हमारे देश में एक प्रथा चलती आ रही है, मुद्दा विहीन होने की रीत में कुछ तत्व हिन्दू विरोध में इस कदर बौरा जाते हैं कि हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक हज़ारों वर्ष पुराने उनके देवस्थानों पर अपना अधिकार बताने लगते हैं। ज्ञानवापी मामला भी कुछ ऐसा ही है। इसी बीच ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी केस की सुनवाई का रास्ता साफ होने में हिंदू पक्ष की दलीलें ज्यादा असरदार साबित हुई हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे आने वाले कुछ ही वर्षों में ज्ञानवापी कॉम्प्लेक्स के साथ एक भव्य विश्वनाथ मंदिर बनकर तैयार होने वाला है। दरअसल, ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद को लेकर दायर याचिका सुनवाई के योग्य है, वाराणसी कोर्ट ने अपने फैसले में यह मानते हुुए पूजा स्थल कानून की दलील और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।
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इसे लेकर कई बार मचा है बवाल
ध्यान देने वाली बात है कि औरंगज़ेब ने 1669 में वहां रहे आदिविशेश्वर मंदिर को गिराकर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। हिंदुओं की ओर से लगातार इस मामले को उठाया जाता रहा है। पूर्व की सरकारों के समय जब भी हिंदू पक्ष की ओर से ऐसे मुद्दों को उठाया गया तो तुष्टीकरण की राजनीति में व्यस्त पार्टियों ने ऐसी मांगों को सिरे से खारिज कर दिया या यह कहा जा सकता है कि ऐसी मांगों को समर्थन नहीं मिला।
मंदिर-मस्जिद को लेकर कई बार विवाद हुए हैं लेकिन ये विवाद आजादी से पहले के हैं। 1809 में जब हिंदुओं ने विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच एक छोटा स्थल बनाने की कोशिश की थी, तब भीषण दंगे हुए थे। 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशजों ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा कि मूल मंदिर को 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़कर मस्जिद बनवाई। याचिका में कहा गया कि मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ, इसलिए यह जमीन हिंदू समुदाय को वापस दी जाए। याचिका के मुताबिक केस में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों से बनाया था।
1998 में ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी अंजुमन इंतजामिया इसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची। कमेटी ने कहा कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता क्योंकि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है। जिसके बाद बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। 2019 में विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी जिला अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई। 2020 में अंजुमन इंतजामिया ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराए जाने की याचिका का विरोध किया। उसी वर्ष रस्तोगी ने हाईकोर्ट द्वारा स्टे नहीं बढ़ाने का हवाला देते हुए निचली अदालत से सुनवाई फिर शुरू करने की अपील की। 2021 अगस्त में 5 महिलाओं ने सिविल कोर्ट में श्रृंगार गौरी की पूजा की अनुमति मांगी। अप्रैल 2022 में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी करने के आदेश दिए।
2022 में इंतजामिया ने कई पहलुओं के आधार पर इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जो खारिज हो गई। मई 2022 में ही इंतजामिया ने ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले 16 मई को सर्वे की रिपोर्ट फाइल की गई। 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ‘शिवलिंग’ की सुरक्षा वुजूखाने को सील करने के आदेश दिए। 20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला वाराणसी की जिला अदालत में भेज दिया और अब 12 सितंबर 2022 को कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की अपील को खारिज करते हुए ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी विवाद को सुनवाई योग्य माना है।
क्या मिटेगा काशी के माथे से कलंक?
ज्ञात हो कि हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र काशी में अपने स्वप्न परियोजना काशी कोरिडोर का उद्घाटन किया और काशी को उसका खोया हुआ गौरव लौटाया। पीएम मोदी के कारण काशी विश्वनाथ पुन: अपने गौरव को प्राप्त कर रहा है लेकिन एक अंतिम अध्याय बचा रह गया है, वह ज्ञानवापी मस्जिद का। जिसे मुख्य मंदिर को तोड़कर बनाया गया था और जिसके साक्ष्य आज भी आंखों से देखे जा सकते हैं। काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद अयोध्या के विवाद से अलग है क्योंकि काशी विश्वनाथ के दावे के पीछे पर्याप्त पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य भी मौजूद हैं। हालांकि, कोर्ट ने अब ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी विवाद को सुनवाई योग्य माना है तो ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले 3 वर्षों में यानी वर्ष 2024 से पहले ही ज्ञानवापी कॉम्प्लेक्स के साथ ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर भव्य आदिविशेश्वर मंदिर स्थापित होगा और काशी के माथे से ‘कलंक’ मिटेगा!
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