इस वर्ष भारत और पाकिस्तान ने अपने आजादी के 75वीं वर्षगांठ मनाई। भारत और पाकिस्तान दोनों ही स्वतंत्रता के 75 साल पूरे कर चुके हैं। परंतु इन 75 सालों में जहां भारत ने स्वयं को ऊंचाईयों पर पहुंचा लिया, तो वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान गर्त में जाता जा रहा है। आज पाकिस्तान के हालात ऐसे हो गए है कि वे अपना देश चलाने के लिए दूसरों की भीख पर निर्भर है। पाकिस्तान में कोई भी सरकार आए, वे अपनी जनता को मुश्किल हालातों से निकालने में असफल हो रही है। कही ना कही भारत के साथ अपने संबंध बिगाड़ने के कारण पाकिस्तान को भारी नुकसान उठाना पड़ा। यही कारण है कि अब पाकिस्तान, भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारना चाहता है और स्थायी शांति चाहता है।
दरअसल, हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने एक बयान में भारत के साथ स्थायी शांति कायम करने की गुहार लगाई है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह को संबोधित करते हुए शहबाज शरीफ ने कहा- ‘हम भारत के साथ बातचीत से स्थायी शांति चाहते हैं, क्योंकि युद्ध किसी भी देश के लिए विकल्प नहीं होता।‘
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने आगे यह भी कहा कि “इस्लामाबाद और नई दिल्ली के बीच प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए, परंतु यह व्यापार, अर्थव्यवस्था और अपनी जनता की स्थिति में सुधार को लेकर होनी चाहिए।” शरीफ ने कहा कि “पाकिस्तान हमलावर देश नहीं है। अपनी सीमाओं की रक्षा हेतु हम अपनी सेना पर खर्च करते हैं, ना कि किसी अन्य देश पर आक्रामकता के लिए।”
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पाकिस्तान की चुनौतियों पर भी की चर्चा
यहां गौर करने वाली बात यह है कि शहबाज शरीफ ने पाकिस्तान के साथ शांति कायम करने की बात तो कही, परंतु इसके साथ ही उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का भी जिक्र किया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बोले कि “संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत कश्मीर मुद्दे का हल क्षेत्र में स्थायी शांति से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने का संकल्प लिया है।” यानी शहबाज शरीफ चाहते है कि भारत-पाकिस्तान के बीच शांति बनी रहे, तो वे भी संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार। परंतु शायद शहबाज शरीफ यह भूल गए कि वे जिस संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का यहां जिक्र कर रहे है। जिसके तहत वे भारत और पाकिस्तान के बीच शांति चाहते है। वो पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले पीओके पर भी लागू होता है। प्रस्ताव को लागू करने से पहले पाकिस्तान को पूरा पीओके खाली करना होगा।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 21 अप्रैल 1948 को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अनुसार परिषद ने पाकिस्तान को पीओके खाली करने और सेना को वापस बुलाने का निर्देश दिया था। साथ ही पीओके को जम्मू-कश्मीर में मिलाने की भी इस प्रस्ताव में कही गई थी। अब जिस संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव की आड़ में पाकिस्तान, भारत के साथ शांति कायम करने की आड़ ले रहा है, उसके तहत तो उसे पहले पीओके को खाली करना होगा। परंतु क्या पाकिस्तान ऐसा करेगा? यानि पाकिस्तान अपनी शर्तों के अनुसार भारत के साथ शांति कायम करना चाहता है। परंतु वे यह भी अच्छे से जानता है कि भारत के आगे उसकी एक नहीं चलने वाली।
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भारत के आगे पाकिस्तान को हर बार मुंह की खानी पड़ी है
वैसे तो आजादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच के संबंध दुश्मनी भरे रहे है। कई बार ऐसे मौके आए, जब युद्ध के मैदान पर भी दोनों देश आमने-सामने आए और हर बार भारत ने पाकिस्तान को पटखनी दी। परंतु पिछले कुछ समय से दोनों देशों के बीच बातचीत से लेकर व्यापार तक सबकुछ बंद पड़ा है। ऐसा केवल इसलिए तो एक तरफ बातचीत का महज दिखावा ही करता है, दूसरी ओर भारत के विरुद्ध आतंकवाद को बढ़ावा भी देता रहता है। यही कारण है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत बंद कर रखी है। भारत ने पाकिस्तान को स्पष्ट कर रखा है कि वे अपने यहां जब आतंक की फैक्ट्री बंद रखेगा, तब ही दोनों देश बातचीत के रास्ते पर वापस लौट पाएंगे।
वैसे ऐसा पहली बार नहीं, जब पाकिस्तान ने भारत के साथ शांति की बात की हो। पहले भी ऐसा उसकी ओर से कई बार किया जा चुका है। देश के बिगड़ते हुए हालातों को देखते हुए पाकिस्तान की अक्ल अब ठिकाने आने लगी है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार घटता चला जा रहा है। वे दिवालिया होने की कगार पर खड़ा नजर आ रहा है। इसी के चलते वे अपने संबंध भारत के साथ सुधारना चाहता है। परंतु पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को यह पता होना चाहिए कि वो किसी भी कीमत पर भारत को अपनी शर्तों के अनुसार नहीं चला सकता। इसके विपरीत जो उनकी मौजूदा स्थिति है, उसे देखते हुए तो पाकिस्तान को ही भारत के हिसाब से चलने की जरूरत पड़ेगी।
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