कुछ लोग अपनी हरकतों से कभी भी बाज़ नहीं आते। इनके स्वभाव में ही होता है कि भारत के अहित में बात करनी है या कार्य करना है और हमारे देश की वामपंथी बिरादरी इस मामले में टॉप पर है। इसी बीच केरल के पूर्व मंत्री और सीपीआईएम विधायक के टी जलील ने शुक्रवार को जम्मू कश्मीर को भारत के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर बताया जिसके बाद बवाल मच गया। साथ ही वामपंथी विधायक ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को आजाद कश्मीर भी बताया है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे वामपंथी बिरादरी अपने अंध विरोध में POK को भारत का हिस्सा मानने को तैयार नहीं है।
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दरअसल, हाल ही में के टी जलील का एक फेसबुक पोस्ट गलत कारणों से काफी वायरल हो रहा है। उन्होंने न केवल जम्मू कश्मीर को भारत के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर बताया है अपितु साथ ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को आजाद कश्मीर भी बता दिया है। केरल की भाषा मलयालम में लिखी पोस्ट में केरल के विधायक ने कहा, “कश्मीर के पाकिस्तान के कब्जे वाले हिस्से को आजाद कश्मीर के रूप में जाना जाता है और यह ऐसा इलाका है जहां पाकिस्तान सरकार का सीधा कंट्रोल नहीं है। भारत अधीन जम्मू कश्मीर में जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख के कुछ हिस्से शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर में अब सिर्फ राइफलों के साथ सेना के जवान दिखते हैं और वहां के लोग मुस्कुराना भूल चुके हैं।”
उन्होंने कहा कि वहां सभी राजनेता घर में नजरबंद हैं और महीनों से राजनीतिक गतिविधियां नहीं हो रही हैं। जलील ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में कश्मीर को तीन हिस्सों में बांट दिया है और लोगों में इस फैसले के खिलाफ गुस्सा है। विधायक ने फेसबुक पोस्ट में केंद्र सरकार की ओर से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध भी किया है।
सोशल मीडिया पर वायरल होते ही इसे लेकर बवाल मच गया है। भारतीय जनता पार्टी के नेता संदीप वारियर ने जलील की बयान को लेकर उनकी आलोचना करते हुए कहा कि उनकी जहरीली सोच पोस्ट के जरिए से साफ दिख रही है। सीपीएम के प्रदेश सचिव कोडियेरी बालकृष्णन ने कहा कि वह फेसबुक पोस्ट पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया देंगे। इसके बाद विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि एक विधायक का ऐसा बयान देना शर्मनाक है और उन्हें इस्तीफा देना चाहिए। साथ ही ऐसे नेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
परंतु आपको क्या लगा, ये इनकी पहली ऐसी बोली है? अरे नहीं, भारत विरोधी होना तो कम्युनिस्ट पार्टी के DNA में है, जिसके बारे में आज भी लिखने से बड़े बड़े इतिहासकार कतराते हैं। जब भारत स्वतंत्र हुआ तो उसका अंध विरोध करते हुए ये चिल्लाते थे कि “ये आज़ादी झूठी है”। ये तो कुछ भी नहीं, कहने को इन लोगों ने निज़ाम शाही के विरुद्ध विद्रोह का नारा बुलंद किया परंतु जैसे ही उनकी पार्टी से प्रतिबंध हटा, विद्रोह ऐसे गायब हुआ जैसे गधे के सर से सींग।
यूं ही नहीं कहा गया था सरदार मूवी में, “ऐसा लगता है कि हैदराबाद को दिन में निजाम चलाते हैं और रात को कम्युनिस्ट।” इसके अलावा इनका चीन प्रेम कैसे भुला जा सकता है जब 1962 में इन्होंने दिल खोलकर भारत चीन युद्ध में चीन का साथ दिया था? ऐसे में के टी जलील के बयान से आपका खून अवश्य खौल उठा होगा परंतु उनके लिए यह अस्वभाविक नहीं है क्योंकि जिनके हृदय में भारत ही नहीं है, उनसे आप और क्या ही आशा कर सकते हैं?
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