भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे मजबूत पार्टी बनी हुई है। बीजेपी ने देश की राजनीति पर बेहद ही मजबूती से अपनी पकड़ बना ली। वे पार्टी जो कभी केवल 2 सीटों पर ही सिमट गई थी, वो देश में लगातार दो बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही। केवल केंद्र ही नहीं बीजेपी आज तमाम राज्यों में भी सत्ता पर काबिज है। कुछ राज्यों को अगर छोड़ दें तो अधिकतर जगहों पर आपको भगवा पार्टी का परचम लहराया हुआ ही नजर आता है। परंतु अगर सही तरीके से विश्लेषण किया जाए, तो पता चलता है कि बीजेपी राष्ट्रीय पार्टी जैसे कांग्रेस के सामने ही अधिक मजबूत है। वहीं जब बात क्षेत्रीय दलों की आती है, तो पार्टी कही ना कही कमजोर पड़ती हुई दिखाई देती है। उत्तर प्रदेश को छोड़ दें, तो बीजेपी अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दलों को हराने में कामयाब नहीं हो पाती। इसे कुछ उदाहरण के जरिए समझने के प्रयास करते है।
कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों के सामने कमजोर पड़ी है भाजपा
सबसे पहले उन राज्यों को देख लेते हैं, जहां आज बीजेपी की सरकार सत्ता में नहीं है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्कम, मिजोरम, तमिलनाडु, पंजाब और झारखंड यह उन राज्यों की सूची में है, जहां बीजेपी सरकार में नहीं है। इनमें से अगर राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़ दें तो बाकी सभी राज्यों पर क्षेत्रीय दलों ने अपना दबदबा बनाया हुआ है। केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें है। बाकी सभी गैर-बीजेपी शासित प्रदेशों में क्षेत्रीय दल मजबूत नजर आते है, जिनके आगे बीजेपी कही ना कही पस्त पड़ जाती है।
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तमिलनाडु में डीएमके की सरकार सत्ता में है, केरल में कम्युनिस्ट पार्टी और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी का दबदबा है। झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से झामुमो सत्ता पर काबिज है, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की YSRCP और तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव की टीआरएस सरकार में है। यानी अधिकतर गैर-बीजेपी शासित राज्यों पर क्षेत्रीय दलों का ही दबदबा बना हुआ नजर आता है। केवल उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है, जहां सपा-बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों को हराकर बीजेपी सत्ता हथियाने में कामयाब रही। जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार है, उनमें से अधिकतर प्रदेशों में राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को हराकर ही वे सत्ता में आई। मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम जैसे कई राज्य है, जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच हमेशा से ही सीधी टक्कर देखने को मिली। इन राज्यों में कांग्रेस को मात देकर बीजेपी ने सत्ता पर अपना कब्जा जमाया।
उदाहरण के लिए आप बिहार को ले सकते है। बिहार में एनडीए की सरकार जरूर है। बीजेपी ने यहां जेडीयू की सरकार को समर्थन दिया हुआ है और साथ ही पार्टी राज्य में मजबूत भी होती चली जा रही है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान बिहार में बीजेपी की सीटें जरूर बढ़ी, परंतु देखा जाए तो राज्य में आज भी सबसे मजबूत पार्टी आरजेडी ही नजर आती है। विधानसभा चुनावों में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। जिससे स्पष्ट हो जाता है कि बिहार की राजनीति पर आज भी आरजेडी ने अपना दबदबा बनाए रखा हुआ है, जिसे चुनौती देने की कोशिशों में भले ही बीजेपी पूरी तरह से जुटी हुई है।
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इन सबसे स्पष्ट हो जाता है कि बीजेपी का जो जादू आज पूरे देश में चल रहा है, वो राज्यों के क्षेत्रीय दलों के आगे आकर फीका पड़ ही जाता है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह नजर आता है कि बीजेपी इन क्षेत्रीय दलों को उतनी मजबूती से टक्कर देने में कामयाब नहीं हो पाती, जितना कि वो आज के समय में राष्ट्रीय पार्टियों को दे रही है। यानी मोदी-शाह की जोड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को हराने का फॉर्मूला तो अच्छे से जानती है, परंतु पार्टी कही ना कही क्षेत्रीय दलों के सामने कमजोर पड़ जाती है और उनकी राजनीति को डिकोड करने में विफल हो जाती है।
PM Modi का ‘फ्री रेवड़ी कल्चर’ को लेकर तंज
