जब एजेंडों की पोल खुलती है तो वामपंथियों के पेट में सर्वाधिक दर्द उठता है। ये बैठते हैं तो दर्द उठता है और दर्द उठता है तो बैठ जाते हैं मतलब कि इन्हें पता है कि इनके द्वारा फैलाया जा रहा प्रोपेगेंडा व्यर्थ है फिर भी एक के बाद एक एजेंडा गढ़ने के बेतुके प्रयास करते रहते हैं। अब एक सच्चे देशभक्त वैज्ञानिक को देशद्रोही बनाकर उसे प्रताड़ित करने वालों की पोल खुल गयी है।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे Caravan मैगजीन ने नंबी नारायणन को अपमानित करने हेतु अपने एक पुराने लेख को जोरों शोरों से प्रचारित किया और कैसे वह सीबीआई की प्रतिबद्धता पर भी प्रश्नचिह्न लगा रही है।
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फर्जी देशद्रोह का केस
जिस इसरो के एक होनहार वैज्ञानिक नंबी नारायणन को एपीजे अब्दुल कलाम के समकक्ष माना जाना चाहिए था उन्हें 90 के दशक में एक फर्जी देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार कर आरोपी बना दिया गया। उन्हें वर्षों तक संघर्षों के बाद अपना खोया हुआ सम्मान तो मिल गया लेकिन वामपंथियों के लिए वे हमेशा ईर्ष्या का केंद्र ही रहे और आज भी कुछ विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है।
नंबी को सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों पूर्व निर्दोष सिद्ध कर दिया और 2018 में अविलंब इतने वर्षों तक पीड़ा झेलने के लिए केरल सरकार को तत्काल प्रभाव से सवा करोड़ रुपये देने का आदेश दिया।
लेकिन रॉकेट्री फिल्म के प्रदर्शन और उसकी अपार सफलता के बाद वामपंथियों का एक वर्ग फिर से उन पर कीचड़ उछालने की कोशिश कर रहा है और वामपंथी समेत घृणा का एजेंडा चलाने वालों में श्रेष्ठ स्थान पर आने वाले पोर्टल Caravan ने एक बार फिर नंबी नारायणन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट मिलने और राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित होने के बावजूद कीचड़ उछाल दिया है।
कारवां ने अपना 2020 का पुराना लेख पुनः प्रकाशित किया है और इसके जरिए नंबी नारायणन को एक जासूस और चोर बताया है। पोर्टल ने ये आरोप पुनः लगा दिए कि नंबी ने क्रायोजेनिक इंजन की डिटेल्स और पार्ट्स की जानकारी पाकिस्तान और रूस जैसे देशों के साथ साझा करके राष्ट्रद्रोह किया था जबकि इन्हीं सभी आरोपों में नंबी नारायणन देश की सर्वोच्च अदालत से क्लींन चिट पा चुके हैं, परंतु इससे वामपंथियों को क्या?
इस लेख में इतना विद्वेष भरा है कि पूछिए ही मत। नम्बी चूंकि श्वेत वर्ण के हैं यानी गोरे प्रतीत होते हैं, इसलिए उनका उपहास उड़ाते हुए कहा गया है कि ये किस एंगल से भारतीय हैं? कारवां मैगजीन के विद्वेषपूर्ण लेख के अंश के अनुसार, “एक वैज्ञानिक जो 1999 में भी 35000 रुपये प्रतिमाह कमाते थे, उसके दो महीने के टेलीफोन बिल 1994 में 45498 रुपये थे। कारवां के सूत्रों द्वारा एक्सेस किए गए कॉल रिकॉर्ड्स के अनुसार ये कॉल कजाकिस्तान और UAE। सीबीआई ने कभी इस जगह पर ध्यान ही नहीं दिया। एक अन्य आरोपी के अनुसार नम्बी के Glavkosmos के Alexi Vassive के साथ भी कनेक्शन थे और CBI ने कभी इन अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन पर जांच ही नहीं की”
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नंबी के कई अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक के साथ संबंध थे
ओ आरबी श्रीकुमार और सिबी मैथ्यूज को कम से कम रियल आईडी से तो आना चाहिए। किसे आप लोग उल्लू बना रहे हैं? जिसने Rocketry नहीं भी देखी होगी उसे भी अब पता चल चुका होगा कि नंबी नारायणन के कई अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक के साथ संबंध थे और 1990 के प्रारम्भिक दशक तक उनका काफी मेलजोल जारी था जिसका एक अंश Rocketry में भी दिखाया गया है।
नंबी नारायणन भारत के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों में थे जिन्होंने देश को विकास इंजन जैसा एक अत्याधिक रॉकेट इंजन विकसित करके दिया था। उन पर 90 के दशक में भारतीय स्पेस प्रोजेक्ट की जानकारी और क्रायोजेनिक इंजन की डिटेल्स चोरी से दूसरे देशों को साझा करने के आरोप लगे जिसके चलते उनके कई साथी वैज्ञानिकों को भी हिरासत में लिया गया। इस दौरान स्पेस साइंस का काम अधर में अटक गया। अनेकों वामपंथी एनजीओ समेत कई राजनीतिक दलों ने नंबी को देशद्रोही साबित करने की ठान ली थी लेकिन केरल पुलिस और आईबी की जांच के तुरंत बाद यह केस सीबीआई के पास गया तो नंबी नारायणन की कहानी अलग ही निकली।
नंबी नारायणन को मिली क्लीन चिट में सीबीआई की अहम भूमिका थी क्यों सीबीआई ने ही इस केस को कमजोर या बेबुनियाद घोषित कर दिया था। दरअसल, असल में यह मामला केरल के स्थानीय पुलिस प्रशासन की लापरवाही और इंटेलिजेंस ब्यूरो के कुछ कुख्यात अफसरों की मिलीभगत का नतीजा था और नंबी को जेल में खूब प्रताड़ित किया गया लेकिन जब यह मामला सीबीआई कोर्ट में आया तो दूध का दूध और पानी का पानी होने में देर नहीं हुई।
नंबी नारायणन के केस की सीबीआई जांच कर रहे अधिकारी पीएम नायर ने स्पष्ट तौर पर यह घोषित कर दिया था कि नंबी के खिलाफ लगाए गए आरोप कहीं नहीं टिकते हैं और उन्हें फंसाया गया है। स्थानीय पुलिस अधिकारी की हरकतों का अंजाम देश के सर्वोच्च वैज्ञानिकों में से एक वैज्ञानिक को भुगतना पड़ा जिसका नुक़सान देश को स्पेस साइंस के लिए देखने को भी मिला जिसके आधार पर सीबीआई ने उन्हें सर्वप्रथम 1996 में निर्दोष सिद्ध कर दिया था। इन सबके बावजूद आज रॉकेट्री जब धमाल मचा रही है तो वामपंथियों को दिक्कत हो रही है क्योंकि जिस दौर में शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान जैसे कथित स्टार्स की फिल्में कोई कमाल नहीं कर पा रही है तो उसी टाइम आर माधवन की फिल्म का बेहतरीन कलेक्शन कैसे हुआ है।
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आर माधवन का फिल्म में एक हिन्दू का किरदार निभाना और सभी हिन्दू मान्यताओं का पालन करना कारवां को सर्वाधिक चुभ रहा है। संभवत इसके चलते जब लोगों के मन में रॉकेट्री देखकर नंबी नारायणन के प्रति सम्मान का भाव आया है तो ये भाव ही वामपंथियों की मुश्किल का कारण बन गया। जिसका नतीजा है कि कारवां अपने पोर्टल निकालकर नंबी नारायणन पर हमला बोल रहा है।
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