राजनेता अब राजनीति के इतर अन्य क्षेत्र में आकर राजनीति करने लग जाए तो उसका हाल भारत की फुटबॉल की स्थिति जैसा होता है। एकदम राजनीति से ग्रसित। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन फुटबॉल (फीफा) ने तीसरे पक्ष के कथित अनुचित प्रभाव के कारण अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) को अपने संगठन से निलंबित कर दिया है। इसके अलावा, फीफा अंडर -17 महिला विश्व कप 2020, जिसे 11 अक्टूबर से शुरू होने का अनुमान था, उसे भी स्थगित कर दिया गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता प्रफुल्ल पटेल की बदौलत आज विश्व फुटबॉल पर राज करने का भारतीय सपना, एक सपना ही बनकर रह गया है। इसपर सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी प्रफुल्ल पटेल जैसे नेताओं की फजीहत करने के लिए काफी है और वो इस फजीहत के लायक भी हैं यह भी सत्य है।
दरअसल, पूर्व भारतीय फुटबॉल प्रमुख प्रफुल्ल पटेल पर निर्देशित तीखी टिप्पणी में, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह “टूर्नामेंट को टारपीडो करने की कोशिश कर रहे थे” क्योंकि यह सूचित किया गया था कि फीफा के अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के निलंबन के परिणामस्वरूप देश को नुकसान होगा। और अक्टूबर में होने वाले अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी का अधिकार भी छिनने की कगार पर है।
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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान
एआईएफएफ के दैनिक मामलों को चलाने वाली प्रशासकों की समिति (सीओए) को भंग करने के आवेदन पर सुनवाई करने वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व करते हुए, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “आप हमको दिक्कत बताते हैं और आप टूर्नामेंट को नष्ट कर रहे हैं। मिस्टर प्रफुल्ल पटेल टूर्नामेंट को तबाह करने की कोशिश कर रहे हैं। आप भी अब ये काम कर रहे हैं। हम आपसे निपट लेंगे।”
ज्ञात हो कि, यह अवलोकन तब किया गया जब वकील ने अदालत को सूचित किया कि फीफा के एआईएफएफ के निलंबन से देश को इस साल 11 अक्टूबर को होने वाले फीफा अंडर -17 महिला विश्व कप 2020 की मेजबानी करने का अवसर गंवाना होगा। इसके अलावा, प्रफुल्ल पटेल की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में तर्क दिया कि “मैं इस संगठन में कोई भी पद-धारक नहीं बनना चाहता। हम चाहते थे कि चुनाव पहले हो। दुर्भाग्य से, इसमें देरी हुई। इस तरह मैंने जारी रखा। क्योंकि मैं फीफा में चुना गया हूं, मैं चाहता था कि कप यहां आए, मैं यहां कप लाया।”
भारत में फुटबॉल का समूल नाश प्रफुल्ल पटेल की देन
यह समझना आवश्यक है कि इस साल 10 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सीओए ने एआईएफएफ के पूर्व अध्यक्ष और राज्य संघों के पदाधिकारियों के प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए अदालत का रुख किया था। यह आरोप लगाया गया था कि फीफा के परिषद सदस्य प्रफुल्ल ने एआईएफएफ से संबंधित एससी के निर्देशों को कमजोर करने के लिए राज्य संघों के बीच अभियान चलाया है। सीओए ने आरोप लगाया कि प्रफुल्ल पटेल ने 35 राज्य संघों को फीफा और एशियाई फुटबॉल परिसंघ से निलंबन की धमकी दी। जिसके बाद राज्य संघों और केंद्र सरकार को 3 अगस्त 2022 को SC द्वारा पारित आदेश की समीक्षा करने के लिए राजी किया गया।
अवमानना के आवेदन में, सीओए ने सुप्रीम कोर्ट से पटेल के खिलाफ निर्देश जारी करने के लिए कहा कि उन्हें फीफा और एएफसी में पदों सहित फुटबॉल से संबंधित किसी भी पद पर भाग लेने और रखने से रोक दिया जाए। इसके साथ ही जब सुनवाई प्रारंभ हुई तो प्रफुल्ल पटेल की घिनौनी रणनीति पर पीठाधीश जजों ने खूब लताड लगाई क्योंकि सच साफ़-साफ़ पता चल रहा था। ऐसे में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने जो कहा कि, “आप हमको अपनी दिक्कत बताते हैं और आप टूर्नामेंट को नष्ट कर रहे हैं। मिस्टर प्रफुल्ल पटेल टूर्नामेंट को तबाह करने की कोशिश कर रहे हैं।” यह बहुत आवश्यक बिंदु बन जाता है कि वास्तव में भारत में फुटबॉल के समूल नाश का कारक और कोई नहीं स्वयं प्रफुल्ल पटेल है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय फुटबॉल को बर्बाद करने के लिए प्रफुल्ल पटेल को जो चोक स्लैम दिया शायद ही वो यह भूल पायेंगे।
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