हालांकि अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बीजेपी क्षेत्रीय दलों को टक्कर देने का फॉर्मूला भी मिल गया और पार्टी उन्हें चुनौती देने की तैयारी में जुट गई है। ऐसा उस दिन से लगने लगा है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रीबी पॉलिटिक्स पर करारा हमला बोलते हुए एक बड़ा बयान दिया था। प्रधानमंत्री ने अपने बयान के बताया था कि “कैसे रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए घातक है।” पीएम मोदी ने कहा कि “रेवड़ी संस्कृति वाले लोग आपके लिए कभी एक्सप्रेस-वे, नए हवाई अड्डे या रक्षा गलियारे नहीं बनाएंगे। हम सबको मिलकर इस सोच को हराने की जरूरत है और देश की राजनीति से रेवड़ी संस्कृति को हटाना है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इसी बयान को क्षेत्रीय दलों की राजनीति पर करारे प्रहार के तौर पर देखा जा सकता है। कई क्षेत्रीय पार्टियां जनता को लुभाने और वोटबैंक पर अपना कब्जा जमाने के लिए चीजें फ्री में बांटती रहती है। केवल अरविंद केजरीवाल ही नहीं आप किसी ओर राज्य को भी उठाकर देखेंगे, तो लगभग हर जगह ऐसी ही स्थिति नजर आएगी। चाहे वो मुफ्त में बिजली-पानी बांटना हो या फिर मुफ्त में स्कूटी, लैपटॉप से लेकर स्मार्टफोन बांटने का वादा, क्षेत्रीय दल अपने राज्य के मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहारों का सहारा लेते आए है। ऐसे में क्षेत्रीय दलों की फ्रीबी पॉलिटिक्स पर अब बीजेपी प्रहार करने की कोशिश करती नजर आ रही है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बयान में रेवड़ी कल्चर को लेकर करारा हमला तो बोला ही था, इसके साथ ही उन्होंने यह बात भी कही थी कि “फ्रीबी पॉलिटिक्स को बढ़ावा देने वाले लोग देश में विकास के काम नहीं करते।” इसके साथ ही मुफ्तखोरी की राजनीति पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार द्वारा एक और बड़ा कदम उठाया गया है। दरअसल, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ समय पहले ही यह घोषणा की थी कि “जिन भी राज्य में सरकार अपने यहां अधिक पूंजीगत व्यय पर अधिक खर्च करेगी, उसे केंद्र की तरफ से ज्यादा कर्ज मिलेगा और राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए 80 हजार करोड़ का ब्याज मुक्त ऋण देने की घोषणा की थी।” इस कदम के पीछे सरकार की कोशिशें यह है कि सभी राज्य अपने यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अधिक फोकस करें और पैसों का इस्तेमाल वो अपनी मुफ्तखोरी की राजनीति के लिए ना करें।
फ्रीबी संस्कृति का देश में जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र सरकार एक के बाद एक कई कदम उठा रही है। जनता को मुफ्त और सस्ते दरों पर बिजली देना आज तमाम राजनीतिक पार्टियां का चुनावी एजेंडा बनता चला जा रहा है। जहां कही भी चुनाव होते है, वहां तमाम पार्टियां मुफ्त बिजली का शिगूफा लेकर जनता के पास पहुंच जाती है। खासतौर पर फ्री-पुरुष केजरीवाल ने देश में मुफ्त बिजली के इस कल्चर को काफी बढ़ावा दिया है। इस पर रोक लगाने के लिए ही केंद्र सरकार 8 अगस्त को संसद में एक बिजली संशोधन बिल लेकर आई। बिल का उद्देश्य बिजली के निजीकरण को अनुमति देना है। नए कानून से बिजली वितरण करने वाली कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इस सेक्टर का भारी-भरकम कर्ज का बोझ कम होगा।
रेवड़ी कल्चर देश और देश के विकास के लिए कितना हानिकारक है, यह सुप्रीम कोर्ट समझ चुका है। यही कारण है कि फ्रीबी पॉलिटिक्स को लेकर उच्च न्यायलय ने सख्त रवैया अपनाए हुए है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा फ्रीबी संस्कृति पर नकेल कसने के लिए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से सुझाव मांगे गए। साथ ही कोर्ट ने नीति आयोग, वित्त कमीशन, सत्ताधारी पार्टी, विपक्षी पार्टियां, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया समेत अन्य संस्थान से पूछा है कि “देश में रेवड़ी कल्चर को आखिर कैसे समाप्त किया जा सकता है।” इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट फ्रीबी राजनीति का अंत करने के लिए एक विशेषज्ञ कमेटी बनाने पर भी विचार कर रहा है।
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जिस तरह से बीजेपी इन दिनों मुफ्तखोरी की राजनीति के विरुद्ध सख्त रूख अपनाए हुए है और इसके माध्यम से तमाम राजनीतिक पार्टियों को निशाने पर ले रही है, उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि उसने क्षेत्रीय दलों की कमजोर नस को पकड़ लिया है और आगे आने वाले समय में इसके जरिए ही वो इन पार्टियों को चुनौती देने की कोशिश करेगी। सरकार अगर फ्रीबी संस्कृति पर लगाम लगाने में कामयाब हो जाती है, तो यह क्षेत्रीय दलों के लिए सबसे बड़ा झटका होगा। उनके वोटबैंक पर इसका प्रभाव पड़ेगा, जिससे बीजेपी को मजबूत होने का अवसर मिल सकता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि बीजेपी ने उस कोड को डिकोड कर ही लिया जिसके जरिए वो अब क्षेत्रीय दलों को टक्कर देने के प्रयास कर सकती है।
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