इस दुनिया में जो कुछ है सब उन्हीं की देन है, बाकी सब तो मिथ्या है। सांस ले पा रहे हैं न? खाना बनाकर खा रहे हैं न? विष्ठा निकालना आता है न? सब उन्हीं की देन है। अब आप पूछेंगे कौन? अरे तो जिस तरह भारत की आज़ादी के बाद देश में सुई से लेकर सुपर कार बनाने का क्रेडिट नेहरू जी के पास है, ठीक उसी तरह खाने, पीने, सोने, जगने सभी तरह के निजी और सार्वजनिक कार्यों को शुरू करने का श्रेय मुगलों को जाता है क्योंकि पहले तो भारत में लोग ताड़ के पत्ते पहनते थे और घास खा कर जीते थे, वो बाबर ही तो था जिसने भारत में आकर खाना खाया तो बोला, मजा नहीं आ रहा है और फिर उसने अरब से मस्त मसाले मंगवाए और फिर भारतीयों ने टेस्टी खाने का स्वाद लिया! मुगलों ने ही तो हमें जीना सिखाया है वरना तो भारतीयों को सांस तक लेना नहीं आता था।
अब आप सोच रहे होंगे कि हम भी अजीब मजाक कर रहे हैं तो आपको बता दें कि हम मजाक ही कर रहे हैं क्योंकि कुछ लंपट वामपंथियों ने इस मजाक को सीरियसली ले लिया है और वे भारत में प्रत्येक चीज का श्रेय मुगलों को देने में लगे हैं और इस बार मुगलों के गुणगान का बेड़ा वामपंथी लंपट मीडिया पोर्टल Scroll.in ने उठाया है। अब Scroll के पत्रकार भी बेचारे क्या करें, देश में इतनी भयंकर असहिष्णुता है कि देश उन ‘महान’ लोगों को भूल चुका है जिन्होंने भारतीयों का गला काट-काटकर एक्सपेरिमेंट करने के बाद सांस लेने की ट्रेनिंग दी थी तो स्क्रॉल ने एक बार मुगलों के सिर पर एक तमगा लगाने की अपनी पूरी कोशिश की है।
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दरअसल, हाल ही में Scroll ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें यह कहा गया है कि मुरब्बा जो है वह मुगलों की देन है और इसे अरब देशों से मुगल लेकर आए थे। अब यह बात सुनकर पहले तो आप थोड़ी देर हंस सकते हैं लेकिन मजेदार बात यह है कि मुगल भारत में मुरब्बा लेकर आए थे। इस लेख का कहना है कि बाबर अपने घोड़े पर मुरब्बा लेकर आया था और फिर उसने खुद यहां के लोगों को मुरब्बा बनाना सिखाया जो कि हास्यास्पद है।
Et Alone Mango, I want to know what type of Sugarcane Mughals used to grow in the rain forest of Afghanistan, from which they extracted sugar for murabba. pic.twitter.com/tXJ3c7m8Kc
— BHK🇮🇳 (@BHKtweets) July 30, 2022
इस लेख के मुताबिक मुगलों के समय में ही मुरब्बे का विस्तार हुआ। चीन से भले ही व्यापार में भारतीय मुरब्बा चर्चित रहा हो लेकिन मुरब्बे का श्रेय तो मुगलों के हिस्से ही है। वहीं, बाबर की इस मुरब्बे वाली विरासत को फिर जहांगीर ने खूब संजोकर रखा और उसे विस्तार भी दिया। मुगल न बताते तो किसी को पता ही नहीं चलता कि आखिर ये मुरब्बा किस बला का नाम है। मुरब्बा जो कि भारतीय आचार का ही एक अलग रूप है और जिसमें मुख्य तौर पर चीनी की चाशनी और आम का प्रयोग किया जाता है वो भारत के एक सांस्कृतिक खान-पान का हिस्सा है लेकिन Scroll को लगता है कि अरब देशों ने पानी की कमी के बीच पहले गन्नों की खेती की फिर आम की भी पैदावार शुरु की और विश्व को उन मुगलों ने मुरब्बा दिया। जी हां, अरब देशों में गन्ना और आम उगाना बहुत बड़ा त्याग है!
अब आप सोच रहे होंगे कि फिर फालतू की बात, तो क्या करें हम लोग Scroll की बात जो कर रहे हैं। जिस प्रकार मसाले और चावल की खेती करके भारत में मुग़ल मुगलई खाना और बिरयानी लेकर आए थे ठीक उसी तरह मुरब्बा भी मुगलों ने दिया है। भारत ने दुनिया को जीरो दिया है, भारत को मुगलों ने ही मुरब्बा देकर वैश्विक हीरो बनाया है। आपको बताते चलें कि हम बस व्यंग्य कर सकते हैं और करते हैं लेकिन असल में यह वामपंथियों की वैचारिक कमजोरी है कि मुगल का नाम आते ही वे जहांपनाह के नाम को भी जी हुजूर बोल कर सलाम ठोकन लगते हैं। वरना भारतीय मसाले और बासमती चावल से बनी बिरयानी को मुगलों की विरासत कहने का जिगर भला किसमें है। ऐसे में इन वामपंथियों ने यह मान लिया है कि सांस लेने की तकनीक सिखाने से लेकर खान, पान, गान, दान सबकुछ मुगलों की ही देन है। पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने से लेकर चांद के पृथ्वी की धुरी पर घूमने तक की सेटिंग मुगल ही करके गए हैं वरना तो दुनिया का बंटाधार हो ही गया था।
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