन किया। परंतु लाल सिंह चड्ढा का 15 अगस्त पर कलेक्शन मात्र 7.87 करोड़ रहा यानि 5 दिन का एक्स्टेंडेड वीकेंड होने के बाद भी घरेलू बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म 50 करोड़ भी नहीं पार कर पाई –
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अब मीडिया ने एक बार पुनः वही कार्ड चलाया जिसके लिए वह चर्चित है– सहानुभूति कार्ड। तुरंत रिपोर्ट छपने लगी कि आमिर इस फिल्म की असफलता से बहुत निराश हैं और वे सभी लोगों के नुकसान की भरपाई करेंगे।
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बॉलीवुड हंगामा के रिपोर्ट के अंश अनुसार,
“आमिर खान और पूर्व पत्नी किरण राव के एक करीबी दोस्त ने बताया है कि आमिर खान सदमे हैं और दर्शकों के फिल्म को नकार देने ने उन्हें बुरी तरह प्रभावित किया है। उन्होंने फिल्म को बहुत ही शिद्दत के साथ बनाया था। यही नहीं, उन्होंने फिल्म की असफलता की पूरी जिम्मेदारी ली है और वितरकों को हुए जबरदस्त नुकसान की भरपाई करने का फैसला लिया है”
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ठहरिए, इतना भावुक होने की आवश्यकता नहीं। ये आमिर खान हैं, रजनीकान्त नहीं, जो वास्तव में जनता दरबार खोल कर अपने खाते से अपने निर्माताओं को हुई हानि भरते फिरें। इनके रिकॉर्ड बुक्स को ही आप खोल लें तो आपको पता चल जाएगा कि इनकी असफलताओं को कितनी सफाई से छुपाया गया। यहाँ तक कि ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ को भी एक क्षणिक भूल की भांति दिखाने का प्रयास किया गया था मानो कि हाँ भई, आमिर खान से भी गलतियाँ हो सकती हैं, जबकि वास्तविकता तो यह है कि आमिर खान कोई बहुत उत्कृष्ट अभिनेता नहीं रहे हैं, वे बस अपनी फिल्मों को सफाई से पेश करना जानते हैं।
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अगर कोई उन्हे योग्यता में टक्कर देने वाला मिल जाए, तो उनकी क्या हालत हो जाती है, वो आप केवल ‘गदर’ और ‘लगान’ के रिलीज़ के समय शोध से ही देख सकते हैं। एक ही दिन दोनों फिल्में प्रदर्शित हुईं थीं, परंतु सब कुछ आमिर के पक्ष में होने के बाद भी जो हालत बिना किसी ढोल नगाड़े के एस एस राजामौली के ‘बाहुबली’ ने ‘दंगल’ की की, वही हाल सनी देओल ने अभिनय, विचारधारा और लोकप्रियता तीनों में ‘गदर’ के माध्यम से किया और आमिर खान को अपने कलेक्शन बचाने के लाले पड़ गए। कल्पना कीजिए अगर ये क्लैश आज हुआ तो।
परंतु इन सब का आमिर खान और मीडिया के झूठे प्रचार प्रसार से क्या लेना देना? लेना देना है, क्योंकि तब जनता के पास हर वस्तु का एक्सेस आसानी से उपलब्ध नहीं था, और उन्हे भ्रमित करना ऐसे लोगों के लिए सरल भी था। परंतु सोशल मीडिया की कृपा से अब ये भ्रम की दीवार नष्ट हो चुकी है, और विकल्पों के अथाह सागर के कारण अब जनता को पता है कि कॉन्टेन्ट क्या होता है और नौटंकी क्या होती है, इसलिए उन्हे मूर्ख बनाना बच्चों का खेल नहीं। ऐसे में यदि मीडिया यह सोच रही कि वे आमिर खान को असहाय बनाकर सहानुभूति प्राप्त कर लेगी, तो दिल बहलाने को गालिब यह ख्याल अच्छा है।
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