रूस भारतीय कंपनियों का रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत क्यों कर रहा है?

भारत और रूस की 'सदाबहार दोस्ती' अब नया रंग लाएगी!

Modi with Putin

Source-TFI

‘आइए, रशिया में आपका स्वागत है’, कुछ इसी अंदाज में रूस ने भारतीय कंपनियों के लिए अपने द्वार खोले हैं। दोस्ती की अगर कभी मिसाल दी जाएगी तो उसमें भारत और रूस का नाम शीर्ष पर आएगा। पश्चिमी दबाव के बावजूद यूक्रेन युद्ध भी भारत और रूस की मजबूत दोस्ती में दरार नहीं ला पाया। जब पूरी दुनिया तमाम तरह के प्रतिबंध लगाकर रूस को अलग-थलग करने के प्रयासों में जुटी रही तो इन परिस्थितियों में भारत ने बड़ी ही मजबूती से रूस का साथ निभाया। रूस के साथ व्यापार बढ़ाकर भारत ने पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को ठेंगा दिखाने में रूस की मदद की। यही कारण है कि अब रूस भी रेड कारपेट बिछाकर भारतीय कंपनियों को अपने यहां व्यापार करने के लिए आमंत्रित कर रहा है।

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भारतीय कंपनियों के लिए बड़ा अवसर

दरअसल, यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध छिड़ते ही पूरी दुनिया रूस के पीछे पड़ गई। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने तमाम तरह के प्रतिबंध थोपकर रूस को युद्ध से कदम पीछे खींचने पर मजबूर करने का प्रयास किया। इसके साथ ही यूरोप और अमेरिका समेत कई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां रूस में कारोबार से दूरी बनाने लगी। कई कंपनियां तो रूस से अपना कारोबार ही समेटकर बाहर निकल आई। मशहूर कॉफी ब्रांड Starbucks ने रूस से टाटा, बाय बाय कर दिया। इस कंपनी ने अपने 130 स्टोर्स को बंद करने का फैसला लिया था। इसके अलावा McDonald ने भी रूस से अपना कामकाज समेट लिया। इस सूची में इंफोसिस, एडोब, इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, अमेजन, नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियां भी शामिल रही, जिन्होंने युद्ध के दौरान रूस में कारोबार करने से कदम पीछे खींच लिए। येल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट की वेबसाइट पर मौजूद एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक लगभग एक हजार कंपनियां सार्वजनिक तौर पर रूस को छोड़ने का ऐलान कर चुकी हैं।

हालांकि, कुछ कंपनियों ने इसके बाद भी रूस में काम करना जारी रखा है। रूस से तमाम कंपनियों का यूं बाहर निकलना भारत के लिए अवसर लेकर आया है। कई बड़े-बड़े ब्रांड्स ने रूस में अपना कारोबार समेटकर एक खाली जगह छोड़ दी है। पुतिन प्रशासन उस खाली जगहों को भरने के प्रयासों में जुटा है और इसके लिए उसे एक नए भागीदार की तलाश है। इस मौके का लाभ भारतीय कंपनियां उठाना चाहती हैं और वे रूस में अपना कारोबार स्थापित करना चाहती हैं। इसके लिए रूस भी बाहें फैलाए भारतीय कंपनियों का स्वागत कर रहा है।

रूस में होगा भारतीय कंपनियों का वर्चस्व

रिपोर्ट्स के अनुसार दवा निर्माता समेत कई अन्य भारतीय कंपनियां रूस में या तो नई परियोजनाएं हासिल कर रही हैं या अधिक अनुबंधों के लिए तैयार हो रही हैं। बीते दिनों हुए BRICS सम्मेलन के दौरान भी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस में भारतीय स्टोर्स खोलने पर बातचीत का दौर जारी है। रूस भारतीय कंपनियों को अपने यहां कारोबार स्थापित करने में तमाम तरह की मदद और सहूलियत प्रदान कर सकता है। देखा जाए तो यह दोनों के लिए ही फायदे का सौदा साबित होगा। एक तो भारतीय कंपनियों को रूस में अपना कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। वहीं, दूसरी ओर रूस भी उन जगहों को भरने में कामयाब हो पाएगा, जो तमाम कंपनियों के रूस से भागने के बाद खाली हो गई है।

ब्लूमबर्ग से बात करते हुए बर्जर पेंट्स के वित्तीय अधिकारी श्रीजीत दासगुप्ता ने कहा कि बहुराष्ट्रीय पेंट कंपनियों का रूस से निकलना बर्जर पेंट्स के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर लेकर आया है। वहीं, भारत की सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों में से एक डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज लिमिटेड के पास भी बड़ा मौका है कि वो रूस के फॉर्मा बाजार में हिस्सेदारी हासिल करे। कंपनी के पास रूस में 40 उत्पादों और 800 से अधिक कर्मचारियों की उपस्थिति है। भारत के कॉफी निर्यातक सीसीएल प्रोडक्ट्स इंडिया लिमिटेड ने रूस के बाजार में अपने कारोबार का विस्तार करना शुरू कर दिया है। रूस के सबसे बड़े फूड रिटेलर X5 समूह ने भी पेय, डिब्बाबंद भोजन, बर्तन, समुद्री भोजन और चावल जैसे भारतीय सामानों की आपूर्ति बढ़ाने की योजना बनाई है। कंपनी के अधिकारियों ने अप्रैल में भारत का दौरा किया और इसके बाद भारतीय आपूर्तिकर्ताओं के साथ एक बैठक भी की।

रूस के साथ हर कदम पर खड़ा रहा है भारत

ध्यान देने वाली बात है कि NATO में शामिल होने की यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की की जिद के कारण रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ा था। जंग को लेकर अधिकतर देश रूस के विरुद्ध में ही खड़े नजर आए परंतु भारत युद्ध को लेकर न तो किसी के पक्ष में खड़ा हुआ और न ही किसी के विरुद्ध में। युद्ध को लेकर शुरू से ही भारत ने अपना यह स्टैंड दुनिया को क्लियर कर दिया था। इसके बावजूद अमेरिका ने दबाव बनाने की पूरी कोशिशी की, वह इन प्रयासों में जुटा रहा कि भारत किसी भी तरह रूस के विरुद्ध चला जाए परंतु अमेरिका की इस दबाव नीति का भारत पर जरा भी असर नहीं हुआ। भारत ने अपने हितों को सबसे ऊपर रखा और जंग के दौरान भी न केवल रूस के साथ अपना व्यापार कायम रखा बल्कि दोनों देशों के बीच बिजनेस का ग्राफ और बढ़ गया। सस्ते दामों पर भारत ने भारी मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीदा। इसके अलावा अन्य सामानों को लेकर भी दोनों देशों के बीच व्यापार जारी रहा।

इस तरह से कहा जा सकता है कि भारत ने अपने हितों का ध्यान रखते हुए युद्ध को लेकर अपना स्टैंड बनाया, न कि किसी की बातों या दबाव में आकर और यही भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ रहा। इससे न तो भारत का रूस के साथ संबंधों पर कोई असर पड़ा और न ही किसी अन्य देशों के साथ। इस दौरान भारत का रूस के साथ व्यापार भी खूब फला-फूला। यही कारण है कि अब भारतीय कंपनियों के लिए रूस में कारोबार का विस्तार करने के अवसर खुल रहे हैं।

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